सुर्ख़ियों में क्यों?
यू.एन. वीमेन ने चेतावनी दी है कि 'मैनोस्फीयर' के नाम से ज्ञात ऑनलाइन समुदायों का एक बढ़ता हुआ नेटवर्क लैंगिक समानता के समक्ष एक गंभीर खतरा बनकर उभर रहा है।
मैनोस्फीयर क्या है?
- 'मैनोस्फीयर' एक व्यापक शब्दावली है, जिसका अर्थ है- "ऑनलाइन समुदाय का एक ऐसा नेटवर्क, जो पुरुषत्व (Masculinity) की संकीर्ण और आक्रामक परिभाषा को बढ़ावा" देता है। यह समुदाय यह झूठा दावा करता है कि नारीवाद (Feminism) और लैंगिक समानता ने पुरुषों के अधिकारों को नुकसान पहुंचाया है।
- इनकी सोच में पुरुष का मूल्य उसके भावनात्मक नियंत्रण, आर्थिक सामर्थ्य, शारीरिक आकृति और महिलाओं पर नियंत्रण की क्षमता से आंका जाता है।
- यह सोच महिलाओं के प्रति घृणा (misogyny) और नारीवाद विरोधी विचारों पर आधारित है। 'मैनोस्फीयर' डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल नफरत फैलाने, महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण सोच फैलाने और लैंगिक पूर्वाग्रह को बढ़ावा देने के लिए करता है।
'मैनोस्फीयर' के बढ़ने के लिए जिम्मेदार कारक
- इंटरनेट तक बढ़ती पहुंच: इसने सोशल मीडिया और विविध मैनोस्फीयर इन्फ्लुएंसर्स तक ऑनलाइन पहुंच को सक्षम बनाया है।
- कुल इंटरनेट सब्सक्राइबर्स की संख्या 2014 के 251 मिलियन से बढ़कर मार्च 2024 में 954 मिलियन हो गई है।
- मैनोस्फीयर इन्फ्लुएंसर्स: स्वयं-घोषित लाइफस्टाइल कोच युवा पुरुषों को व्यक्तिगत जिम्मेदारी सिखाकर आकर्षित करते हैं। हालांकि, ऐसे कोच यह दावा करते हैं कि पुरुष समाज के पुरुष-द्वेष (Misandry) (पुरुषों के प्रति पूर्वाग्रह) के पीड़ित हैं।
- एल्गोरिदम का प्रभाव: "आगे क्या देखें" (Watch next) एल्गोरिदम तेजी से अधिक सेक्सिस्ट और नारी-विरोधी कंटेंट जैसे कि "AWALT: ऑल वीमेन आर लाइक दैट" विचारधारा की सिफारिश करता है।
- असुरक्षाएं और सत्यापन की आवश्यकताएं: आजकल कई युवा पुरुष सामाजिक रूप से अकेलापन महसूस करते हैं और उन्हें किसी समूह से जुड़ाव चाहिए होता है। इसी कारण वे 'मैनोस्फीयर' जैसे समूहों की ओर आकर्षित होते हैं, जहां उन्हें समर्थन व अभिपुष्टि मिलती है।
- बढ़ता रूढ़िवाद: यू.एन. वीमेन के अध्ययनों से पता चलता है कि युवा पुरुषों में वृद्ध पुरुषों की तुलना में अधिक रूढ़िवादी लैंगिक विचार होते हैं।
- डिजिटल पहचान छुपी रहती है: इंटरनेट पर गुमनाम रहने से सामाजिक या कानूनी सजा का डर कम हो जाता है। इससे महिलाओं के खिलाफ नफरत एवं भेदभाव फैलाना आसान हो जाता है।
मैनोस्फीयर के नकारात्मक प्रभाव
- बढ़ता हुआ स्त्री द्वेष (Misogyny): यह लैंगिक समानता को कमजोर करता है। पुरुषों के अधिकारों के लिए काम करने वाले समूह 'मोवेंबर फाउंडेशन' के अनुसार, दो-तिहाई युवा पुरुष नियमित रूप से ऑनलाइन पुरुषत्व से संबंधित प्रभावशाली लोगों से जुड़े रहते हैं।
- उदाहरण के लिए- गेमरगेट एक ऑनलाइन उत्पीड़न अभियान था, जिसमें महिला गेमर्स को पुरुष प्रधान सोच रखने वालों ने निशाना बनाया था।
- हिंसा का सामान्यीकरण: मैनोस्फीयर की अत्यधिक अभिव्यक्ति महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को सामान्य बनाती है। इसका कट्टरता और अतिवादी विचारधाराओं से भी संबंध बढ़ रहा है।
- सामाजिक नुकसान: लैंगिक असमानता पुरुषों और महिलाओं दोनों को नुकसान पहुँचाती है। प्रतिबंधात्मक लैंगिक दृष्टिकोण रखने वाले पुरुषों में जोखिम भरे व्यवहार, मादक द्रव्यों का सेवन, अवसाद और आत्महत्या के विचार ज़्यादा होने की संभावना होती है।
