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महिलाओं के नेतृत्व में विकास (WOMEN-LED DEVELOPMENT)

02 May 2025
36 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, बीजिंग डिक्लेरेशन एंड प्लेटफ़ॉर्म फ़ॉर एक्शन की 30वीं वर्षगांठ पर, विश्व भर की सरकारों ने महिलाओं और लड़कियों के सशक्तीकरण पर एक घोषणा-पत्र अपनाया। यह घोषणा-पत्र महिलाओं के नेतृत्व में विकास के सिद्धांत की पुष्टि करता है।

बीजिंग डिक्लेरेशन एंड प्लेटफ़ॉर्म फ़ॉर एक्शन (BPfA) के बारे में

  • इसे मूल रूप से 1995 में महिलाओं पर चौथे विश्व सम्मेलन में अपनाया गया था। इसमें बिना किसी अपवाद के हर महिला और लड़की के लिए सभी प्रकार के मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता को बनाए रखने पर जोर दिया गया था।
  • इसकी 30वीं वर्षगांठ पर, बीजिंग +30 एक्शन एजेंडा जारी किया गया, जिसमें निम्नलिखित 6 प्रमुख प्राथमिकताएं शामिल थीं:
    • डिजिटल क्रांति: नए कौशल की प्राप्ति, महिलाओं के मामले में डिजिटल डिवाइड को दूर करना,आदि।
    • गरीबी से मुक्ति: सामाजिक सुरक्षा तथा बेहतर सार्वजनिक सेवाएं (स्वास्थ्य, शिक्षा और केयर) प्रदान करना।
    • हिंसा की समाप्ति: समुदाय-आधारित संगठनों को शामिल करते हुए व्यापक राष्ट्रीय कार्य योजनाएं अपनाना।
    • निर्णय प्रक्रिया में पूर्ण और समान शक्ति: निजी और सार्वजनिक, दोनों क्षेत्रों में।
    • शांति और सुरक्षा: महिलाओं को विशेष ध्यान रखने वाली मानवीय कार्रवाइयों को बढ़ावा देना।
    • क्लाइमेट जस्टिस: आदिवासी समुदायों की महिलाओं के अधिकारों को प्राथमिकता देना, ग्रीन जॉब्स को बढ़ावा देना, आदि।

महिलाओं का विकास बनाम महिलाओं के नेतृत्व में विकास

महिलाओं का विकासमहिलाओं के नेतृत्व में विकास
  • इसमें महिलाओं की सहायता के लिए बनाए गए कार्यक्रमों को शामिल किया जाता हैं, हालांकि इन योजनाओं के निर्माण, इनके कार्यान्वयन और मूल्यांकन में महिलाओं की भागीदारी नहीं होती है।
  • उदाहरण के लिए, मातृ स्वास्थ्य कार्यक्रम, बालिका शिक्षा परियोजनाएं, शैक्षणिक संस्थानों में महिलाओं के लिए कोटा, आदि।
  • इसके तहत महिलाओं को विकास कार्यक्रमों के केवल लाभार्थी के रूप में देखा जाता है।
  • महिलाओं के विकास से संबंधित निर्णय लेने के टॉप-डाउन अप्रोच में महिलाओं की पर्याप्त भागीदारी का अभाव है।
  • यह एक ऐसे परिवर्तन को दर्शाता है, जिसमें महिलाओं को न केवल लाभार्थी के रूप में देखा जाता है, बल्कि विकास-प्रक्रिया के लीडर, नीति- निर्माता और इनोवेटर्स के रूप में भी देखा जाता है। 
  • उदाहरण के लिए, स्थानीय शासन में महिलाओं की बढ़ी हुई भागीदारी, कॉर्पोरेट जगत में उनका नेतृत्व,आदि।
  • यह माना जाता है कि महिलाओं के पास अक्सर समुदाय की जरूरतों को समझने की विशिष्ट अंतर्दृष्टि होती है, और वे अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर इनोवेटिव समाधान प्रस्तुत कर सकती हैं।
  • निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए बॉटम-अप अप्रोच को अपनाया जाता है। उदाहरण के लिए, स्वयं सहायता समूह (SHG) आंदोलन।

 

 

'महिलाओं के नेतृत्व में विकास' समाज के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

