सुर्ख़ियों में क्यों?
भारत और फ्रांस ने पेरिस में आयोजित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एक्शन समिट की सह-अध्यक्षता की।
अन्य संबंधित तथ्य
- फ्रांस द्वारा पेरिस में आयोजित AI एक्शन समिट का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का विकास एवं उपयोग अर्थव्यवस्था, समाज और पर्यावरण की भलाई के लिए हो, ताकि आम लोग भी इससे लाभान्वित हो सकें। इस समिट में यूनेस्को ने एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में भाग लिया था।
- इस समिट में राज्य/ सरकार के प्रमुखों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों और AI क्षेत्र के व्यावसायिक नेतृत्वकर्ताओं ने भाग लिया था।
- फ्रांस ने अगले AI एक्शन समिट के मेजबान के रूप में भारत का समर्थन किया।

भारत-फ्रांस साझेदारी के प्रमुख आयाम
फ्रांस पहला देश था, जिसके साथ भारत ने द्विपक्षीय संबंधों को घनिष्ठ बनाने के लिए 26 जनवरी, 1998 को अपनी पहली रणनीतिक साझेदारी स्थापित की थी। भारत-फ्रांस सहयोग के निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्र हैं:
सहयोग के क्षेत्र | विवरण |
आर्थिक |
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रक्षा
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विज्ञान |
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अंतरिक्ष |
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परमाणु ऊर्जा |
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अन्य क्षेत्रक |
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भारत-फ्रांस संबंधों में प्रमुख चुनौतियां
- परमाणु ऊर्जा सहयोग में बाधाएं: फ्रांस ने जैतापुर में परमाणु ऊर्जा रिएक्टर्स बनाने की पेशकश की है। हालांकि, इसमें कई चुनौतियां बनी हुई हैं, जिनमें उच्च लागत, देरी और भारत के CLND अधिनियम, 2010 से जुड़ी चिंताएं शामिल हैं।
- CLND अधिनियम परमाणु आपदाओं से पीड़ित लोगों के लिए मुआवजे का प्रावधान करता है। यह फ्रांस सहित विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के साथ तनाव का कारण बना हुआ है।
- अलग-अलग भू-राजनीतिक रुख: फ्रांस यूक्रेन का खुलकर साथ दे रहा है और रूस का विरोध कर रहा है। वहीं, भारत इस मामले में तटस्थ है और संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प (Resolutions) पर मतदान के दौरान अनुपस्थित रहा। अलग-अलग विचारों की वजह से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक बातचीत में मुश्किल आ सकती है।
- बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) से जुड़ी चिंताएं: कई फ्रांसीसी व्यवसायों का मानना है कि फार्मास्यूटिकल्स, फैशन और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रकों में भारत IPR (बौद्धिक संपदा अधिकार) को ठीक से लागू नहीं कर रहा है।
- नकली उत्पादों की समस्या, पेटेंट मंजूरी में देरी और अपर्याप्त कानूनी सुरक्षा जैसे मुद्दे फ्रांसीसी निवेश एवं नवाचार सहयोग को हतोत्साहित करते हैं।
- व्यापार संबंधी बाधाएं और संरक्षणवादी नीतियां: भारतीय निर्यात (विशेष रूप से कृषि वस्तुएं) को फ्रांस में विरोध का सामना करना पड़ता है। बासमती चावल को भौगोलिक संकेतक (GI) उत्पाद के रूप में मान्यता देने में फ्रेंच राइस एसोसिएशन का विरोध एक उल्लेखनीय उदाहरण है। इसके अलावा, यूरोपीय संघ के कठोर सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी मानक भारतीय उत्पादों के लिए गैर-टैरिफ बाधाएं उत्पन्न करते हैं।
- भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) में बाधा: भारत-यूरोपीय संघ व्यापक व्यापार और निवेश समझौते (Broad-based Trade and Investment Agreement: BTIA) पर 2007 से वार्ता चल रही है, लेकिन अभी तक इसका कोई समाधान नहीं निकला है।
- इस कारण से दोनों पक्ष अपनी व्यापारिक क्षमताओं का पूरा लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
- सीमित निजी क्षेत्रक और लोगों के बीच सीमित संपर्क: भारत-फ्रांस सहयोग मुख्य रूप से सरकार द्वारा संचालित (G2G) है, जो रक्षा, अंतरिक्ष और ऊर्जा पर केंद्रित है।
- हालांकि, व्यापक स्तर पर व्यवसाय-से-व्यवसाय (B2B) और पीपल-टू-पीपल (P2P) जुड़ाव अभी भी कमजोर बना हुआ है।
निष्कर्ष
रणनीतिक साझेदारी का अर्थ हर मुद्दे पर सहमति नहीं, बल्कि मतभेदों को निजी स्तर पर सुलझाना भी है। भारत और फ्रांस ने वर्षों से ऐसे संबंध विकसित किए हैं। दोनों देशों को परमाणु ऊर्जा से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने, यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौतों में तेजी लाने और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के लिए बौद्धिक संपदा सुरक्षा में सुधार करना होगा। साथ ही, उन्हें वैश्विक संघर्षों, जैसे- यूक्रेन संकट, पर साझा दृष्टिकोण अपनाकर कूटनीतिक समन्वय को और प्रभावी बनाना होगा।