IUCN ग्रीन लिस्ट (IUCN GREEN LIST) | Current Affairs | Vision IAS
मेनू
होम

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के लिए प्रासंगिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास पर समय-समय पर तैयार किए गए लेख और अपडेट।

त्वरित लिंक

High-quality MCQs and Mains Answer Writing to sharpen skills and reinforce learning every day.

महत्वपूर्ण यूपीएससी विषयों पर डीप डाइव, मास्टर क्लासेस आदि जैसी पहलों के तहत व्याख्यात्मक और विषयगत अवधारणा-निर्माण वीडियो देखें।

करंट अफेयर्स कार्यक्रम

यूपीएससी की तैयारी के लिए हमारे सभी प्रमुख, आधार और उन्नत पाठ्यक्रमों का एक व्यापक अवलोकन।

ESC

संक्षिप्त समाचार

02 May 2025
101 min

IUCN ग्रीन लिस्ट में चार नए स्थल जोड़े गए हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • सऊदी अरब का शरान नेचर रिजर्व और किंग अब्दुलअजीज रॉयल नेचर रिजर्व, 
  • जॉर्डन का अकाबा मरीन रिजर्व, और
  • संयुक्त अरब अमीरात (UAE) का सिर बु नैर संरक्षित क्षेत्र।

IUCN ग्रीन लिस्ट के बारे में

  • यह प्रमाणन से संबंधित वैश्विक कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य प्रभावी, न्यायसंगत और सफल संरक्षित एवं परिरक्षित क्षेत्र सुनिश्चित करना तथा उन्हें बढ़ावा देना है।
  • फोकस: संरक्षण संबंधी प्रबंधन में सर्वोत्तम पद्धतियों को उजागर करना तथा प्रगति के लिए मानक निर्धारित करना।
  • उद्देश्य:
    • संरक्षित एवं परिरक्षित क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि करना, ताकि उनका प्रबंधन प्रभावी एवं समतापूर्ण ढंग से किया जा सके।
    • संरक्षण संबंधी परिणाम सुनिश्चित करना। इसके तहत SDG-15 “स्थलीय जीवन” के संरक्षण में योगदान देना और जैव विविधता अभिसमय (CBD) के आईची लक्ष्य 11 को हासिल करने की दिशा में कार्य करना शामिल है।

मध्य प्रदेश का माधव राष्ट्रीय उद्यान भारत का 58वां टाइगर रिजर्व घोषित किया गया।

  • यह मध्य प्रदेश का नौवां टाइगर रिजर्व है। मध्य प्रदेश के अन्य टाइगर रिजर्व में रातापानी, वीरांगना दुर्गावती, संजय धुबरी, सतपुड़ा, पन्ना, बांधवगढ़, पेंच आदि शामिल हैं।

माधव राष्ट्रीय उद्यान के बारे में

  • अवस्थिति: यह चंबल क्षेत्र के शिवपुरी जिले में भारत की मध्य उच्चभूमि के उत्तरी छोर पर स्थित है। मध्य उच्चभूमि ऊपरी विंध्य पहाड़ियों का भाग है।  
  • इसे 1958 में राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया था।
  • झीलें: इसके दक्षिणी भाग में साख्य सागर और माधव सागर हैं।
  • जीव-जंतु: बाघ, नीलगाय, चिंकारा, चौसिंगा, चीतल, बार्किंग डियर, मार्श क्रोकोडाइल, तेंदुआ, सियार, अजगर आदि।
  • वनस्पति: उत्तरी उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती मिश्रित वन और शुष्क कांटेदार वन। यहां पाई जाने वाली वृक्ष प्रजातियों में मुख्य रूप से करधई वृक्ष अधिक पाए जाते हैं।

भारत में टाइगर रिजर्व घोषित करने की प्रक्रिया

  • राज्य सरकारें वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 38V के प्रावधानों के अनुसार टाइगर रिजर्व अधिसूचित करती हैं। इसके लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) से सलाह ली जाती है। 
  • अधिसूचना में निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:
    • राज्य से प्रस्ताव प्राप्त होना;
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 38V के अंतर्गत NTCA विस्तृत विवरणों की मांग करते हुए अपनी सैद्धांतिक मंजूरी देता है;
    • NTCA समुचित जांच के बाद राज्य को प्रस्ताव की सिफारिश करता है;
    • राज्य सरकार संबंधित क्षेत्र को टाइगर रिज़र्व के रूप में अधिसूचित करती है।

