मंत्रालय ने निम्नलिखित कानूनों के तहत मध्यवर्तियों को गैर-कानूनी जानकारी हटाने का निर्देश दिया है-
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT अधिनियम, 2000), तथा
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021.
ये वेबसाइट्स निम्नलिखित कानूनों का उल्लंघन कर रही थीं:
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 और धारा 67A,
- भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 294,
- महिलाओं का अशिष्ट चित्रण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986 की धारा 4.
- अश्लील कंटेंट से तात्पर्य ऐसे कंटेंट से है, जो समाज के शिष्टता और नैतिकता के स्वीकृत मानकों के अनुसार आपत्तिजनक, घृणित या नैतिक रूप से अपमानजनक होते हैं।
अश्लील कंटेंट पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता क्यों है?
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(2): यह राज्य को "शिष्टाचार और नैतिकता" के हित में अभिव्यक्ति की आजादी पर "उचित प्रतिबंध" लगाने की अनुमति देता है।
- इससे संबंधित केस लॉ: रंजीत डी. उदेशी बनाम महाराष्ट्र राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 292 (BNS, 2023 की धारा 294) के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा और कहा कि अश्लीलता को अभिव्यक्ति की आजादी के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है।
- महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा: कम उम्र में अश्लील कंटेंट के संपर्क में आने से बच्चों में रिश्तों के बारे में समझ बिगड़ सकती है और महिलाओं को वस्तु के रूप में देखा जाने लगता है। इससे लैंगिक असमानता एवं हिंसा को बढ़ावा मिलता है।
- अश्लीलता से सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का नष्ट होना: इसलिए, मिल की हार्म थ्योरी के तहत इस तरह के प्रतिबंध को उचित ठहराया जाता है। इसके अनुसार दूसरों को नुकसान पहुंचाने या सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाने वाली स्वतंत्रता को कानून द्वारा सीमित किया जा सकता है।
- मिल की हार्म थ्योरी 'ऑन लिबर्टी (1859)' में वर्णित है।