सुर्खियों में क्यों?
हाल ही में, रक्षा मंत्री ने हाइब्रिड वारफेयर से भारत को होने वाले संभावित खतरे के बारे में रेखांकित किया।
अन्य संबंधित तथ्य
- रक्षा मंत्री ने सीमा सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के बीच ख़त्म होते अंतर या दोनों के बीच धुंधली होती सीमा को रेखांकित किया है। साथ ही, इस बात पर भी बल दिया है कि हाइब्रिड वारफेयर भारत की महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसंरचनाओं (क्रिटिकल नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर) के लिए खतरा बन सकता है।
- उन्होंने कहा कि फ्रंटलाइन वार की पारंपरिक अवधारणा तेजी से बदल रही है, क्योंकि आतंकवाद, उग्रवाद, साइबर युद्ध या साइबर अटैक, मानव तस्करी या मानवीय संकट जैसे खतरे देश की सीमाओं तक सीमित नहीं हैं। साथ ही, ये भारत की आंतरिक सुरक्षा की मान्य धारणाओं को भी चुनौती दे रहे हैं।
हाइब्रिड वारफेयर के बारे में
- परिभाषा: हाइब्रिड वारफेयर को एसिमेट्रिक वारफेयर के रूप में भी जाना जाता है। यह पारंपरिक युद्ध-नीतियों (काइनेटिक वारफेयर) और गैर-पारंपरिक रणनीतियों (नॉन-काइनेटिक वारफेयर) का मिश्रण है। इसका उपयोग अक्सर पूर्ण युद्ध का सहारा लिए बिना राजनीतिक या सामरिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
- उदाहरण के लिए:
- चीन की तीन 'थ्री वारफेयर' स्ट्रैटेजी (TWS) यानी त्रि- युद्ध रणनीति, जिसमें मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक और कानूनी रणनीतियां शामिल हैं;
- रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान साइबर अटैक, गलत सूचनाओं का प्रसार एवं दुष्प्रचार का उपयोग देखने को मिला;
- इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष में मनोवैज्ञानिक और सूचना युद्ध की रणनीति देखने को मिली;
- लेबनान में संकट पैदा करने के लिए पेजर ब्लास्ट करना, आदि।
हाइब्रिड वारफेयर के उद्भव के कारण

- सामरिक लाभ: यह किसी भी प्रकार के प्रत्यक्ष युद्ध की घोषणा किए बिना राजनीतिक, सैन्य या आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। परिणामस्वरूप कूटनीतिक वार्ता की गुंजाइश बनी रहती है।
- उदाहरण के लिए, 'लिटिल ग्रीन मैन' (बिना पहचान वाले सैनिकों/ अननोन सोल्जर) का उपयोग रूस की हाइब्रिड युद्ध रणनीति की एक पहचान बन गई है। यह रणनीति रूस को अन्य राष्ट्रों के साथ सीधे टकराव के खतरे को कम करते हुए अपने राजनीतिक और सैन्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में रणनीतिक लाभ प्रदान करता है।
- कम लागत: इस तरह का युद्ध प्रत्यक्ष जिम्मेदारी से बचने में मदद करता है तथा कम लॉजिस्टिक वाला व आर्थिक रूप से कम खर्चीला और कम जटिल होता है।
- उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका, ईरान से होने वाले खतरों को कम करने के उद्देश्य से कई प्रकार के नीतिगत उपायों का सहारा लेता है। इनमें आर्थिक प्रतिबंध भी शामिल हैं जिसकी वजह से ईरान को वित्तीय और सैन्य खर्च में कटौती के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस तरह अमेरिका अपने सैनिकों को तैनात किए बिना या सीधे युद्ध में शामिल हुए बिना अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहा है।
