17वीं लोक सभा के सत्र में, लोक सभा ने अपने निर्धारित समय का 88% कार्य किया, जबकि राज्य सभा ने अपने निर्धारित समय का 73% कार्य किया।
- 1950 के दशक में भारतीय संसद की बैठक प्रतिवर्ष 120-140 दिनों के लिए होती थी, जबकि अब यह घटकर 60 से 70 दिन रह गई है।

संसदीय व्यवधान से उत्पन्न समस्याएं
- लोकतांत्रिक जवाबदेही का कमजोर होना: संसदीय बहसों से निर्वाचित नेता सरकार से सवाल पूछ सकते हैं, लेकिन व्यवधान इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करते हैं।
- मौद्रिक लागत: संसद चलाने की लागत लगभग 2.5 लाख रुपये प्रति मिनट है।
- संसद में जनता के विश्वास में कमी: बार-बार व्यवधान के कारण सांसदों का ध्यान महत्वपूर्ण मुद्दों को सुलझाने से हटकर कार्यवाही को रोकने पर केंद्रित हो जाता है।
संसद में व्यवधान को दूर करने के लिए अपनाए जा सकने वाले उपाय
- विपक्ष के लिए समर्पित समय सुनिश्चित करना: उदाहरण के लिए- ब्रिटिश संसद विपक्ष द्वारा एजेंडा तय करने के लिए प्रत्येक वर्ष 20 दिन का समय निर्धारित करती है।
- नैतिकता समितियों को मजबूत करना: इससे व्यवधानों की निगरानी करने और रिपोर्ट करने तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।
- वार्षिक संसदीय कैलेंडर: सीमित लचीलेपन के लिए बैठकों का कैलेंडर प्रत्येक वर्ष के आरंभ में घोषित किया जाना चाहिए।