परिचय
राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (National Centre for Disease Control: NCDC) के अनुसार, 2024 में 37 लाख से अधिक कुत्तों के काटने के मामले दर्ज किए गए। WHO के अनुसार, वैश्विक स्तर पर रेबीज से होने वाली मौतों में से एक-तिहाई भारत में होती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने स्वतः संज्ञान आदेश (Suo motu order) में संशोधन किया, जिसमें दिल्ली-एनसीआर शेल्टर्स में सभी आवारा कुत्तों को बंद करने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने निर्णय दिया कि कुत्तों को, एक बार कृमिनाशक दवा (deworming) देने और टीकाकरण (vaccination) के बाद, उनके मूल क्षेत्रों में वापस छोड़ा जाना चाहिए।
ये घटनाक्रम नागरिकों की सुरक्षा चिंताओं के साथ आवारा कुत्तों के संरक्षण को संतुलित करने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
प्रमुख हितधारक और निहित हित
हितधारक | हित |
निवासी |
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पालतू जानवरों के मालिक |
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सरकार और उसकी एजेंसियां |
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सर्वोच्च न्यायालय |
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पशु कल्याण संगठन |
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आवारा कुत्तों के प्रबंधन में नैतिक मूल्यों का संघर्ष
- करुणा बनाम सार्वजनिक सुरक्षा: आवारा कुत्तों को खाना खिलाना उन्हें जीवित रख सकता है, लेकिन यह उनकी आबादी और क्षेत्रीय आक्रामकता भी बढ़ा सकता है।
- पशु अधिकार बनाम मानव अधिकार: यह मौलिक सिद्धांत कि "जीने की इच्छा रखने वाले हर प्राणी को दर्द और पीड़ा से मुक्त रहने का अधिकार है" सार्वजनिक स्थानों की सुरक्षा, संपत्ति की सुरक्षा और भय से मुक्ति के लिए मनुष्यों के वैध अधिकारों के साथ संघर्ष उत्पन्न होता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू केस, 2014 में, निर्णय सुनाते हुए जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 21) की व्याख्या को विस्तारित करते हुए जानवरों को भी इसमें शामिल किया।
- कांट का दायित्ववाद बनाम उपयोगितावाद: कांट का श्रेणीबद्ध आदेश (categorical imperative) सभी प्राणियों को अपने आप में एक साध्य के रूप में स्वीकार करने की मांग करता है, न कि केवल साधन के रूप में। आवारा कुत्तों का जबरन स्थानांतरण या डंपिंग उनकी गरिमा का उल्लंघन करता है।
- यह दृष्टिकोण उपयोगितावादी मॉडल के विरुद्ध है, जिसमें मानव सुविधा के लिए जानवरों का बलिदान किया जा सकता है।
- गैर-हानिकारक दुविधा (The Non-Maleficence Dilemma): "हानि मत पहुँचाओ" का चिकित्सा सिद्धांत जानवरों और मनुष्यों दोनों पर लागू होता है, जिसके लिए ऐसे समाधानों की आवश्यकता होती है जो सभी पक्षों के नुकसान को कम करे।
- वर्तमान दृष्टिकोण अक्सर इस सिद्धांत में असफल होते हैं क्योंकि या तो जानवरों को क्रूर नियंत्रण तरीकों से चोट पहुँचाई जाती है या मनुष्यों को अपर्याप्त जनसंख्या प्रबंधन के कारण नुकसान झेलना पड़ता है।
- अधिकार-कर्तव्य के मध्य विरोधाभास (The Rights-Duties Paradox): भले ही जानवरों पर कानूनी कर्तव्य लागू नहीं होते, लेकिन वे शिशु या दिव्यांग व्यक्ति की तरह ही अधिकारों के हकदार हैं। यह उनकी सुभेद्यता और संवेदनशीलता के कारण है, न कि उनकी उपयोगिता की वजह से।