बाघ (पेंथेरा टाइग्रिस) के बारे में 

  • पर्यावास: उष्णकटिबंधीय वन, सदाबहार वन, वुडलैंड्स, मैंग्रोव दलदल, घास के मैदान, सवाना आदि।
  • विशेषताएं: सभी एशियाई विडाल वंशियों में सबसे बड़ा बाघ है। यह शिकार की गंध की बजाए मुख्य रूप से अपनी देखने की क्षमता और शिकार की हलचल एवं आवाज के जरिए शिकार करता है।
  • यह प्राय: एकांतवासी जीव है, हालांकि मादाएं अपने शावकों के साथ रहती हैं। 
  • यह रात्रिचर प्राणी है और घात लगाकर शिकार करता है।
  • यह अच्छा तैराक होता है और अपने शिकार को डुबाने में सक्षम होता है।
  • संरक्षण स्थिति: एंडेंजर्ड (IUCN)); परिशिष्ट-I (CITES); अनुसूची-1 {वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972}।

कसमपट्टी सेक्रेड ग्रोव को तमिलनाडु का दूसरा BHS घोषित किया गया है। राज्य का पहला BHS मदुरै में अरिट्टापट्टी है। 

  • यह डिंडीगुल जिले में अलगर्मलै रिजर्व फॉरेस्ट के पास स्थित है।

जैव विविधता विरासत स्थल (BHS) के बारे में

  • BHS विशिष्ट पारिस्थितिक-तंत्र है। यह अपने कुछ महत्वपूर्ण घटकों के साथ जैव-विविधता के मामले में समृद्ध होता है। यहां प्रजातियों की उच्च समृद्धता; उच्च स्थानिकता; दुर्लभ, स्थानिक और संकटग्रस्त प्रजातियां; कीस्टोन प्रजातियां आदि पाई जाती हैं।
  • इन स्थलों को जैव विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 37(1) के तहत अधिसूचित किया जाता है।
    • इस धारा में प्रावधान है कि राज्य सरकार स्थानीय निकायों के परामर्श से जैव-विविधता महत्व वाले क्षेत्र को आधिकारिक राजपत्र में BHS के रूप में अधिसूचित कर सकती है।

UNESCO/ यूनेस्को द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में पारिस्थितिकी-तंत्र, अर्थव्यवस्थाओं और समाजों को बनाए रखने में पहाड़ों एवं अल्पाइन ग्लेशियर्स (वाटर टावर्स) की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया गया है।

पर्वतीय पारिस्थितिकी-तंत्र

  • पारिस्थितिकी-तंत्र: वैश्विक पर्वतीय क्षेत्र के लगभग 40% भाग पर वनों का विस्तार है। इसके अलावा, पर्वतों पर अधिक ऊंचाई पर घास के मैदान और अल्पाइन टुंड्रा वनस्पति मिलती है।
  • जल विनियमन: दुनिया की दो-तिहाई सिंचित कृषि पहाड़ों से बहकर आने वाले जल पर निर्भर करती है।
  • कार्बन भंडारण: पहाड़ी मिट्टी (विशेष रूप से पर्माफ्रॉस्ट युक्त) में लगभग 66 पेटाग्राम (Pg) मृदा जैविक कार्बन जमा होता है, जो वैश्विक मृदा जैविक कार्बन का 4.5% है।
  • जैव विविधता: दुनिया के 34 जैव विविधता हॉटस्पॉट्स में से 25 पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित हैं। इनमें उच्च स्थानिक जैव विविधता पाई जाती है। ये हॉटस्पॉट्स महत्वपूर्ण कृषि और औषधीय पादपों के जीन पूल का संरक्षण करते हैं।  

पर्वतीय पारिस्थितिकी-तंत्र की सुभेद्यताएं:

