भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी (INDIA’S NEIGHBOURHOOD FIRST POLICY: NFP) | Current Affairs | Vision IAS
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भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी (INDIA’S NEIGHBOURHOOD FIRST POLICY: NFP)

Posted 10 Apr 2025

Updated 12 Apr 2025

38 min read

सुर्ख़ियों में क्यों? 

भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी (NFP) को एक दशक पूरा हुआ। 

भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी (NFP) के बारे में

  • उत्पत्ति: नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी की परिकल्पना 2008 में की गई थी तथा 2014 के बाद इस पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा था। 
  • अवधारणा: भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी' उसके अपने पड़ोसी देशों के साथ व्यवहार करने का तरीका है। यह नीति निकटवर्ती पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को प्रबंधित करने की रणनीति को दिशा प्रदान करती है।
  • NFP में शामिल देश: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका।
  • उद्देश्य: पूरे क्षेत्र में भौतिक, डिजिटल एवं लोगों के बीच संपर्क बढ़ाना तथा क्षेत्र में व्यापार एवं वाणिज्य को बढ़ावा देना।
  • आपसी जुड़ाव या संलग्नता के मुख्य सिद्धांत: भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी आपसी जुड़ाव के पांच मुख्य सिद्धांतों पर आधारित है, जिन्हें 5 'स' कहा जाता है: सम्मान, संवाद, शांति, समृद्धि, और संस्कृति। इस नीति में एक सलाहकारी रवैया अपनाया जाता है, जिसमें तत्काल लाभ पर ज़ोर न देकर दीर्घकालिक संबंधों को महत्त्व दिया जाता है, ठोस परिणामों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, और पड़ोसी देशों के साथ समग्र रूप से जुड़ने का प्रयास किया जाता है।

भारत की NFP के प्रमुख पहलू

  • कनेक्टिविटी के माध्यम से आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना: इसका उद्देश्य परस्पर निर्भरता का विकास करना है। यह भारत के प्रभाव को मजबूत करेगी और बाहरी शक्तियों को प्रतिसंतुलित करेगी। 
    • उदाहरण के लिए- बांग्लादेश: जुलाई 2024 में मोंगला बंदरगाह पर एक टर्मिनल के परिचालन अधिकार और रेल पारगमन से पूर्वोत्तर भारत के लिए वस्तुओं की ढुलाई लागत कम हो गई है।
  • उच्च स्तरीय राजनीतिक सहभागिता में वृद्धि: एक स्थिर क्षेत्रीय परिवेश सुनिश्चित करते हुए विश्वास का निर्माण करना और राजनयिक संबंधों को मजबूत करना।
    • उदाहरण के लिए- नेपाल: भारत के प्रधान मंत्री की 2014 में नेपाल यात्रा, जो 17 वर्षों बाद किसी भारतीय प्रधान मंत्री की इस देश में पहली द्विपक्षीय यात्रा थी।
    • उदाहरण के लिए- अफगानिस्तान: भारत द्वारा किए गए विविध विकासात्मक कार्य, जैसे कि जरांज-डेलाराम सड़क मार्ग, पुल-ए-खुमरी से काबुल ट्रांसमिशन लाइन, सलमा बांध विद्युत परियोजना, अफगान संसद निर्माण, आदि।
  • विकास संबंधी सहायता एवं अवसंरचनात्मक परियोजनाएं: पड़ोसियों को संकट के समय एवं दीर्घकालिक विकास के लिए सहायता प्रदान करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके परिणामस्वरूप, भारत को एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए- मालदीव: ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट ब्रिज, हनुमाधू एयरपोर्ट, आदि।
  • ऊर्जा सहयोग और क्षेत्रीय विद्युत बाजार: क्षेत्रीय ऊर्जा बाजारों का विकास करना तथा जलविद्युत एवं अन्य विद्युत व्यापार समझौतों के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करना।
    • उदाहरण के लिए- बांग्लादेश: 2024 में, भारत के माध्यम से नेपाल से बांग्लादेश को 40 मेगावाट बिजली निर्यात करने के लिए त्रिपक्षीय विद्युत व्यापार समझौता हुआ था।
  • भू-राजनीतिक संतुलन और बाहरी प्रभाव से निपटना: यह नीति चीन को प्रतिसंतुलित करने और दक्षिण एशिया को भारत के प्रभाव क्षेत्र के रूप में बनाए रखने के अवसर प्रदान करती है।
    • उदाहरण के लिए, मालदीव: मालदीव को लगातार वित्तीय सहायता (विशेष रूप से मुद्रा विनिमय) चीन के प्रभाव से निपटने का प्रत्यक्ष प्रयास है।
  • मानवीय और आपदा राहत कार्य: भारत ने लगातार क्षेत्र में प्रथम सहायता प्रदाता के रूप में प्रतिक्रिया दी है।
    • उदाहरण के लिए- वैक्सीन मैत्री: मालदीव और भूटान को "नेबरहुड फर्स्ट" नीति के अनुरूप सबसे पहले वैक्सीन प्रदान की गई थी।
    • उदाहरण के लिए- श्रीलंका: 2022 के आर्थिक संकट के दौरान भारत की ओर से 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वित्त-पोषण।

