सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, केंद्रीय वित्त मंत्री ने एक समर्पित परमाणु ऊर्जा मिशन शुरू करने की घोषणा की। यह केंद्रीय बजट 2025-26 में 20,000 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ परमाणु ऊर्जा क्षेत्रक का विस्तार करने की दिशा में सबसे बड़े कदमों में से एक है।
परमाणु ऊर्जा मिशन के बारे में
- लक्ष्य: मिशन का मुख्य लक्ष्य 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करना है। यह भारत की दीर्घकालिक एनर्जी ट्रांजीशन स्ट्रेटेजी और "विकसित भारत" संबंधी व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप है।
- 30 जनवरी, 2025 तक भारत की स्थापित परमाणु ऊर्जा क्षमता 8180 मेगावाट थी। सरकार की योजना 2031-32 तक इसे बढ़ाकर 22,480 मेगावाट करने की है।
- उद्देश्य: स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMRs) के संबंध में अनुसंधान एवं विकास करना तथा 2033 तक कम-से-कम पांच SMRs स्थापित करना।
- निजी क्षेत्रक की भागीदारी: इसके लिए परमाणु ऊर्जा अधिनियम (Atomic Energy Act), 1962 और परमाणु क्षति के लिए सिविल दायित्व अधिनियम, 2010 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है। इन संशोधनों का उद्देश्य परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में निजी क्षेत्रक की भागीदारी को प्रोत्साहित करना है।
- निजी क्षेत्रक के साथ साझेदारी के उद्देश्य:
- भारत स्मॉल रिएक्टर (BSRs) की स्थापना करना,
- भारत स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर के संबंध में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना तथा
- परमाणु ऊर्जा के लिए नई प्रौद्योगिकियों के संबंध में अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना।
- BSRs के अतिरिक्त, भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (BARC) निम्नलिखित हेतु स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) विकसित कर रहा है।
- बंद हो रहे कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की अवसंरचना का उपयोग करना, तथा
- दूरदराज के स्थानों में बिजली की जरूरतों को पूरा करने हेतु।
- निजी क्षेत्रक के साथ साझेदारी के उद्देश्य:
- स्वदेशी प्रौद्योगिकी का विकास: इस मिशन में BSRs के विकास पर जोर दिया गया है। भारत स्मॉल रिएक्टर (BSRs) 220 मेगावाट के कॉम्पैक्ट दाब युक्त भारी जल रिएक्टर (PHWRs) हैं। इन्हें कैप्टिव उपयोग के लिए डिजाइन किया गया है।
- परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) भी नए परमाणु रिएक्टरों को शुरू करने की योजना बना रहा है। इसमें हाइड्रोजन सह-उत्पादन के लिए हाई-टेम्परेचर गैस-कूल्ड रिएक्टर और मॉल्टेन सॉल्ट रिएक्टर शामिल हैं। इनका उद्देश्य भारत के प्रचुर थोरियम संसाधनों का उपयोग करना है।
- एनर्जी ट्रांजीशन में सहायता: भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा उत्पादन प्राप्त करने और 2030 तक अपनी 50% ऊर्जा आवश्यकताओं को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पूरा करने की प्रतिबद्धता जताई है। यह प्रतिबद्धता 2021 में ग्लासगो में हुए COP26 शिखर सम्मेलन में व्यक्त की गई थी।
स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) क्या हैं?