  • ग्लेशियर्स की हानि: एंडीज पर्वत श्रृंखला में 1980 के दशक से अब तक 30-50% ग्लेशियर पिघल चुके हैं। हिंदू कुश हिमालय में 2100 तक 50% ग्लेशियर के पिघलने की संभावना है। ग्लेशियर्स का तेजी से पिघलना जल सुरक्षा के समक्ष एक बड़ा खतरा है।
  • वाटरमेलन स्नो (ग्लेशियर ब्लड) इफेक्ट: ग्लेशियर्स की सतह पर होने वाला लाल शैवाल प्रस्फुटन इनके एल्बिडो को कम करता है, जिसके कारण बर्फ तेजी से पिघलने लगती है।
  • शहरीकरण: यह जल विज्ञान चक्र को गंभीर रूप से बदलता है, जो संसाधनों के अत्यधिक दोहन का कारण बनता है और पारिस्थितिकी संतुलन को बिगाड़कर आपदाओं को बढ़ाता है।
  • वायुमंडलीय प्रदूषण: लंबी दूरी तक पहुंचने वाले प्रदूषण के कारण बर्फ के कोर और झील की तलछट में ब्लैक कार्बन की मात्रा में वृद्धि दर्ज की गई है।

अहमदाबाद नगर निगम (AMC) अपने बजट में अलग जलवायु अध्याय शामिल करने वाला पहला शहरी स्थानीय निकाय बना।

  • इस नए अध्याय का शीर्षक ‘सतत और जलवायु बजट (Sustainable and climate budget)’ है। इसके तहत अहमदाबाद नगर निगम (AMC) ने 2025-26 के बजट का एक-तिहाई हिस्सा जलवायु कार्रवाई के लिए निर्धारित किया है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत द्वारा 2070 तक नेट-जीरो क्लाइमेट रेजिलिएंट सिटी एक्शन प्लान को लागू करने के लक्ष्य को हासिल करना है।
  • इससे पहले, बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) ने भी AMC की भांति जलवायु बजट प्रस्तुत किया था। इसमें 33% पूंजीगत व्यय जलवायु-संबंधी परियोजनाओं के लिए निर्धारित किया गया था।

जलवायु बजटिंग के बारे में

  • यह एक ऐसी प्रशासन प्रणाली है, जिसके तहत जलवायु प्रतिबद्धताओं को नीतियों, कार्यवाहियों और बजटीय आवंटन में प्रमुखता से शामिल किया जाता है।
  • इसके तहत, शहरों की जलवायु कार्य योजना से जुड़े लक्ष्यों को बजट प्रक्रिया के साथ एकीकृत किया जाता है तथा इसके कार्यान्वयन व निगरानी की ज़िम्मेदारी नगर प्रशासन को सौंपी जाती है।
  • शहरों के लिए जलवायु बजट का महत्त्व:
    • यह जलवायु परिवर्तन के अनुकूल विकास को बढ़ावा देने; उत्सर्जन में कमी लाने; और वैश्विक एवं राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है।
    • इसके कारण व्यय का विश्लेषण करके जलवायु वित्त की कमी का अनुमान लगाने में मदद मिलती है। साथ ही, इससे जलवायु वित्त जुटाने वाले नवीन वित्तीय मॉडल्स को अपनाने में भी सहायता मिलती है। 

जलवायु कार्रवाई में स्थानीय प्रशासन की भूमिका

  • विविध स्थानीय जलवायु कार्रवाई: जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अलग-अलग क्षेत्रों की भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक दशाओं के आधार पर अलग-अलग होता है। इसलिए इनके समाधान के लिए स्थानीय उपाय अधिक प्रभावी हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए- वित्त वर्ष 2024-25 में, BMC ने शहरी बाढ़ से निपटने के लिए अपने पूंजीगत व्यय का लगभग 30% हिस्सा आवंटित किया।
  • स्थानीय प्रशासन जलवायु परिवर्तन की वजह से उत्पन्न होने वाली चरम मौसमी घटनाओं जैसे कि भूस्खलन आदि से निपटने में अग्रणी भूमिका निभाता है। 
  • जलवायु अनुकूलन और शमन के लिए स्थानीय पारंपरिक ज्ञान का सहारा लिया जा सकता है। उदाहरण के लिए- राजस्थान में जल संरक्षण के लिए कुंडी वर्षा जल संचयन प्रणाली प्रचलित है।

रुशिकोंडा बीच ने फिर से ब्लू फ्लैग टैग हासिल किया। ज्ञातव्य है कि खराब रखरखाव के कारण रुशिकोंडा से यह टैग वापस ले लिया गया था।

  • विशाखापत्तनम का रुशिकोंडा बीच आंध्र प्रदेश का एकमात्र ब्लू फ्लैग बीच है। यह भारत के 13 ब्लू फ्लैग बीचों में शामिल है।

