परिचय

हाल ही में, प्रधान मंत्री ने भारत के प्रसिद्ध वकील, न्यायाधीश और राजनीतिज्ञ रहे सर चेत्तूर शंकरन नायर को याद किया। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। साथ ही, उन्होंने 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के लिए अंग्रेजों और विशेष रूप से पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ'डायर के खिलाफ कानूनी लड़ाई का नेतृत्व भी किया था। उल्लेखनीय है कि माइकल ओ'डायर के खिलाफ उनकी साहसी कानूनी लड़ाई हाल ही में रिलीज हुई फिल्म 'केसरी पार्ट 2' का केंद्र बिंदु है।
पृष्ठभूमि और प्रारंभिक जीवन
- जन्म: उनका जन्म 1857 में केरल के पलक्कड़ जिले में हुआ था।
- शिक्षा: 1877 में मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में कला की पढ़ाई की थी और 1879 में मद्रास लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की थी।
- करियर
- 1897 में अमरावती अधिवेशन में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने थे।
- 1900 में वे मद्रास विधान परिषद के सदस्य बने थे।
- 1908 तक सरकार के महाधिवक्ता रहे थे।
- 1908 से 1915 तक वे मद्रास हाई कोर्ट के स्थायी न्यायाधीश भी रहे थे।
- 1915 में वे वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य बने थे और शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी संभाली थी।
- 1920-21 में वे लंदन में भारत के सचिव के लिए सलाहकार रहे थे।
- 1925 से भारतीय राज्य परिषद के सदस्य रहे थे।
- 1928 में साइमन कमीशन के साथ सहयोग हेतु गठित भारतीय केंद्रीय समिति के अध्यक्ष नियुक्त हुए थे।
- सम्मान:
- 1904 में ब्रिटिश-सम्राट द्वारा उन्हें 'कमांडर ऑफ़ द इंडियन एम्पायर' की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
- 1912 में उन्हें नाइटहुड की उपाधि प्रदान की गई थी।
- साहित्यिक योगदान:
- 1919 में भारतीय संवैधानिक सुधारों पर लिखे दो प्रसिद्ध मिनट्स ऑफ़ डिसेंट्स;
- गांधी एंड अनार्की (1922);
- मद्रास रिव्यू और मद्रास लॉ जर्नल आदि।
- मृत्यु: उनकी मृत्यु 1934 में मद्रास में हुई थी।
प्रमुख योगदान
- ऐतिहासिक निर्णय: बुद्धसना बनाम फातिमा वाद (1914) में उन्होंने हिंदू धर्म में धर्मांतरण को वैध ठहराया था और यह निर्णय दिया था कि ऐसे धर्मांतरित लोगों को बहिष्कृत नहीं माना जा सकता।
- जलियांवाला बाग के लिए न्याय: 1919 के नरसंहार में माइकल ओ'डायर की भूमिका के खिलाफ उन्होंने स्पष्ट और साहसिक रुख अपनाया था तथा उनके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी थी।
- सामाजिक सुधार: नस्लीय हीनता और राष्ट्रीय अपमान के रूप में असमानता की निंदा करते हुए उन्होंने पूर्ण समानता का समर्थन किया था।
- राष्ट्रीय दृष्टिकोण: उन्होंने पहले चरण में भारत के लिए डोमिनियन स्टेटस का समर्थन किया था और माना कि दूसरे चरण में पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त की जानी चाहिए।
- लिबरल और उदारवादी राजनीति: उन्होंने गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन और असहयोग आंदोलन की आलोचना की थी तथा शांतिपूर्ण संवैधानिक सुधार और राज्यों के भाषाई पुनर्गठन का समर्थन किया था।
- महिला अधिकारों के पक्षधर: उन्होंने 1920 में साउथबोरो समिति में भारत की ओर से गए प्रतिनिधिमंडल में भाग लिया था। इस प्रतिनिधिमंडल में हीराबाई टाटा और मिथन लैम भी थी। उन्होंने भारत में महिलाओं को मतदान का अधिकार दिलाने की वकालत की थी।
प्रमुख मूल्य
- साहस: सर चेत्तूर शंकरन नायर ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में वायसराय की कार्यकारी परिषद से इस्तीफा दे दिया था।
- नीतिपरायणता: उन्होंने इंग्लैंड में माइकल ओ'डायर से मानहानि का मुकदमा हारने के बाद माफी मांगने से इनकार कर दिया था और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे थे।
- देशभक्ति: वे एक प्रखर राष्ट्रवादी थे। उन्होंने ब्रिटिश लोकतांत्रिक संस्थाओं की प्रशंसा की थी। लेकिन साथ ही, ब्रिटिश शासन के भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को उजागर भी किया था।
- प्रतिबद्धता: वे भारत के स्वशासन के अधिकार में दृढ़ विश्वास करते थे। जब वायसराय लार्ड इरविन ने भारत के लिए डोमिनियन स्टेटस को अंतिम लक्ष्य के रूप में घोषित किया था, तो उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था।
- दूरदर्शी: समाज में व्यापक स्वीकृति मिलने से बहुत पहले ही उन्होंने अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक विवाहों का समर्थन किया था।
निष्कर्ष
सर नायर के विचार आज भी न्याय, साहस, समर्पण और सही के पक्ष में दृढ़ संकल्प के आदर्शों को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण बने हुए हैं, जो त्याग की भावना को प्रोत्साहित करते हैं।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में![]() नरसंहार
नरसंहार के बाद की स्थिति
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