- तकनीकी प्रगति: साइबर क्षमताओं,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजिटल संचार उपकरणों आदि के विकास ने साइबर अटैक, गलत सूचनाओं के प्रसार जैसे गैर-पारंपरिक युद्ध तरीकों को संभव बनाया है। इसमें प्रत्यक्ष सैन्य टकराव की जरूरत नहीं पड़ती है।
- उदाहरण के लिए, 2014 में क्रीमिया पर रूस के अवैध कब्जे के बाद से ही यूक्रेन पर लगातार साइबर अटैक किए गए हैं। 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से ठीक पहले ये साइबर अटैक और तेज हो गए थे।
- नॉन-स्टेट एक्टर्स और प्रॉक्सी युद्ध का उदय: हालांकि पारंपरिक युद्ध कम होते जा रहे हैं, लेकिन स्टेट एवं नॉन-स्टेट एक्टर्स (आतंकवादी समूह, मिलिशिया, साइबर वॉरियर, आदि) से जुड़े संघर्ष बढ़ रहे हैं। ये समूह अपने रणनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए जटिल गठबंधनों, प्रॉक्सी समर्थन, सूचना युद्ध और छद्म रणनीतियों का उपयोग करते हैं। इसमें ये एक्टर्स अपनी गतिविधियों की प्रत्यक्ष जिम्मेदारी भी नहीं लेते हैं।
- उदाहरण के लिए; यमन में हूती विद्रोहियों को ईरान द्वारा हथियारों की तस्करी के माध्यम से अप्रत्यक्ष समर्थन।
- विश्व के देशों का एक-दूसरे से जुड़ा होना: आज विश्व के देश आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर हैं, साथ ही इंटरनेट ने भी विश्व के देशों और लोगों के बीच दूरियां कम कर दी हैं। इन सबने हाइब्रिड वारफेयर को गति प्रदान की है। इससे शत्रु पक्षों को प्रत्यक्ष तौर पर किसी भी संघर्ष में शामिल हुए बिना साइबर स्पेस की क्षमताओं का दुरुपयोग, आर्थिक कार्रवाइयों (प्रतिबंध, व्यापार अवरोध आदि), मीडिया प्रोपेगेंडा (चुनावी हस्तक्षेप) जैसी गतिविधियों के माध्यम से अन्य देशों को अस्थिर करने में मदद मिलती है।
- उदाहरण के लिए, रूस पर आरोप लगे थे कि उसने सोशल मीडिया बॉट का उपयोग करके 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हस्तक्षेप किया था।
भारत पर हाइब्रिड वारफेयर का खतरा
- दुश्मन पड़ोसी और नॉन-स्टेट एक्टर्स की गतिविधियां: उदाहरण के लिए, पाकिस्तान हाइब्रिड वारफेयर में माहिर है। पाकिस्तान द्वारा प्रॉक्सी युद्ध और आतंकवादी संगठनों को समर्थन तथा फेक करेंसी का प्रसार भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।
- बाहरी खतरे: उदाहरण के लिए, चीन 'ग्रे जोन' रणनीतियों में विशेषज्ञता रखता है और बिना लड़े युद्ध जीतता रहा है। इस तरह वह वैश्विक महाशक्ति बनने की अपनी आकांक्षा को पूरा कर रहा है।
- आंतरिक विद्रोह: उदाहरण के लिए, मध्य भारत में वामपंथी उग्रवाद (नक्सलवाद) एक चुनौती बना हुआ है, वहीं पूर्वोत्तर भारत में नृजातीय संघर्ष भी देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।
- महत्वपूर्ण अवसरंचनाओं (Critical Infrastructure) को खतरा: उदाहरण के लिए 2019 में कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर साइबर अटैक; 2020 में मुंबई ग्रिड पर कथित रूप से चीन का मैलवेयर अटैक आदि।
- आर्थिक युद्ध: उदाहरण के लिए, भारत, चीन से इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं और दवाइयों के उत्पादन के लिए APIs (एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट) के आयात पर अधिक निर्भर है। जाहिर है चीन भविष्य में तनाव की स्थिति में इन वस्तुओं की आपूर्ति को रोक सकता है।
हाइब्रिड वारफेयर के मामले में भारत की तैयारी