ब्लू फ्लैग टैग के बारे में

  • किसे दिया जाता है: इसे समुद्र तटों, मरीनों (पत्तनों के निकट मनोरंजन गतिविधियों हेतु लघु जल क्षेत्र) और संधारणीय नौका विहार पर्यटन संचालकों को प्रदान किया जाता है। प्रत्येक श्रेणी के लिए अलग-अलग मानक होते हैं। 
  • कौन देता है: डेनमार्क स्थित एक गैर-सरकारी संगठन फाउंडेशन फॉर एनवायरनमेंटल एजुकेशन (FEE) द्वारा प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है।
  • कैसे मिलता है: ब्लू फ्लैग टैग प्राप्त करने हेतु कठोर पर्यावरणीय, शैक्षिक, सुरक्षा और अभिगम्यता मानदंडों की एक श्रृंखला को पूर्ण करना तथा बनाए रखना आवश्यक है।

हाल ही में नरव्हेल का पहली बार उनके ‘टस्किंग बिहेवियर’ (Tusking behaviour) के लिए अध्ययन किया गया। 

नरव्हेल के बारे में 

  • नरव्हेल का एक लंबा टस्क होता है, जो वास्तव में दांत है। 
  • नर के टस्क होता है, जबकि आमतौर पर मादा के पास टस्क नहीं होता है। हालांकि, यह आम लक्षण नहीं है। कुछ मादाओं में छोटा टस्क देखा गया है, वहीं कुछ नर में टस्क होता ही नहीं है। कुछ नरव्हेल में दो-दो टस्क रिकॉर्ड किए गए हैं।
    • टस्क के उपयोग: जल में लवणता और तापमान का पता लगाने में सहायक होता है, शिकार करने और पर्यावरण में बदलाव के अनुसार ढ़लने में मदद करता है आदि। 
  • वैज्ञानिक नाम: मोनोडोन मोनोसेरोस (Monodon monoceros)। इसका अर्थ है: एक टस्क और एक सींग वाली व्हेल। 
  • पर्यावास क्षेत्र: कनाडा, ग्रीनलैंड, नॉर्वे और रूस में फैला आर्कटिक जल। 
  • IUCN रेड लिस्ट स्थिति: लीस्ट कंसर्न। 
  • जीवनकाल: मादा लगभग 100 वर्ष जीवित रह सकती है, जबकि नर लगभग 84 वर्ष तक जीवित रह सकता है। 
  • प्रजनन: गर्भकाल (लगभग 13 से 16 महीने)।

यह पहला ग्लेशियर है, जिसे जलवायु परिवर्तन के कारण आधिकारिक रूप से पूर्णतया विलुप्त घोषित किया गया है। 

  • 2014 में आइसलैंड के ओह-युकुल ग्लेशियर को डेड (मृत) घोषित किया गया था। ऐसा इसलिए किया गया था, क्योंकि इसका द्रव्यमान इतना कम हो गया था कि इसकी आगे की और बढ़ने की गति रुक गई थी।
  • ओकजोकुल एक गुंबद के आकार का ग्लेशियर था। यह आइसलैंड की राजधानी रेक्जाविक के उत्तर-पश्चिम में ओक शील्ड ज्वालामुखी के क्रेटर के चारों ओर मौजूद था।
  • अन्य ग्लेशियर जिनका अस्तित्व समाप्त हो गया है: 
    • एंडरसन ग्लेशियर, क्लार्क ग्लेशियर और ग्लिसन ग्लेशियर (संयुक्त राज्य अमेरिका); 
    • बाउमन ग्लेशियर (न्यूजीलैंड);
    • काल्डेरोन ग्लेशियर (इटली); 
    • मार्शल सुर ग्लेशियर (अर्जेंटीना);
    • पिको हम्बोल्ट ग्लेशियर (वेनेजुएला); 
    • पिजोल ग्लेशियर (स्विट्जरलैंड);
    • सारेन ग्लेशियर (फ्रांस) और 
    • श्नीफर्नर ग्लेशियर (जर्मनी)।

