सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने भारतीय स्टार्टअप्स से आग्रह किया कि वे डीप टेक इनोवेशन पर अधिक ध्यान केंद्रित करें।
डीप टेक स्टार्टअप्स क्या हैं?

- डीप टेक्नोलॉजी या डीप टेक से तात्पर्य एडवांस वैज्ञानिक और तकनीकी सफलताओं पर आधारित इनोवेशन या नवाचार से है। इसमें कई प्रौद्योगिकियां शामिल हैं (इन्फोग्राफिक देखें)।
- डीप टेक स्टार्टअप्स या तो मौजूदा एडवांस तकनीकों का उपयोग करके जटिल और अक्सर अनसुलझी समस्याओं के नए समाधान विकसित करते हैं, या फिर मूलभूत विज्ञान और इंजीनियरिंग सिद्धांतों पर आधारित और भी अधिक एडवांस्ड तकनीकों का आविष्कार करते हैं।
भारत में डीप टेक स्टार्टअप इकोसिस्टम के बारे में

- संख्या: भारत सरकार के उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade: DPIIT) के अनुमान के अनुसार, वर्तमान में भारत में 4,000 से अधिक डीप टेक स्टार्टअप्स कार्यरत हैं तथा अनुमान है कि 2030 तक यह संख्या 10,000 तक पहुंच जाएगी।
- विश्व में भारत की स्थिति: नैसकॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार, डीप टेक स्टार्टअप्स की तीसरी सर्वाधिक संख्या होने के बावजूद, भारत 2023 में दुनिया के शीर्ष 9 डीप-टेक इकोसिस्टम में छठे स्थान पर था।
- फंडिंग: नैसकॉम के अनुसार, भारत के 4,000 डीप-टेक स्टार्टअप्स ने 2024 में 1.6 बिलियन डॉलर आकर्षित किए, जो पिछले साल की तुलना में 78 प्रतिशत की वृद्धि है।
- उदाहरण:
- अग्निकुल कॉसमॉस नामक एक स्टार्टअप ने दुनिया का पहला ऐसा रॉकेट लॉन्च किया है जिसमें सिंगल-पीस 3D-प्रिंटेड रॉकेट इंजन लगा हुआ है।
- इम्यूनोएक्ट, IIT बॉम्बे और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल ने कैंसर के इलाज के लिए स्वदेशी CAR-T सेल थेरेपी विकसित की है।
- आइडियाफोर्ज टेक्नोलॉजी अपने एडवांस ड्रोन के साथ UAV बाजार में क्रांति ला रही है।