- रक्षा क्षमताओं का आधुनिकीकरण: जैसे- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा शुरू की गई 'डायरेक्शनली अनरिस्ट्रिक्टेड रे-गन एरे (DURGA)-II परियोजना' के तहत अत्याधुनिक हथियारों का विकास किया जा रहा है; 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत रक्षा हथियारों के स्वदेशीकरण पर बल दिया जा रहा है, आदि।
- संस्थागत सुधार और रक्षा संस्थानों की स्थापना: उदाहरण के लिए, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) की नियुक्ति के द्वारा सैन्य सेवाओं के संचालन का एकीकरण किया गया है; डिफेंस AI प्रोजेक्ट एजेंसी (DAIPA) और डिफेंस AI काउंसिल (DAIC) का गठन किया गया है।
- साइबर खतरों से निपटने के लिए सुरक्षा उपायों को मजबूत बनाना: उदाहरण के लिए, साइबर खतरों से निपटने और राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु 2021 में रक्षा साइबर एजेंसी का संचालन आरंभ किया गया।
- विश्व के देशों के साथ साझेदारी बढ़ाना: उदाहरण के लिए, संयक्त राज्य अमेरिका के साथ जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इंफॉर्मेशन एग्रीमेंट (GSOMIA) के जरिए सहयोग बढ़ाया जा रहा है। साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों से निपटने के लिए क्वाड (क्वाडिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग) फ्रेमवर्क के साथ सहयोग किया जा रहा है।
- संसदीय समीक्षा: भारतीय सशस्त्र बलों की हाइब्रिड वारफेयर से निपटने की तैयारी, रक्षा से संबंधित संसदीय स्थायी समिति (2024) द्वारा चर्चा के लिए चुने गए विषयों में से एक है।
- इसमें साइबर सुरक्षा, एंटी-ड्रोन प्रौद्योगिकी एवं अत्याधुनिक प्रणालियों के एकीकरण जैसी नई चुनौतियों का मूल्यांकन किया जाएगा।
आगे की राह
- क्षमता निर्माण: भारतीय रक्षा बलों और सुरक्षा तंत्र को भविष्य की हाइब्रिड वारफेयर की चुनौतियों से निपटने के लिए अलग-अलग डोमेन में विशेषज्ञता, जवाब देने हेतु प्रणालियों और डॉक्ट्रिन विकसित करने होंगे। उदाहरण के लिए:
- सैनिकों को एडवांस तकनीकों से लैस करना होगा तथा उन्हें युद्ध के गैर-परंपरागत तरीकों से निपटने में सक्षम बनाना होगा।
- साइबर अटैक का जवाब देने और आक्रामक साइबर ऑपरेशन को अंजाम देने की क्षमता विकसित करनी होगी।
- हाइब्रिड वार को एडैप्टिव रक्षा रणनीतियों में शामिल करना: उदाहरण के लिए: एक विशेष "हाइब्रिड वारफेयर डिवीजन" का गठन किया जाना चाहिए, जिसमें आक्रामक और रक्षात्मक, दोनों क्षमताएं हों। इस वारफेयर डिवीजन को राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का अहम हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
- रिएक्टिव की बजाय प्रोएक्टिव रणनीति अपनाना: स्मार्ट पावर का उपयोग करना चाहिए एवं सभी उपलब्ध साधनों की सहायता से जवाबी कार्रवाई विकल्प तैयार करना चाहिए। इनमें कूटनीतिक (ट्रैक-II चैनल), आर्थिक, सूचनात्मक, अवसंरचनात्मक, राजनीतिक व सेनाओं के बीच समन्वय, आदि शामिल हैं।
- सभी मंत्रालयों एवं सभी सरकारी एजेंसियों को शामिल करना: उदाहरण के लिए: हाइब्रिड युद्ध की चुनौतियों से निपटने के लिए एक समन्वित 'ग्रैंड प्लान' तैयार करना चाहिए। इस प्लान में सभी मंत्रालय शामिल होंगे। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के निर्देशन में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय द्वारा तैयार किया जाएगा जिस पर सुरक्षा पर मंत्रिमंडलीय समिति की सहमति भी ली जाएगी।