आवारा कुत्तों के नैतिक प्रबंधन के तरीके

- परोपकार का सिद्धांत (The Principle of Beneficence): जानवरों और मनुष्यों दोनों के कल्याण को सक्रिय रूप से बढ़ावा देने के लिए प्रोएक्टिव (सक्रिय) और सुविचारित हस्तक्षेप आवश्यक हैं, न कि केवल प्रतिक्रियात्मक उपाय।
- पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2023 व्यवस्थित नसबंदी और टीकाकरण कार्यक्रमों के माध्यम से इस सिद्धांत को क्रियान्वित करने का एक प्रयास है।
- नीदरलैंड में आश्रय गृहों से कुत्तों को गोद लेने को प्रोत्साहित करने के लिए स्टोर से खरीदे गए कुत्तों पर उच्च कर लगाया गया है।
- आनुपातिकता और क्रमिक प्रतिक्रिया: आवारा कुत्तों के मुद्दों पर प्रतिक्रियाएं वास्तविक जोखिमों के अनुपात में होनी चाहिए। हालांकि, अपर्याप्त कार्रवाई और अत्यधिक प्रतिक्रिया दोनों से ही बचना चाहिए। यह सिद्धांत मांग करता है:
- व्यापक नीतियों के बजाय स्थानीय जरूरतों का साक्ष्य-आधारित मूल्यांकन करना।
- ऐसे उपायों को बढ़ावा देना, जो कम-से-कम हानिकारक हैं।
- उदाहरण के लिए, दिल्ली-NCR में रेबीज के मामलों में वृद्धि के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने आश्रय गृह बनाने, आवारा कुत्तों को स्थानांतरित करने और पेशेवर प्रबंधन, नसबंदी सुनिश्चित करने का आदेश दिया।
- सभी प्रभावित पक्षों के लिए परिणामों के आधार पर उपायों का नियमित मूल्यांकन और समायोजन।
- सद्गुण नैतिकता (Virtue Ethics): यह दृष्टिकोण किसी मामले का हल करने में करुणा, जिम्मेदारी और ज्ञान जैसे गुणों को विकसित करने पर केंद्रित है।
- यह सामुदायिक जुड़ाव, शिक्षा और नैतिक उत्कृष्टता को दर्शाने वाली संधारणीय प्रथाओं के विकास पर जोर देता है।
- राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम का प्रभावी कार्यान्वयन: यह रेबीज के बढ़ते मामलों को रोकने और नियंत्रित करने के लिए टियर-1 और टियर-2 शहरों को लक्षित करने वाली एक चरणबद्ध योजना है। इसके तहत, जानवरों द्वारा काटने के कारण होने वाले रेबीज के मामलों के लिए निगरानी तंत्र को भी मजबूत किया जा रहा है।
- स्थानीय निकायों और स्वयंसेवकों को सशक्त बनाना: RWAs, स्थानीय अधिकारियों और VOSD जैसे गैर-सरकारी संगठनों को कुत्ते की देखभाल का प्रबंधन करना चाहिए। जो लोग सीधे मदद करने में असमर्थ हैं, उन्हें इन प्रयासों को आर्थिक रूप से समर्थन देना चाहिए।
निष्कर्ष
आवारा कुत्तों का प्रबंधन एक जटिल समस्या है, जिसके लिए बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें स्थानीय शासकीय निकाय, समुदाय और पशु अधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं। अंततः वन हेल्थ अप्रोच (One Health Approach) के लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए।
अपनी नैतिक अभिक्षमता का परीक्षण कीजिएआप एक बड़े भारतीय शहर के नगर आयुक्त हैं, जहां हाल ही में कुत्ते के काटने के मामलों और रेबीज से होने वाली मौतों में तेजी से वृद्धि हुई है। पशु कल्याण संगठन आवारा कुत्तों के किसी भी रूप में स्थानांतरण या मारने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस बीच, वहां के निवासी लोक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्टों ने जनता के भय को बढ़ा दिया है और आप पर जल्दी कार्रवाई करने का दबाव है। उपर्युक्त केस स्टडी के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
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