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त्रिभाषा फॉर्मूला (THREE-LANGUAGE FORMULA)

10 Apr 2025
32 min

सुर्ख़ियों में क्यों? 

कुछ राज्यों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 के त्रिभाषा फॉर्मूले का विरोध किया जा रहा है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) और त्रिभाषा फार्मूले के बारे में

  • NEP 2020: प्रत्येक छात्र को तीन भाषाएं सीखनी होंगी, जिनमें से दो भारत की मूल भाषाएं होनी चाहिए।
  • पिछली नीतियों में बदलाव: NEP, 1968 में हिंदी, अंग्रेजी और एक क्षेत्रीय भाषा अनिवार्य थी, जबकि NEP 2020 भाषा का चयन करने में लचीलापन प्रदान करती है।
  • क्षेत्रीय लचीलापन: राज्य और छात्र भाषाओं का चयन कर सकते हैं। साथ ही, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय विविधता का सम्मान करते हुए बहुभाषावाद को बढ़ावा दे सकते हैं।

त्रिभाषा फॉर्मूला नीति का विकासक्रम 

  • संविधान का अनुच्छेद 351: यह अनुच्छेद संघ को हिंदी भाषा के प्रसार को बढ़ावा देने के लिए कर्तव्यबद्ध बनाता है।
  • कोठारी आयोग (1964-66): इसने सबसे पहले त्रिभाषा फॉर्मूला का प्रस्ताव दिया था। इसे बाद में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968) में अपनाया गया था।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 1968: इसने प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की सिफारिश की थी और विश्वविद्यालय स्तर पर भी इसे अपनाने की सिफारिश की थी।
  • कार्य योजना 1992: इसमें यह प्रावधान किया गया था कि प्री-स्कूल स्तर पर मातृभाषा/ क्षेत्रीय भाषा को बातचीत का माध्यम होना चाहिए।
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009: जहां तक ​​संभव हो, स्कूल में शिक्षा का माध्यम बच्चे की मातृभाषा होनी चाहिए।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020: इस नीति में कम-से-कम कक्षा 5 तक और यदि संभव हो तो कक्षा 8 और उससे आगे तक शिक्षा के माध्यम के रूप में घरेलू भाषा, मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा का उपयोग करने की सिफारिश की गई है।

 

त्रिभाषा फॉर्मूले का महत्त्व/ लाभ

यूनेस्को की नवीनतम रिपोर्ट 'लैंग्वेजेज मैटर: ग्लोबल गाइडेंस ऑन मल्टीलिंगुअल एजुकेशन' के अनुसार, बहुभाषी शिक्षा-

  • पहुंच और समावेशन को बढ़ावा देती है
    • व्यापक शैक्षिक पहुंच: विविध भाषाई पृष्ठभूमि के बच्चों को उस भाषा में सीखने में मदद करती है, जिसे वे समझते हैं।
    • माता-पिता की भागीदारी: मातृभाषा में शिक्षा से माता-पिता की भागीदारी बढ़ती है।
    • वंचित समूहों का समावेश: यह शिक्षा में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को सम्मान देने एवं समाहित करने में सहायक होती है।
  • सीखने के परिणामों में सुधार करती है
    • सामाजिक-भावनात्मक विकास को बढ़ावा देना: बहुभाषी शिक्षा बच्चों को स्वयं को बेहतर ढंग से व्यक्त करने और विविध दृष्टिकोणों को समझने में मदद करती है।
    • बेहतर शैक्षणिक प्रदर्शन: शोध से पता चलता है कि बहुभाषी छात्र उन्नत संज्ञानात्मक क्षमताओं के कारण अन्य विषयों में भी बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
  • सतत विकास का समर्थन करती है
    • सांस्कृतिक संरक्षण: बहुभाषी शिक्षा भाषाओं और पारंपरिक ज्ञान को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखती है।
    • आर्थिक लाभ: उदाहरण के लिए- स्विट्जरलैंड अपने सकल घरेलू उत्पाद का 10% अपनी बहुभाषी विरासत में निवेश करता है।
    • सामाजिक सौहार्द: अलग-अलग भाषाई और सांस्कृतिक समूहों के बीच समझ एवं सहिष्णुता को बढ़ावा देती है।
    • पर्यावरण का संरक्षण: देशज भाषाएं पारंपरिक ज्ञान और सतत विकास की पद्धतियों को संरक्षित करती हैं।
  • राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देती है
    • प्रभावी संचार: छात्रों को विविध क्षेत्रों के लोगों के साथ संवाद करने में मदद मिलती है।
    • विविधता में एकता: अलग-अलग संस्कृतियों एवं भाषाओं के प्रति सम्मान को बढ़ावा देती है, जिससे राष्ट्रीय पहचान मजबूत होती है।