ग्लेशियरों (हिमनद) के बारे में

  • ग्लेशियर बर्फ और हिम का एक विशाल व बारहमासी संचय होता है। यह अपने वजन और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से धीरे-धीरे ढलान की दिशा में आगे बढ़ता रहता है।
  • ग्लेशियर आमतौर पर उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहां औसत वार्षिक तापमान हिमांक बिंदु के करीब होता है और शीत ऋतु में वर्षण से अत्यधिक मात्रा में बर्फ गिरती है। इससे उसका पर्याप्त संचय होता रहता है।
  • ग्लेशियरों का महत्त्व:
    • जल भंडार: ग्लेशियरों में पृथ्वी के लगभग तीन-चौथाई ताजे जल का भंडारण मौजूद है। इस प्रकार ये ताजे जल के सबसे बड़े भंडार हैं।
    • कृषि: ग्लेशियर कई क्षेत्रों में सिंचाई का स्रोत हैं। साथ ही, ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियां कृषि के लिए भूमि को उपजाऊ भी बनाती हैं।
    • जैव विविधता: ग्लेशियरों के पिघलने से झीलों, नदियों और महासागरों में पोषक तत्व पहुंचते हैं। इससे पादपप्लवकों (Phytoplankton) की संख्या में वृद्धि होती है। पादपप्लवक जलीय खाद्य श्रृंखलाओं का आधार होते हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के पिघलने के प्रभाव

  • जल चक्र में व्यवधान: इससे ताजे जल की उपलब्धता और पारिस्थितिकी-तंत्र व कृषि के समक्ष खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  • प्राकृतिक आपदाएं: इससे हिमनदीय झील के तटबंध टूटने से आने वाली बाढ़ (GLOF) और हिमस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
  • समुद्री जल स्तर में वृद्धि: इससे तटीय कटाव, पर्यावास की क्षति, जैव विविधता हानि आदि हो सकती है।
  • क्लाइमेट फीडबैक लूप: इससे पृथ्वी की सतह का एल्बिडो कम हो जाता है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होने लगती है। 

 

ग्लेशियरों के संरक्षण के लिए शुरू की गई पहलें

  • वैश्विक स्तर पर: संयुक्त राष्ट्र, यूनेस्को अंतर-सरकारी जल विज्ञान कार्यक्रम आदि द्वारा वर्ष 2025 को ‘ग्लेशियरों के संरक्षण का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष’ घोषित किया गया है।
  • भारत में शुरू की गई पहलें: नेटवर्क प्रोग्राम ऑन हिमालयन क्रायोस्फीयर, क्रायोस्फीयर एवं जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र, हिमांश (HIMANSH) अनुसंधान केंद्र आदि।

जॉर्ज VI आइस शेल्फ से हिमखंड के अलग होने के बाद अंटार्कटिका में समृद्ध गहरे समुद्री पारिस्थितिकी-तंत्र की खोज हुई।

  • यह खोज चैलेंजर 150 पहल के तहत की गई है। इस पहल को महासागर दशक कार्रवाई (2021-2030) के हिस्से के रूप में यूनेस्को/ अंतर-सरकारी महासागरीय विज्ञान आयोग (IOC) से समर्थन प्राप्त है।

इस खोज के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र 

  • समृद्ध पारिस्थितिकी-तंत्र: 1,300 मीटर (मेसोपेलैजिक जोन या मध्य-वेलापवर्ती मंडल) की गहराई पर बड़े कोरल और स्पंज (Sponge) के साथ-साथ विविध जीवों से समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद है। उदाहरण के लिए- आइसफिश और जायंट सी स्पाइडर्स।
    • ये पारिस्थितिकी-तंत्र सदियों से 150 मीटर मोटी बर्फ के नीचे अलग-थलग अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। साथ ही, ये समुद्री सतह से नितल की ओर जाने वाले सतही पोषक तत्वों से पूरी तरह कटे हुए थे, जो गहरे समुद्र में जीवन के लिए आवश्यक होते हैं।
  • खोजी गई नई प्रजातियां: जायंट सी स्पाइडर्स, ऑक्टोपस, जायंट फैंटम जेलीफ़िश (1 मीटर तक के आकार वाली), फूलदान के आकार का स्पंज (संभवतः सैकड़ों वर्ष पुराना) आदि।