अपने पड़ोस में भारत के सामने आने वाली चुनौतियां

  • आंतरिक अस्थिरता: हाल ही में पड़ोसी देशों में हुई राजनीतिक उथल-पुथल और अस्थिरता का क्षेत्रीय स्थिरता एवं पड़ोस में भारत के रणनीतिक हितों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। (इन्फोग्राफिक देखें)
  • हस्तक्षेपकर्ता की छवि: एक हस्तक्षेपवादी शक्ति (कथित 'बिग-ब्रदर' व्यवहार) के रूप में भारत की नकारात्मक छवि के परिणामस्वरूप, पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध खराब हो रहे हैं।
    • उदाहरण के लिए- भारत द्वारा 2015 में की गई नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी। भारत के इस कदम को मधेशी हितों की रक्षा के रूप में देखा गया था, किंतु इससे वहां भारत विरोधी भावनाओं को बढ़ावा मिला था।
  • परियोजनाओं का धीमा कार्यान्वयन: पड़ोसी देशों में चल रही अवसंरचनात्मक परियोजनाओं में देरी से विश्वास कम होता है एवं भारत विरोधी भावनाओं को बढ़ावा मिलता है।
    • उदाहरण के लिए- मालदीव में ग्रेटर माले कनेक्टिविटी परियोजना को पूरा करने में बहुत अधिक समय लग रहा है। इससे यह परियोजना मालदीव में एक राजनीतिक मुद्दा बन गई है। 
  • अनसुलझे विवाद एवं टकराव: भारत अपने पड़ोसियों के साथ जल बंटवारे, टैक्स एवं समुद्री क्षेत्र में मत्स्यन जैसे प्रमुख मुद्दों को हल करने में विफल रहा है। इस कारण से भारत का अपने पड़ोसियों से निरंतर टकराव होता रहता है।
    • उदाहरण के लिए- बांग्लादेश के साथ तीस्ता नदी के जल का बंटवारा, श्रीलंकाई जल क्षेत्र में भारतीय मछुआरों द्वारा अवैध रूप से मछली पकड़ना और नेपाल के साथ कालापानी विवाद अभी भी अनसुलझे हैं।
  • संघ और राज्यों में समन्वय का अभाव: आंतरिक नीतिगत विसंगतियां व्यापार और पारगमन को प्रभावित करती हैं, जिससे तनाव बढ़ता है। 
    • उदाहरण के लिए- पश्चिम बंगाल द्वारा लागू किए गए 'सुविधा शुल्क' ने भारत के जरिये भूटान से बांग्लादेश को होने वाले बोल्डर निर्यात की लागत बढ़ा दी है।
  • चीन का बढ़ता प्रभाव: भारत के प्रयासों के बावजूद, दक्षिण एशिया में चीन की बढ़ती उपस्थिति भारत के क्षेत्रीय प्रभुत्व को चुनौती दे रही है। चीन विशेष रूप से श्रीलंका (जैसे- हंबनटोटा बंदरगाह), नेपाल व बांग्लादेश (BRI में शामिल) और मालदीव में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है।

आगे की राह

  • राजनयिक जुड़ाव और संवेदनशीलता: भारत को अपने पड़ोसी देशों की राजनीतिक वास्तविकताओं और आंतरिक मुद्दों के प्रति संवेदनशील रहकर कूटनीतिक संबंध मजबूत करने की आवश्यकता है।
    • चूंकि इनमें से अधिकांश देश लोकतांत्रिक हैं, इसलिए चुनावी चक्रों और प्रतिस्पर्धी राजनीति के दबावों का संतुलित प्रबंधन भी जरूरी होगा।
  • अनसुलझे विवादों का समाधान करना: भारत को अपने पड़ोसियों के साथ लंबे समय से चल रहे मुद्दों को हल करना चाहिए। उदाहरण के लिए- जल बंटवारे से संबंधित विवाद (जैसे- तीस्ता नदी का मुद्दा) और क्षेत्रों को लेकर विवाद (जैसे- कालापानी व कच्चातिवु) आदि।
  • आर्थिक सहायता को संतुलित करना: आर्थिक सहायता की पेशकश करते समय, भारत को अत्यधिक निर्भरता को बढ़ावा देने से बचना चाहिए। साथ ही, एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में भारत की छवि को मजबूत करने के लिए परियोजनाओं को कुशलतापूर्वक लागू किया जाना चाहिए।
  • भू-राजनीतिक संतुलन: क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करते हुए भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पड़ोसी देश किसी एक पक्ष को चुनने के लिए दबाव महसूस न करें।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रोत्साहित करना: भारत को राजनीतिक अस्थिरता से संबंधित चिंताओं को दूर करते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का समर्थन करना चाहिए। जैसा कि बांग्लादेश, मालदीव, अफगानिस्तान और म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता देखी गई है।
  • घरेलू राजनीतिक बदलावों के प्रति अनुकूलित होना: भारत को राजनयिक संबंधों के प्रति अपने दृष्टिकोण में लचीला रहना चाहिए, विशेषकर मालदीव और श्रीलंका जैसे देशों को लेकर, जहां घरेलू राजनीति अक्सर बदलती रहती है।

निष्कर्ष

सम्मान, संवाद, शांति, समृद्धि और संस्कृति द्वारा निर्देशित भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी, चीन की नव-साम्राज्यवादी एवं ऋण-जाल कूटनीति के विपरीत है। भारत की नीति सहकारी, संधारणीय एवं पारस्परिक रूप से लाभकारी क्षेत्रीय संबंधों को बढ़ावा देती है।

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  • नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी
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