त्रिभाषा फार्मूले के खिलाफ तर्क

  • राजनीतिकरण: भाषा, विश्व के कई हिस्सों में एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा है। बहुभाषी शिक्षा का उपयोग लोगों को 'भूमिपुत्र (Sons of the soil)' की भावना को भड़काने के लिए किया जा सकता है। इससे राष्ट्रीय एकता बाधित हो सकती है।
    • भूमिपुत्र, जो अपने क्षेत्र में सांस्कृतिक रूप से प्रभावशाली होते हैं, अक्सर राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक होते हैं। उन्हें अपने ही देश में आकर बसने वाले बहुसंख्यक संस्कृति के प्रवासियों से अपनी सांस्कृतिक पहचान के खोने का डर महसूस होता है।
  • भाषा सीखना एक विकल्प होना चाहिए: वयस्क अपने प्रोफेशन और अन्य आवश्यकताओं के आधार पर नई भाषाएं सीख सकते हैं। ऐसा करने से स्कूलों में अनिवार्य भाषा नीतियों की आवश्यकता नहीं होगी।
  • प्राथमिक शिक्षा में संघर्ष: भारत में कई छात्रों को बुनियादी साक्षरता प्राप्त करने में कठिनाई होती है। तीसरी भाषा जोड़ने से पहले से ही संसाधन-विहीन शिक्षा प्रणाली पर और अधिक बोझ बढ़ सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, एकभाषी (Monolingual) परिवारों से आने वाले बच्चों के लिए बहुभाषी शिक्षा भ्रमित करने वाली और मानसिक रूप से तनावपूर्ण हो सकती है।
  • योग्य शिक्षकों की कमी: दूसरी और तीसरी भाषा के शिक्षकों की कमी से शिक्षक प्रशिक्षण के लिए अवसंरचना जरूरी हो जाती है। यह अधिक दबाव डालने वाली शैक्षिक आवश्यकता बन जाती है, जिस पर अधिक व्यय करना पड़ता है। इस खर्च को अन्य आवश्यकताओं के लिए उपयोग किया जा सकता है।
  • भाषाई रूप से विविध राज्यों के लिए चुनौतियां: नागालैंड जैसे राज्य, जहां कई भाषाएं बोली जाती हैं और संसाधनों की कमी है, उनके लिए त्रिभाषा फार्मूला लागू करना मुश्किल हो सकता है।
  • क्रियान्वयन संबंधी कठिनाइयां: उदाहरण के लिए- हरियाणा में तमिल भाषा को लागू करने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन इसमें कई व्यावहारिक समस्याएं आ रही हैं। 
  • प्रौद्योगिकी भाषा संबंधी बाधा को कम करती है: Google Gemini जैसे AI टूल्स त्वरित अनुवाद प्रदान करते हैं, जिससे भाषा में दक्षता की आवश्यकता कम हो जाती है।

त्रिभाषा फॉर्मूले को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए आगे की राह

  • शिक्षा की गुणवत्ता को प्राथमिकता देना: अधिक भाषाओं को जोड़ने की बजाय शिक्षण की गुणवत्ता और सीखने के परिणामों को बेहतर बनाने पर ध्यान देना चाहिए।
  • सहकारी संघवाद को मजबूत करना: NEP 2020 के सुचारू कार्यान्वयन और फंडिंग में देरी से बचने के लिए केंद्र एवं राज्यों के बीच संवाद को बढ़ावा देना चाहिए।
  • यूनेस्को के बहुभाषी शिक्षा दिशा-निर्देशों के अनुरूप कार्य करना:
    • डेटा-संचालित नीति: प्रभावी योजना निर्माण के लिए सामाजिक-भाषाई और शैक्षिक डेटा एकत्र किया जाना चाहिए।
    • शिक्षण सामग्री और मूल्यांकन: शिक्षार्थियों की भाषाओं में संसाधन विकसित करने  चाहिए और मूल्यांकन प्रणाली को उसी के अनुसार अनुकूलित किया जाना चाहिए। 
    • योग्य शिक्षक: ऐसे शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, जो मातृभाषा और आधिकारिक भाषा दोनों में दक्ष हों।
    • सामुदायिक भागीदारी: माता-पिता, देखभाल करने वालों और देशज समूहों को प्रभावी बहुभाषी कार्यक्रमों के विकास में शामिल किया जाना चाहिए।
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