भू-आर्थिक विखंडन (GEO-ECONOMIC FRAGMENTATION: GEF) | Current Affairs | Vision IAS
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भू-आर्थिक विखंडन (GEO-ECONOMIC FRAGMENTATION: GEF)

Posted 10 Apr 2025

Updated 12 Apr 2025

24 min read

सुर्ख़ियों में क्यों? 

आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में यह रेखांकित किया गया है कि दुनिया अब आर्थिक एकीकरण के बजाय भू-आर्थिक विखंडन (GEF) की ओर बढ़ रही है। यह वैश्वीकरण के प्रतिस्थापन या खत्म होने जैसा है।

भू-आर्थिक विखंडन (GEF) के बारे में: नई वैश्विक वास्तविकता

  • GEF क्या है: 'भू-आर्थिक विखंडन' एक ऐसी स्थिति है जहां देश अपनी नीतियों के कारण वैश्विक आर्थिक एकीकरण से दूर हो जाते हैं। अक्सर, इसके पीछे सुरक्षा या राजनीतिक कारण निहित होता है। इसे वैश्विक स्तर पर आर्थिक जुड़ाव में एक नीतिगत बदलाव के तौर पर देखा जाता है। उदाहरण के लिए-
    • 'फ्रेंडशोरिंग': यह व्यापार के संबंध में एक ऐसी रणनीति है, जहां आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क्स राजनीतिक और आर्थिक सहयोगी माने जाने वाले देशों पर केंद्रित होते हैं।
      • उदाहरण के लिए- एप्पल अपने आईफोन उत्पादन का कुछ हिस्सा चीन से भारत में स्थानांतरित कर रहा है।
    • 'नियरशोरिंग': जब कोई कंपनी अपने व्यवसाय के कुछ हिस्सों को आउटसोर्स करने (बाहरी कंपनियों से काम कराने) के लिए, किसी ऐसे देश में स्थित आपूर्तिकर्ता के साथ काम करना चुनती है, जो भौगोलिक रूप से उसके निकट हो।
      • उदाहरण के लिए- एक जर्मन कंपनी अपने ग्राहकों की सेवा से संबंधित कार्यों को पोलैंड में स्थित एक टीम को सौंप रही है। 
  • GEF के माध्यम: GEF विविध माध्यमों से प्रकट होता है। इनमें व्यापार प्रतिबंध, पूंजी के प्रवाह में कमी, प्रौद्योगिकी के प्रसार में व्यवधान, टेक डिकप्लिंग आदि शामिल हैं।
    • टेक्नोलॉजिकल डिकप्लिंग का मतलब है कि राष्ट्रीय सुरक्षा, बौद्धिक संपदा की सुरक्षा, और डेटा की गोपनीयता को लेकर चिंताएं बढ़ने के कारण, आधुनिक तकनीकी उद्योगों में अलग-अलग देश आपस में व्यापार और निवेश कम कर रहे हैं या पूरी तरह से बंद कर रहे हैं।
    • उदाहरण के लिए- अमेरिका के क्रिएटिंग हेल्पफुल इंसेंटिव्स टू प्रोड्यूस सेमीकंडक्टर्स (CHIPS) एंड साइंस एक्ट (2022) का उद्देश्य घरेलू सेमीकंडक्टर्स के विनिर्माण को बढ़ावा देना है। वहीं चीन की 'मेड इन चाइना 2025' पहल उच्च तकनीक उद्योगों में वैश्विक नेतृत्व हासिल करने पर केंद्रित है।

भू-आर्थिक विखंडन (GEF) के प्रभाव

  • आर्थिक उत्पादन में हानि: बढ़ती व्यापारिक बाधाओं (टैरिफ एवं गैर-टैरिफ व्यवधानों) के कारण व्यापार में कमी से वैश्विक स्तर पर आर्थिक संवृद्धि कम हो सकती है।
    • वित्त वर्ष 2028 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर और वित्त वर्ष 2030 तक 6.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का भारत का लक्ष्य खतरे में पड़ सकता है। 
  • विदेशी निवेश का पुनर्निर्धारण: विदेशी निवेश भू-राजनीतिक रूप से समान हित वाले देशों की ओर बढ़ रहा है। यह रुझान उभरते बाजारों, विशेष रूप से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को अलग-थलग कर सकता है।
    • उदाहरण के लिए- वित्त वर्ष 2024 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी इक्विटी निवेश पांच साल के निचले स्तर पर पहुंच गया था।
  • श्रम बाजार पर प्रभाव: सीमा-पार प्रवास पर प्रतिबंध मेजबान और मूल दोनों देशों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। ऐसा इस कारण, क्योंकि इससे मेजबान अर्थव्यवस्थाओं को कुशल श्रम से वंचित होना पड़ सकता है एवं प्रवासी भेजने वाले (मूल) देशों के धन प्रेषण में कमी आ सकती है।
  • बहुपक्षवाद में बाधा: GEF जलवायु परिवर्तन, महामारी एवं अन्य वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में बहुपक्षीय प्रयासों में बाधा डालता है।
  • वैश्वीकरण में गिरावट: वैश्वीकरण की प्रक्रिया में गिरावट से नए बाजारों तक पहुंच, तकनीकी नवाचार का प्रसार, पूंजी तक पहुंच, प्रतिस्पर्धा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान सीमित हो रहा है।

आगे की राह

  • घरेलू आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करना: इससे विनिर्माण, ऊर्जा एवं प्रौद्योगिकी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रकों में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित की जा सकेगी। 
    • उदाहरण के लिए- खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया और चिली में महत्वपूर्ण खनिजों जैसी विदेशी परिसंपत्तियों का अन्वेषण एवं अधिग्रहण करता है। इस प्रकार, यह भारत के लिए लिथियम और कोबाल्ट जैसे रणनीतिक खनिजों की आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
  • क्षेत्रीय साझेदारियों का लाभ उठाना: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में और समान हित वाले देशों के साथ मजबूत व्यापारिक एवं कूटनीतिक संबंध बनाने चाहिए तथा बाजारों व संसाधनों तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करनी चाहिए। 
    • भारत बिम्सटेक, इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (IPEF) जैसे समूहों का लाभ उठा सकता है।
  • नवाचार और प्रौद्योगिकी: विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा, डिजिटल परिवर्तन और AI जैसे क्षेत्रों में भारत को अधिक नवाचार करना चाहिए।

निष्कर्ष

भू-आर्थिक विखंडन शीत युद्ध के बाद के मुक्त व्यापार मॉडल में बदलाव को दर्शाता है, जिसने वैश्वीकरण और अति-वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया। हालांकि, यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी कि दुनिया डी-ग्लोबलाइजेशन की ओर बढ़ रही है, जहां व्यापार की कुल मात्रा या GDP के अनुपात में व्यापार में गिरावट देखी गई है। भारत की 2047 तक के लक्ष्यों की प्राप्ति भू-आर्थिक विखंडन के अनुरूप ढलने, सतत विकास सुनिश्चित करने और अपनी वैश्विक स्थिति मजबूत करने पर निर्भर करेगी। इसके लिए देश को घरेलू सुधारों, नवाचार और रणनीतिक साझेदारियों पर विशेष ध्यान देना होगा।

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  • टेक्नोलॉजिकल डिकप्लिंग
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