महाराष्ट्र सरकार ने हिंदी को स्कूलों में तीसरी भाषा बनाने के लिए एक सरकारी प्रस्ताव जारी किया | Current Affairs | Vision IAS
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महाराष्ट्र सरकार ने हिंदी को स्कूलों में तीसरी भाषा बनाने के लिए एक सरकारी प्रस्ताव जारी किया

Posted 19 Jun 2025

13 min read

यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 के अनुरूप 'स्कूली शिक्षा के लिए राज्य पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क 2024' के कार्यान्वयन के हिस्से के रूप में उठाया गया है।

प्रस्ताव के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:

  • कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को, जो मराठी या अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ते हैं, उन्हें हिंदी तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जाएगी।
  • यदि प्रत्येक कक्षा में कम-से-कम 20 छात्र किसी अन्य भारतीय भाषा को पढ़ना चाहें, तो उन्हें हिंदी पढ़ने से छूट दी जा सकती है।

त्रि-भाषा फॉर्मूला क्या है?

  • उत्पत्ति: इसे पहली बार 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शामिल किया गया था, जो कोठारी आयोग की सिफारिशों पर आधारित थी।
    • इसमें कहा गया था कि छात्रों को मातृभाषा/ क्षेत्रीय भाषा, एक आधिकारिक भाषा, और एक आधुनिक भारतीय या यूरोपीय भाषा पढ़ाई जानी चाहिए।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: राष्ट्रीय शिक्षा नीति में किसी भी भाषा को थोपे बिना त्रि-भाषा फॉर्मूला (जिसमें कम-से-कम दो स्थानीय भाषाएं हों) को बढ़ावा देने की बात कही गई है। इसमें राज्यों, क्षेत्रों और बच्चों की पसंद का ध्यान रखा गया है। 
    • इसमें यह भी कहा गया है कि जहां तक संभव हो, कम-से-कम कक्षा 5 तक, और बेहतर हो तो कक्षा 8 या उससे आगे तक, शिक्षा का माध्यम मातृभाषा/ स्थानीय भाषा/ क्षेत्रीय भाषा होना चाहिए।

त्रि-भाषा नीति की आवश्यकता क्यों है?

  • संवैधानिक प्रावधान: संविधान के अनुच्छेद 350A के तहत राज्यों को प्राथमिक स्तर की शिक्षा विशेष रूप से भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए मातृभाषा में देने का निर्देश दिया गया है। साथ ही, अनुच्छेद 351 के तहत हिंदी भाषा के विकास के लिए राज्यों को निर्देशित किया गया है।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: यह बहुभाषावाद, बहुसंस्कृतिवाद, राष्ट्रीय एकता और युवा छात्रों के संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देती है।

त्रि-भाषा नीति को लागू करने में चुनौतियां

  • राजनीतिकरण: बहुभाषी शिक्षा को कई बार स्थानीय भाषाओं की पहचान के लिए खतरा माना जाता है। उदाहरण के लिए- महाराष्ट्र और कर्नाटक के मूल निवासियों द्वारा हिंदी का विरोध।
  • विकल्प बनाम थोपना: भाषा सीखना थोपने की बजाय विकल्प होना चाहिए।
  • प्राथमिक छात्रों पर अत्यधिक बोझ: पहले से ही भारत में कई बच्चे बुनियादी साक्षरता से जूझ रहे हैं। ऐसे में तीन भाषाएं जोड़ना उनके लिए शैक्षणिक दबाव बढ़ा सकता है।
  • कार्यान्वयन की चुनौतियां: भाषाई रूप से विविध राज्यों (जैसे नागालैंड) और जनजातीय क्षेत्रों में इसे लागू करना कठिन है। कई राज्यों के पास शिक्षकों, प्रशिक्षण और संसाधनों की कमी है।
  • Tags :
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)
  • त्रिभाषा नीति
  • स्कूली शिक्षा
  • हिंदी
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