सुर्ख़ियों में क्यों?

नदी डॉल्फिनों के अब तक के पहले व्यापक सर्वेक्षण से पता चला है कि मुख्य रूप से गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी घाटियों में डॉल्फिनों की अनुमानित संख्या 6,327 है।
अन्य संभावित तथ्य
- सर्वेक्षण किया गया: इस सर्वेक्षण को भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा 'प्रोजेक्ट डॉल्फिन 2020' के तहत संचालित किया गया था।
- रिपोर्ट का नाम: इस सर्वेक्षण के निष्कर्ष "भारत में नदी डॉल्फिन की आबादी की स्थिति 2024" शीर्षक वाली रिपोर्ट में प्रकाशित हुए हैं।
"भारत में नदी डॉल्फिन की आबादी की स्थिति 2024" रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र
- समय के साथ आबादी में गिरावट: 20वीं सदी के अंत तक गंगा नदी में पायी जाने वाली डॉल्फिन की संख्या अनुमानतः लगभग 4,000-5,000 थी, लेकिन यह घटकर लगभग 1,800 रह गई है।
- आबादी: भारत में नदी डॉल्फिन की कुल संख्या 6327 है, जिसमें गंगा नदी की डॉल्फिन (6324) और सिंधु नदी की डॉल्फिन (केवल 3) शामिल हैं।
- उत्तर प्रदेश में डॉल्फिन की सबसे ज्यादा आबादी दर्ज की गई है। इसके बाद बिहार, पश्चिम बंगाल, असम झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान का स्थान है। पंजाब में सबसे कम तीन डॉल्फिन दर्ज की गयी।
- सिंधु नदी डॉल्फिन: भारत में सिंधु नदी डॉल्फिन (वर्तमान में ब्यास नदी में देखी जाती है) की संख्या चिंताजनक रूप से कम है। इसके संरक्षण पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
- अंब्रेला प्रजाति: रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉल्फिन एक अंब्रेला प्रजाति के रूप में कार्य करती हैं और उनके संरक्षण का उनके पर्यावास एवं जैव विविधता पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
गंगा नदी डॉल्फिन के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य

- पर्यावास: गंगा नदी डॉल्फिन मुख्य रूप से भारत, नेपाल और बांग्लादेश की प्रमुख नदी प्रणालियों (गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली-सांगु) में पाई जाती है। नेपाल की सहायक नदियों में ये कम संख्या में पायी जाती हैं।
- भारत में दुनिया की 90% गंगा नदी डॉल्फिन पायी जाती है।
- भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव: इसे भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया है।
- स्थानीय नाम: स्थानीय रूप से इन्हें 'सूंस' के नाम से जाना जाता है, जो डॉल्फिन द्वारा सांस लेते समय होने वाली आवाज़ को संदर्भित करता है।
- शीर्ष शिकारी प्रजाति: तीन देशों में आपस में जुड़ी नदी प्रणाली की शीर्ष शिकारी प्रजाति है, जिस कारण से इसे "टाइगर ऑफ गंगा" कहा जाता है।
- संरक्षण:
- CITES: परिशिष्ट I
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम: अनुसूची I
- IUCN स्थिति: एनडेंजर्ड
- संकेतक प्रजाति: गंगा डॉल्फिन एक संकेतक प्रजाति है, जिसकी मौजूदगी पारिस्थितिकी तंत्र और उस पारिस्थितिकी तंत्र में मौजूद अन्य प्रजातियों की समग्र स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
- सामाजिक: गंगा नदी की डॉल्फिन अक्सर अकेले पाई जाती हैं, लेकिन वे कभी-कभी सहायक नदियों के संगम पर छोटे समूहों में इकट्ठा भी होती हैं।
- शारीरिक विवरण:
- यह अंधी होती है और इकोलोकेशन के जरिए नदी के पानी में अपना रास्ता और शिकार ढूँढती है।
- रंग: गंगा नदी की डॉल्फिन आमतौर पर ग्रे या हल्के भूरे रंग की होती हैं, लेकिन पेट पर गुलाबी रंग भी हो सकता है।
सिंधु नदी डॉल्फिन के बारे में मुख्य तथ्य (IUCN: एनडेंजर्ड)
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गंगा नदी की डॉल्फिन के समक्ष मौजूद खतरा