- परिभाषा: स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) पारंपरिक रिएक्टर की तुलना में उन्नत परमाणु रिएक्टर हैं। इनकी बिजली उत्पादन क्षमता 300 मेगावाट (MWe) प्रति यूनिट तक होती है, जो पारंपरिक परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों की उत्पादन क्षमता का लगभग एक-तिहाई है। ऐसे SMRs जो बड़ी मात्रा में कार्बन न्यून बिजली का उत्पादन कर सकते हैं:
- स्मॉल: भौतिक रूप से इनका आकार पारंपरिक परमाणु ऊर्जा रिएक्टर की तुलना में काफी छोटा होता है।
- मॉड्यूलर: इसकी प्रणालियों और घटकों को कारखाने में असेंबल किया जा सकता है और एक इकाई के रूप में किसी भी स्थान पर स्थापित करने के लिए भेजा जा सकता है।
- रिएक्टर: परमाणु विखंडन द्वारा ऊष्मा उत्पन्न करके ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है।

SMR परमाणु ऊर्जा का महत्व
- कॉम्पैक्ट आर्किटेक्चर और पैसिव सेफ्टी: इसमें दुर्घटनाओं का शमन करने के लिए एक्टिव सेफ्टी सिस्टम्स और अतिरिक्त पंपों सहित AC पावर पर निर्भरता कम हो जाती है।
- अमेरिका स्थित न्यूस्केल के SMR (NuScale's SMR) डिजाइन में पैसिव कूलिंग सिस्टम्स शामिल हैं। इससे आपात स्थितियों के दौरान बाह्य स्रोत से बिजली लेने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
- उपयोग के मामले में सहूलियत: SMRs का उपयोग विविध क्षेत्रों, जैसे- बिजली उत्पादन, औद्योगिक ताप आपूर्ति (विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए ऊष्मा की आवश्यकता) और विलवणीकरण के लिए किया जा सकता है।
- दक्षिण कोरिया का स्मार्ट {सिस्टम-इंटीग्रेटेड मॉड्यूलर एडवांस्ड रिएक्टर (SMART)} बिजली उत्पादन (100 मेगावाट तक) और/ या समुद्री जल विलवणीकरण जैसे उपयोगों के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- फैक्टरी निर्माण के लिए मॉड्यूलरिटी: SMRs के प्रमुख घटक फैक्टरी में बने होते हैं, जिससे उच्च गुणवत्ता मानक सुनिश्चित होते हैं और निर्माण संबंधी समय तथा लागत में कमी आती है।
- न्यूस्केल के SMRs संयंत्र को कारखाने में मॉड्यूल्स के रूप में असेम्बल किया जा सकता है और साइट पर ले जाकर इंस्टॉल किया जा सकता है। इस तरह मॉड्यूलर होने के कारण, इनके निर्माण के लिए बहुत अधिक जगह की ज़रूरत नहीं पड़ती।
- सब-ग्रेड (भूमिगत या पानी के नीचे) इंस्टॉलेशन की संभावना: यह रिएक्टर यूनिट को प्राकृतिक (जैसे- भूकंप या सुनामी) या मानव निर्मित खतरों से अधिक सुरक्षा प्रदान करती है।
- उदाहरण के लिए, रूस का एक तैरता हुआ परमाणु ऊर्जा संयंत्र, एकेडमिक लोमोनोसोव सुदूर आर्कटिक क्षेत्रों में संचालित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- स्केलेबिलिटी: मॉड्यूलर डिजाइन और छोटे आकार के चलते एक ही स्थान पर इनकी कई इकाइयों को स्थापित किया जा सकता है।
- पोर्टेबिलिटी: इनका जीवनकाल समाप्त होने पर रिएक्टर मॉड्यूल को यथास्थान पर बंद किया जा सकता है या आसानी से हटाया जा सकता है।
भारत के असैन्य परमाणु समझौते
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SMRs से संबंधित कुछ मुद्दे और चुनौतियां
- निजी क्षेत्रक और लाभ उन्मुखता: निजी कंपनियां लागत कम करने के लिए सुरक्षा संबंधी उपायों में कटौती कर सकती हैं, जिससे संयंत्र की सुरक्षा से समझौता हो सकता है। फुकुशिमा दुर्घटना की समीक्षा के बाद नए और पहले से काम कर रहे रिएक्टरों के लिए सुरक्षा संबंधी अनिवार्यताओं को और सख्त किया गया है।