- पुरुषों के स्वास्थ्य पर प्रभाव: मोवेंबर के सर्वेक्षण से पता चलता है कि मैनोस्फीयर के संपर्क में आने से पुरुषों में आत्मविश्वास कम होता है, जिससे उन्हें स्वयं को लेकर हीन भावना महसूस होती है और घबराहट होती है। साथ ही, वे जोखिम भरे सप्लीमेंट्स का उपयोग करते हैं, चोट लगने के बावजूद व्यायाम करते हैं और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना कम कर देते हैं।
- लैंगिक समानता को उलटना: मैनोस्फीयर की रूढ़िवादिता ऐसे मिथकों को बढ़ावा देती है, जो महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकते हैं।
- ऑनलाइन हिंसा का जोखिम: अध्ययनों से पता चलता है कि 16-58% महिलाओं और लड़कियों को ऑनलाइन हिंसा का सामना करना पड़ता है। साइबर हिंसा डिजिटल प्लेटफॉर्म की अनामिता और पहुंच का फायदा उठाती है।
'मैनोस्फीयर' से निपटने के लिए शुरू की गई पहलें
- वैश्विक स्तर पर शुरू की गई पहलें
- बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन (1995): यह मीडिया, विशेष रूप से डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर महिलाओं की संतुलित और गैर-रूढ़िवादी छवि दिखाने का समर्थन करता है।
- यू.एन. वीमेन ने एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है। इसमें ऑनलाइन घृणा के प्रसार एवं प्रभाव पर अनुसंधान और डेटा संग्रह शामिल है।
- 'मेकिंग ऑल स्पेसेस सेफ' पहल (UNFPA): यह पहल तकनीक के माध्यम से होने वाली लैंगिक हिंसा से निपटने के लिए शुरू की गई है।
- EU का डिजिटल सर्विसेज एक्ट: यह कानून डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर महिलाओं के खिलाफ नफरत फैलाने वाले और लैंगिक भेदभाव वाले कंटेंट पर रोक लगाता है।
- भारत में आरंभ की गई पहलें
- स्त्री अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986: यह कानून डिजिटल मीडिया में महिलाओं की अशिष्ट या अपमानजनक प्रस्तुति को अपराध मानता है।
- आई.टी. नियम, 2021: इन नियमों के तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए किसी आपत्तिजनक कंटेंट की शिकायत मिलने पर 24 घंटे के भीतर उसे हटाना अनिवार्य है।
- डिजिटल शक्ति: यह राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की एक पहल है, जिसका उद्देश्य महिलाओं और लड़कियों को साइबर दुनिया में सक्षम बनाना तथा उनके लिए इंटरनेट को एक सुरक्षित स्थान बनाना है।
- सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008: यह महिलाओं के खिलाफ उभरते साइबर अपराधों से निपटता है। जैसे कि धारा 67A- जो डिजिटल दुर्व्यवहार से जुड़े मामलों में महत्वपूर्ण है।
- भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 75, 78 और 79: भारतीय न्याय संहिता के तहत महिलाओं का ऑनलाइन उत्पीड़न और उनके साथ साइबरबुलिंग एक अपराध है।
आगे की राह
- कानूनी उपाय: जैसे यूनाइटेड किंगडम का ऑनलाइन सुरक्षा अधिनियम। इस कानून के तहत साइट्स और ऐप्स को बच्चों एवं महिलाओं को उनके प्रति घृणा फैलाने वाले व अपमानजनक स्त्री-द्वेष कंटेंट सहित हानिकारक कंटेंट से भी बचाना होगा।
- रोकथाम के रूप में शिक्षा: मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देना और उस पर शोध करना चाहिए। इसमें यह समझना शामिल है कि लोग अपनी ऑनलाइन दुनिया में कैसे नेविगेट करते हैं और संभावित हानिकारक कंटेंट के साथ उनकी अंतर्क्रिया कैसी होती है।
- यूएन वीमेन द्वारा सुझाई गई अधिकार-आधारित प्रतिक्रिया: इसमें ऑनलाइन दुर्व्यवहार के पीड़ित लोगों के लिए समर्थन जुटाने तथा डिजिटल लचीलापन बनाने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से युवा-केंद्रित कार्यक्रम जैसे कदम शामिल हैं।
- मैनोस्फीयर-विरोधी कंटेंट निर्माताओं को बढ़ावा देना: Reddit फ़ोरम और 'HeForShe' जैसे क्रिएटर्स मैनोस्फीयर छोड़ने वाले पुरुषों का समर्थन करते हैं।