- मत्स्य पालन से संबंधित मृत्यु दर और असंधारणीय मत्स्यन: नदी डॉल्फिन की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण बायकैच है, जो मछली पकड़ने के उपकरणों या जालों में गलती से फंसने से होती है। बायकैच के अलावा, गंगा नदी की डॉल्फिन को उनके मांस और मछली पकड़ने के लिए चारे के रूप में जानबूझकर भी मारा जाता है।
- मानव निर्मित जलीय अवसंरचना: जलविद्युत बांध, सिंचाई बैराज और कृत्रिम तटबंध आदि सभी डॉल्फिन के विभिन्न पर्यावास के बीच सुचारू विचरण को प्रभावित करते हैं। इससे ये कम आनुवंशिक विविधता वाली एक छोटी उप-आबादी के रूप में पृथक हो जाती हैं।
- उदाहरण के लिए, फरक्का बैराज गंगा नदी की पूरी चौड़ाई में फैला हुआ है, जो इनके प्राकृतिक विचरण को प्रभावित करता है।
- जल की गुणवत्ता: खनन, कृषि एवं औद्योगिक गतिविधियां जल की गुणवत्ता को खराब कर रही हैं।
- पांच अलग-अलग राज्यों से लगभग 2 बिलियन लीटर अनुपचारित मानव अपशिष्ट हर दिन गंगा नहीं में पहुँचता है।
- मानवीय व्यवधान: नावों की आवाजाही में वृद्धि, ड्रेजिंग गतिविधियाँ और मानवीय गतिविधियों से होने वाला ध्वनि प्रदूषण डॉल्फ़िन के व्यवहार एवं पर्यावास की गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों में खारा पानी भी प्रवेश कर रहा है, जिससे ऐसे जलीय क्षेत्र डॉल्फिन जैसे जीवों के रहने के लिए अनुपयुक्त होते जा रहे हैं।
- उदाहरण के लिए, ताजे पानी के प्रवाह में कमी और लवणता में वृद्धि के कारण सुंदरबन डेल्टा से ताजे पानी में पायी जाने वाली डॉल्फिन लुप्त हो रही है।
नदी डॉल्फिन के संरक्षण हेतु भारत द्वारा शुरू की गई पहल
- व्यापक कार्य योजना (2022-2047): पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक योजना तैयार की है, जो नदी डॉल्फिन के संरक्षण, पर्यावास में सुधार आदि पर केंद्रित है।
- वन्यजीव पर्यावास विकास योजना: गंगा नदी डॉल्फिन को 22 क्रिटिकली एनडेंजर्ड प्रजातियों में से एक के रूप में शामिल किया गया है, ताकि राज्यों को वित्तीय सहायता दी जा सके और डॉल्फिन के संरक्षण के लिए योजना बनाई जा सके।
- संरक्षित क्षेत्र: गंगा नदी के किनारे गंगा नदी डॉल्फिन के महत्वपूर्ण पर्यावासों को संरक्षित क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित किया गया है, जैसे विक्रमशिला डॉल्फिन अभयारण्य (बिहार)।
- चंबल नदी संरक्षण क्षेत्र: सरकार ने संरक्षण सम्बन्धी लक्षित प्रयासों को लागू करने के लिए इसे डॉल्फिन संरक्षण क्षेत्र (Dolphin Conservation Zone) के रूप में नामित किया है।
- मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में 200 किलोमीटर के भाग को संरक्षण संबंधी लक्षित प्रयासों के लिए अनुशंसित किया गया है।
- राष्ट्रीय डॉल्फिन दिवस: डॉल्फिन के संरक्षण हेतु लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए 5 अक्टूबर को "राष्ट्रीय डॉल्फिन दिवस" मनाया जाता है।
- राज्यों के लिए दिशा-निर्देश: राज्यों से आग्रह किया गया है कि वे इंटरनेशनल व्हेलिंग कमीशन के विनियमों के अनुरूप कार्य करें तथा संरक्षण संबंधी प्रयासों के लिए डॉल्फिन एवं व्हेलिंग कमिश्नर्स की नियुक्ति करें।
- भारत का पहला राष्ट्रीय डॉल्फिन अनुसंधान केंद्र (NDRC): इसका उद्घाटन बिहार के पटना में किया गया। यह अनुसंधान केंद्र गंगा डॉल्फिन के संरक्षण और अध्ययन के लिए समर्पित है।
- गंगा नदी डॉल्फिन टैगिंग: 2024 में, भारत ने प्रोजेक्ट डॉल्फिन के तहत असम में पहली बार गंगा नदी डॉल्फिन की सफलतापूर्वक सैटेलाइट-टैगिंग करने का लक्ष्य हासिल किया।
निष्कर्ष
नदी डॉल्फिन के प्रभावी संरक्षण के लिए आवश्यक जानकरी की पूर्ति हेतु बड़े पैमाने पर सैटेलाइट-टैगिंग करने की जरूरत है। साथ ही, समुदायों को "डॉल्फिन बचाव स्वयंसेवकों" के रूप में शामिल करना, इलेक्ट्रॉनिक पिंगर्स के साथ मछली पकड़ने की संधारणीय पद्धतियों को बढ़ावा देना तथा नदी डॉल्फिन के लिए वैश्विक घोषणा-पत्र जैसी पहलों के माध्यम से नेपाल एवं बांग्लादेश के साथ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना चाहिए।