- पैसिव सेफ्टी को लेकर अविश्वसनीयता: SMRs में पैसिव सेफ्टी का शामिल किया गया है, जो हो सकता है कि बड़े भूकंप, भयंकर बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाओं के दौरान काम न करें।
- अमेरिकी न्यूक्लियर रेग्युलेटरी कमीशन द्वारा न्यूस्केल डिजाइन की समीक्षा से पता चला है कि पैसिव इमरजेंसी प्रणालियां शीतलक में मौजूद बोरोन को समाप्त कर सकती हैं, जो दुर्घटना के बाद रिएक्टर को सुरक्षित रूप से बंद रखने के लिए आवश्यक होता है।
- आर्थिक व्यवहार्यता: यदि अन्य सभी कारक समान हों तो छोटे रिएक्टरों द्वारा उत्पन्न प्रति किलोवाट-घंटा बिजली की लागत बड़े रिएक्टरों की तुलना में अधिक होगी।
- उदाहरण के लिए, 1,100 मेगावाट क्षमता वाले संयंत्र के निर्माण की लागत 180 मेगावाट क्षमता वाले संयंत्र के निर्माण की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक होगी, लेकिन इससे छः गुना अधिक बिजली पैदा होगी।
- रेडियोधर्मी अपशिष्ट के निपटान की समस्या: छोटे रिएक्टरों द्वारा उत्पन्न उच्च-रेडियोधर्मी समस्थानिकों की मात्रा प्रति इकाई ताप के हिसाब से बड़े रिएक्टरों के समान होगी। अतः इनके निपटान के लिए बड़े रिएक्टरों के समान ही फैसिलिटी की आवश्यकता होगी।
- बड़े रिएक्टरों की तुलना में कम ईंधन दक्षता: कुछ SMR को "हाई-अस्से लो एनरिच्ड यूरेनियम (HALEU)" नामक ईंधन की आवश्यकता होती है, जिसमें पारंपरिक लाइट-वॉटर रिएक्टर ईंधन की तुलना में समस्थानिक यूरेनियम-235 की सांद्रता उच्च होती है। HALEU के लिए एक जटिल संवर्धन प्रक्रिया की आवश्यकता होती है, जिससे ईंधन की आपूर्ति और उत्पादन अधिक कठिन एवं महंगा हो सकता है।
आगे की राह
- सार्वभौमिक विनियामकीय फ्रेमवर्क: विभिन्न देशों में SMRs के उपयोग को सुगम बनाने के लिए विनियामकीय फ्रेमवर्क द्वारा स्पष्ट मानकीकरण और लाइसेंसिंग व्यवस्था सुनिश्चित करने की जरूरत है।
- सुरक्षा संबंधी चिंताओं का समाधान: सुरक्षा और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के समाधान के लिए जनता के साथ जुड़ाव से SMRs परियोजनाओं के लिए स्वीकृति और समर्थन में सुधार हो सकता है। SMRs की प्रणालियों, संरचनाओं और घटकों (SSC) की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक सुरक्षा मूल्यांकन पद्धति होना अनिवार्य है।
- फर्स्ट ऑफ अ काइंड (FOAK) SMR डेमोंस्ट्रेशन इकाइयों का निर्माण करना और उससे सीखना: सरकार दीर्घकालिक विद्युत खरीद समझौतों से लेकर लागत-साझाकरण तंत्र तक विभिन्न रूपों में SMRs संबंधी परियोजनाओं को समर्थन प्रदान कर सकती है। इससे SMRs के निर्माण से संबंधित जोखिमों को कम कर निवेशकों को आकर्षित किया जा सकेगा।
- परियोजना विशिष्ट तकनीकी-आर्थिक आकलन (TEA): इसे पूर्व-निर्धारित मानदंडों के आधार पर किया जाना चाहिए, जैसे कि उत्सर्जन मुक्त विद्युत उत्पादन के लिए SMRs की क्षमता आदि।
- डिजाइन द्वारा सुरक्षा उपाय (Safeguards by Design: SBD): IAEA के सहयोग के साथ SMR डिजाइनों के प्रारंभिक चरणों के दौरान सुरक्षा संबंधी अनिवार्यताओं को सुनिश्चित किया जाना चाहिए, ताकि SMR संयंत्र के पूरे जीवन-चक्र में सुरक्षा संबंधी उपाय प्रभावी रूप से काम करते रहें।
- नवीन वित्त-पोषण फ्रेमवर्क: SMR परियोजनाओं को आर्थिक रूप से आकर्षक बनाने के लिए कम लागत वाली वित्तीय सहायता, ग्रीन फाइनेंस की उपलब्धता और परमाणु ऊर्जा को ग्रीन टैक्सोनॉमी में शामिल किया जा सकता है।