गहरे समुद्र के पारिस्थितिकी-तंत्र के बारे में

  • परिभाषा: ये समुद्र में 200 मीटर से अधिक गहरे क्षेत्र या समुद्र नितल होते हैं। यहां तक प्रकाश नहीं पहुंच पाता है। इसलिए, इसे अप्रकाशी/ एफोटिक ज़ोन कहा जाता है। ये कुल समुद्री क्षेत्र का लगभग 90% हिस्सा हैं और इस प्रकार ये पृथ्वी के सबसे बडे बायोम भी हैं।
  • गहरे समुद्री पर्यावास और जैव विविधता संबंधी अनूठी विशेषताएं:
    • अत्यधिक विशाल सागर नितल मैदान: ये प्रकाश रहित और पंक युक्त समुद्र नितल होते हैं। यहां मौजूद प्रजातियां जीवित रहने के लिए समुद्री बर्फ पर निर्भर रहती हैं। उदाहरण के लिए- समुद्री खीरा।
      • समुद्री बर्फ (Marine Snow): ये कार्बनिक पदार्थ होते हैं, जो समुद्री सतह से नितल की  ओर गति करते हैं। ये गहरे समुद्र में रहने वाले जीवों के लिए आहार के रूप में काम करते हैं तथा कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन में सहायता करते हैं।
    • हाइड्रोथर्मल वेंट: ये समुद्र नितल पर मौजूद छिद्र या दरार होते हैं, जिनसे गर्म व खनिज से समृद्ध पदार्थ निकलते रहते हैं। यहां पाई जाने वाली प्रजातियां जीवित रहने के लिए रसायन-संश्लेषक बैक्टीरिया पर निर्भर रहती हैं। उदाहरण के लिए- ट्यूबवर्म और येति क्रेब्स।
    • व्हेल फॉल्स: जब व्हेल का मृत शरीर समुद्र की गहराई में डूबता है, तो यह अस्थायी पारिस्थितिकी-तंत्र का निर्माण करता है। व्हेल का मृत शरीर अपमार्जकों के लिए आहार बन जाता है। उदाहरण के लिए: हैगफिश।

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि उच्च कार्बन उत्सर्जन परिदृश्य की वजह से 2050 तक अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट लगभग 20 प्रतिशत तक धीमा हो सकता है।

अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट क्या है?

  • यह पृथ्वी पर सबसे तेजी से प्रवाहित होने वाली और पवन-चालित सबसे बड़ी महासागरीय धारा है। यह अंटार्कटिका के चारों ओर दक्षिणावर्त (घड़ी की सुई के घूमने की दिशा में) घूमती है। यह प्रबल पछुआ पवनों (Westerly winds) द्वारा संचालित होती है। 
  • यह एकमात्र महासागरीय धारा है, जो पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करती है। यह अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महासागरों के जलों को जोड़ती है। 
  • अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट का महत्त्व:
    • यह एक शीत धारा (Cold Current) है। यह अवरोधक के रूप में कार्य करती हुई गर्म जल को अंटार्कटिका तक पहुंचने से रोकती है।
    • यह महासागर द्वारा वायुमंडल से ऊष्मा और कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण में बड़ी भूमिका निभाती है।
    • यह अन्य महाद्वीपों की बुल केल्प, झींगा, मोलस्क जैसी आक्रामक प्रजातियों को अंटार्कटिका तक पहुंचने से रोकती है।

अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट की गति कम होने की वजहें

  • महासागर की लवणता में परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अंटार्कटिका के आसपास हिमखंड (ice shelves) तेजी से पिघल रहे हैं। इससे अंटार्कटिक बॉटम वाटर (AABW) कमजोर हो रहा है।
    • अंटार्कटिक बॉटम वाटर वास्तव में सिंकिंग प्रोसेस है। इसका अर्थ है कि अधिक ठंडा होने की वजह से इस जल का घनत्व बढ़ जाता है और महासागर में अधिक गहराई में पहुंच जाता है। वहां से यह उत्तर की ओर प्रवाहित होता हुआ दक्षिणी, हिंद, प्रशांत और अटलांटिक महासागरों के सबसे गहरे भागों में पहुंच जाता है। 
    • इस तरह यह विश्व में महासागर के जलों के परिसंचरण का एक महत्वपूर्ण घटक है और अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट के परिसंचरण से भी जुड़ा हुआ है।
  • पवन की दिशा और वेग में परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन दक्षिणी गोलार्ध में पछुआ पवनों की दिशा व वेग को बदल सकता है।
  • पॉजिटिव फीडबैक लूप: समुद्री बर्फ में कमी से महासागर और अधिक सूर्य प्रकाश अवशोषित करने लगेगा। इससे महासागरीय जल और अधिक गर्म होने लगेगा और ताजा जल महासागरों में प्रवेश करने लगेगा। इससे अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट और अधिक कमजोर हो सकता है।   

अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट के कमजोर होने के संभावित प्रभाव

  • जलवायु में अत्यधिक अस्थिरता बढ़ेगी। इससे कुछ क्षेत्रों में अधिक चरम मौसमी घटनाएं बढ़ सकती हैं।
  • महासागर की कार्बन अवशोषण क्षमता घटने से ग्लोबल वार्मिंग तेज हो सकती है।
  • अन्य महाद्वीपों से आक्रामक प्रजातियां पहुंचने पर अंटार्कटिका के नाज़ुक पारिस्थितिकी-तंत्र पर असर पड़ सकता है।
  • अंटार्कटिक बॉटम वाटर (AABW) के कमजोर होने के कारण विश्व की महासागरीय धाराओं की परिसंचरण प्रणाली प्रभावित हो सकती है।

फॉरेस्ट डिक्लेरेशन असेसमेंट ने ‘2030 ग्लोबल फॉरेस्ट विज़न (GFV): प्रायोरिटी एक्शंस फॉर गवर्नमेन्ट्स इन 2025’ रिपोर्ट जारी की।

  • फॉरेस्ट डिक्लेरेशन असेसमेंट (FDA) को 2015 में न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन ऑन फॉरेस्ट्स (NYDF) प्रोग्रेस असेसमेंट के रूप में स्थापित किया गया था। FDA नागरिक समाज के नेतृत्व में संचालित एक पहल है। इसका प्राथमिक उद्देश्य NYDF के तहत निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में हुई प्रगति का आकलन करना है।
  • NYDF को 2014 में सरकारों, कंपनियों, देशज लोगों और गैर-सरकारी संगठनों के गठबंधन द्वारा अपनाया गया था। साथ ही,  2014 के जलवायु शिखर सम्मेलन में इसका समर्थन किया गया था।
  • NYDF स्वैच्छिक प्रकृति का है। इसके तहत 10 लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। भारत द्वारा अभी तक इसका अनुसमर्थन नहीं किया गया है।

2030 GFV के अंतर्गत आठ प्राथमिकता वाली कार्रवाइयां

  • महत्वाकांक्षा (Ambition): राष्ट्रीय जलवायु एवं जैव विविधता योजनाओं और UNFCCC COP-30 परिणामों में वन लक्ष्यों को एकीकृत करना।
  • व्यापार (Trade): कानूनी, निर्वनीकरण, रूपांतरण और क्षरण-मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने के लिए साझेदार।
  • वित्त (Finance): 2024 में अपनाए गए “वन कार्बन परिणाम-आधारित भुगतान और क्रेडिट पर वन एवं जलवायु लीडर्स के वक्तव्य” के अनुरूप वनों के संरक्षण के लिए वित्त-पोषण को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाना।
  • अधिकार (Rights): देशज लोगों (IPs) और स्थानीय समुदायों (LCs) के भूमि अधिकारों को सुरक्षित करना।
  • पर्यवेक्षण (Supervision): सरकारों एवं वित्तीय पर्यवेक्षकों के आदेशों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वित्तीय संस्थानों द्वारा वन-संबंधी जोखिमों का पर्याप्त रूप से आकलन, प्रबंधन और शमन किया जाए।
  • सब्सिडी: वनों को नुकसान पहुंचाने वाली सब्सिडी को संधारणीय खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन, जैव-अर्थव्यवस्था में बदलाव और स्थायी वन प्रबंधन की दिशा में पुनर्निर्देशित करना। 
  • गवर्नेंस: भूमि-उपयोग क्षेत्र में गवर्नेंस को मजबूत करना तथा उसे वैश्विक प्रतिबद्धताओं के साथ एकीकृत करना।
  • ऋण (Debt): देशों के ऋण प्रबंधन में वनों की प्राकृतिक पूंजी के मूल्य को परिसंपत्तियों के रूप में शामिल करके बहुपक्षीय विकास वित्त में राजकोषीय लचीलापन बढ़ाना।

Explore Related Content

Discover more articles, videos, and terms related to this topic

Title is required. Maximum 500 characters.

Search Notes

Filter Notes

Loading your notes...
Searching your notes...
Loading more notes...
You've reached the end of your notes

No notes yet

Create your first note to get started.

No notes found

Try adjusting your search criteria or clear the search.

Saving...
Saved

Please select a subject.

Referenced Articles

linked

No references added yet

Subscribe for Premium Features