  • सशक्तीकरण की प्रतिनिधि के रूप में महिलाएं: महिलाओं को केवल कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी के रूप में देखने की सोच से आगे बढ़कर, उन्हें सशक्तिकरण के माध्यम के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
  • लैंगिक समानता: यह पीढ़ीगत असमानताओं का समाधान करता है (ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2024: भारत 146 देशों में 129वें स्थान पर)। यह लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ने और लैंगिक असमानता को जारी रखने वाले सामाजिक मानदंडों को अस्वीकार करने की दिशा में कार्य करता है।
  • आर्थिक सशक्तीकरण: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के अनुसार भारत की आबादी में 48% हिस्सेदारी महिलाओं की है, फिर भी वे GDP में केवल 18% का योगदान करती हैं। रोजगार में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से देश की GDP में 30% तक की वृद्धि की जा सकती है।
  • ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन: महिला के नेतृत्व वाली पहलें गाँवों में क्रांतिकारी परिवर्तन ला रही हैं।
    • दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) ने 8.01 करोड़ गरीब और वंचित समुदायों की महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों में संगठित किया, जिससे उनकी घरेलू आय में 22% की वृद्धि हुई।
  • समावेशी विकास: यह महिलाओं की क्षमता को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक प्रगति के सभी स्तरों पर सक्रिय रूप से आकार देने और आगे बढ़ाने में सहायता करता है।
  • संधारणीयता: जलवायु परिवर्तन से निपटने संबंधी निर्णयों में महिलाओं को सशक्त बनाने से समुदाय को जलवायु की चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकती है और उन्हें बदलते पर्यावरण के अनुसार ढाला जा सकता है।
    • डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी लगभग 5,000 दलित और आदिवासी महिला लघु किसानों के साथ मिलकर संधारणीय कृषि पद्धतियों के माध्यम से हजारों हेक्टेयर कृषि भूमियों को उर्वर बना रही है।

महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास की राह में मुख्य चुनौतियां 

  • पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंड: गहरी जड़ें जमा चुका पितृसत्तात्मक मानदंड महिलाओं के निर्णय लेने के अधिकारों को सीमित करता है और लैंगिक असमानता को जारी रखता है।
    • NFHS-5 (2019-21) के अनुसार, केवल 3% महिलाएं ही स्वतंत्र रूप से निर्णय लेती हैं।
    • महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अवैतनिक 'देखभाल और घरेलू कार्यों' का अधिक बोझ उठाना पड़ता है।
  • शिक्षा: वैश्विक स्तर पर  महिलाओं की औसत साक्षरता दर 79.9% है, जबकि भारत इस मामले में काफी पीछे (62.3%) है।
  • कार्यस्थल पर भेदभाव: महिलाओं को ग्लास-सीलिंग प्रभाव के कारण उत्पीड़न, असमान वेतन और करियर के सीमित विकास जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • विश्व आर्थिक मंच (WEF) की जेंडर गैप रिपोर्ट, 2023 के अनुसार समान कार्य के लिए महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 20% कम वेतन प्राप्त होता है।
  • लैंगिक डिजिटल डिवाइड: भारत में केवल 15% महिलाओं की ही इंटरनेट तक पहुँच है (मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021)।
  • बाल विवाह और मातृत्व की जिम्मेदारी:  कम उम्र में शादी और बच्चे पैदा करने के दबाव से महिलाओं की शिक्षा और करियर की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं।
    • NFHS-5 के अनुसार, 20-24 वर्ष के आयु वर्ग की 23%  महिलाओं की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले हो गई थी।
  • महिलाओं की सुरक्षा: बढ़ती हिंसा महिलाओं की आवाजाही और स्वतंत्रता को सीमित करती है।
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4.5 लाख मामले दर्ज किए गए।

 

महिलाओं के नेतृत्व में विकास सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक पहलें

  • महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination against Women: CEDAW), 1979: यह कन्वेंशन संयुक्त राष्ट्र-महिलाओं की स्थिति पर आयोग के सहयोग से अपनाया गया।
    • यह आयोग महिलाओं की स्थिति की निगरानी और उनके अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए 1946 में स्थापित किया गया था। 
  • यूएन वूमेन (UN Women): इसे 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थापित किया गया था। यह संस्था लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कार्य करती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: यह पूरे विश्व में 8 मार्च को मनाया जाता है। यह सभी राष्ट्रों, सभी नृजातीय समुदायों, सभी भाषाओं, सभी संस्कृतियों तथा सभी प्रकार के आर्थिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि की महिलाओं की उपलब्धियों को मान्यता देता है।
    • 2025 की थीम थी: "सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए: अधिकार, समानता, सशक्तिकरण (For ALL Women and Girls: Rights. Equality. Empowerment)"

निष्कर्ष

विकास प्रक्रिया में महिलाओं को समान भागीदार देकर सशक्त बनाने से समावेशी विकास को बढ़ावा मिलता है। राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक सुधारों के माध्यम से, महिलाएं अब ना केवल कल्याणकारी योजनाओं की लाभार्थी रह गई हैं, बल्कि समाज में सक्रिय बदलाव की अग्रदूत बन गई है। समान अधिकार, अवसर और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना भारत में सतत प्रगति और महिलाओं के नेतृत्व वाले वास्तविक विकास मॉडल का मार्ग प्रशस्त करता है।

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