भारत में डीप टेक स्टार्टअप्स क्यों पिछड़ रहे हैं?
- संस्थाओं से समर्थन प्राप्ति में कमी: प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में सरकार द्वारा वित्त पोषित छह अनुसंधान और विकास संगठनों में से केवल एक ही डीप टेक स्टार्टअप्स को सहायता प्रदान करता है।
- लगातार फंडिंग की कमी: 2023 में, भारतीय डीप टेक स्टार्टअप्स ने पिछले वर्ष की तुलना में फंडिंग प्राप्त करने में गिरावट दर्ज की, लेकिन 2024 में इसमें वृद्धि देखी गई।
- इसके अतिरिक्त, भारत में वेंचर कैपिटल फंड आमतौर पर अपने निवेश पर त्वरित लाभ की अपेक्षा रखते हैं और लंबे समय तक रिटर्न के लिए प्रतीक्षा करने को लेकर संकोच करते हैं।
- लाभकारी बनने में समय लगाना: डीप टेक स्टार्टअप को पूर्ण रूप से विकसित होने में लंबा वक्त और अधिक पूंजी की जरुरत पड़ती है। साथ ही, इसमें तकनीक के सफलता के बारे में अनिश्चितता बनी रहती है। कहने का मतलब यह है कि इस तरह के स्टार्टअप में जोखिम अधिक होता है।
- भारत में उपभोक्ता सेवा आधारित स्टार्टअप पर अधिक बल: भारत में स्टार्टअप बूम उपभोक्ता-आधारित व्यवसायों (जैसे कि फूड डिलीवरी या ई-कॉमर्स ऐप) के कारण है। इनमें डीप-टेक स्टार्टअप की भागीदारी बहुत कम है।
- अधिक नियमों के पालन का बोझ: डीप टेक क्षेत्र के लिए विनियमन को लेकर स्पष्ट और सर्वमान्य दृष्टिकोण का अभाव है। इसके साथ ही, नीतिगत अस्थिरता (जैसे- एंजल टैक्स का लागू होना और फिर वापस लिया जाना), लालफीताशाही, और निवेशकों में जोखिम उठाने की सीमित इच्छा जैसे कारक इस क्षेत्र के विकास में प्रमुख बाधाएं उत्पन्न करते हैं।
- शिक्षा एवं अनुसंधान संबंधी अवसंरचना: भारतीय विश्वविद्यालय शायद ही कभी मौलिक शोध के मामले में वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना पाते हैं। भारतीय संस्थानों में उच्च स्तर के अनुसंधान नहीं होने के कारण भारतीय प्रतिभाएं विदेशों में पलायन कर जाती हैं।
- शैक्षणिक संस्थानों और उद्योग जगत के बीच समन्वय की कमी: इस कारण शोध कार्यों को व्यावसायिक रूप देने और उन्हें व्यावहारिक उपयोग के अनुरूप डिजाइन करने में कठिनाई होती है, जिससे डीप टेक इकोसिस्टम के समग्र विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
आगे की राह
- स्पिनआउट: प्रयोगशालाओं/ संस्थानों को अधिक संख्या में स्पिनआउट (इन्फोग्राफिक देखें) की स्थापना में सहयोग देने से डीप-टेक स्टार्टअप्स के सृजन के लिए एक सतत और सशक्त चक्र शुरू हो सकता है। साथ ही, प्रयोगशालाओं/ संस्थानों को अपने अनुसंधान को आगे बढ़ाने हेतु बाहरी स्रोतों से राजस्व अर्जित करने में सक्षम बनाया जाना चाहिए।
- अवसंरचनाओं का विकास: विशेष रूप से पांच फोकस क्षेत्रों (मेडिकल डिवाइसेज, अंतरिक्ष, रक्षा, कृषि और विनिर्माण) में इनोवेशन क्लस्टरों की पहचान करनी चाहिए और उन्हें मजबूत करना चाहिए।
- इसके अलावा, विशेष अनुसंधान एवं विकास सुविधाओं की स्थापना की जानी चाहिए, जिनमें हाई-परफॉर्मेंस कम्प्यूटिंग रिसोर्सेज, सिमुलेशन टूल्स एवं उत्पाद के परीक्षण के लिए सक्षम परिवेश जैसी सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए।
- निवेश-अनुकूल व्यवस्था को बढ़ावा देना: वेंचर कैपिटलिस्ट (VCs) के साथ सह-निवेश कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए। साथ ही, सरकार समर्थित उपायों (जैसे कि सब्सिडी, ऋण) को बढ़ावा देना चाहिए और वेंचर कैपिटल निवेश से जुड़े नियमों को आसान बनाना चाहिए।
- इसके अलावा, भारत को डीप टेक के बारे में निवेशकों को जागरूक करना चाहिए और इसका महत्व बताना चाहिए। साथ ही, ऋण गारंटी, रेगुलेटरी सैंडबॉक्स (उत्पाद का वास्तविक स्थिति में परीक्षण) आदि के माध्यम से निवेशकों के निवेश की चिंताओं को दूर करना चाहिए।
- अनुसंधान एवं विकास के लिए नीतिगत प्रोत्साहन: उत्पादों के प्रोटोटाइप निर्माण हेतु स्टार्टअप्स को अनुदान दिया जाना चाहिए और उनके परीक्षण के लिए रेगुलेटरी सैंडबॉक्स की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, स्टार्टअप्स को उद्योग जगत से जोड़ने वाले इंटरफेस प्लेटफॉर्म विकसित किए जाने चाहिए तथा डीप टेक अनुसंधान एवं विकास पर होने वाले व्यय को प्रोत्साहित करने के लिए टैक्स क्रेडिट (कर में छूट) जैसी योजनाएं शुरू की जानी चाहिए।
- नेशनल डीप टेक स्टार्टअप पॉलिसी (NDTSP) को लागू करना: NDTSP को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए एक व्यापक और स्पष्ट रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए। साथ ही, इसके क्रियान्वयन की प्रगति की निगरानी और प्रभावी मूल्यांकन के लिए एक मजबूत निगरानी तंत्र की स्थापना आवश्यक है।