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बिग टेक कंपनियों का विनियमन (REGULATING BIG TECH)

02 May 2025
60 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय (MCA) ने डिजिटल प्रतिस्पर्धा कानून समिति की रिपोर्ट (Digital Competition Law Committee's Report) पर जनता से फीडबैक मांगा है। गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई है कि बिग टेक कंपनियों पर नियंत्रण रखने के लिए एक नया डिजिटल प्रतिस्पर्धा कानून बनाया जाए।

पृष्ठभूमि

  • इस समिति ने डिजिटल अर्थव्यवस्था में नई चुनौतियों का समाधान करने के लिए प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की समीक्षा की है।
  • बिग टेक कंपनियों की प्रतिस्पर्धा-विरोधी पद्धतियों पर बढ़ती वैश्विक चिंताओं ने गूगल, मेटा, अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट और एक्स जैसी बिग टेक कंपनियों के लिए मजबूत विनियामक उपायों की मांग की है।

बड़ी टेक कंपनियों द्वारा प्रतिस्पर्धा-विरोधी पद्धतियों के प्रमुख उदाहरण

  • मेटा और व्हाट्सएप बनाम भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (भारत, 2024-25): भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने व्हाट्सएप पर यूजर डेटा को साझा करके अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग करने के लिए मेटा पर 213 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। यह मामला राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय अधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal: NCLAT) के समक्ष लंबित है।
  • व्हाट्सएप एन्क्रिप्शन विवाद (भारत): व्हाट्सएप ने स्पष्ट किया था कि यदि आई.टी. नियम, 2021 के तहत उसे मैसेज एन्क्रिप्शन को तोड़ने और संदेश भेजने वाले की पहचान उजागर करने के लिए बाध्य किया गया, तो वह भारत में अपनी सेवाएं बंद करने पर विचार कर सकता है। गौरतलब है कि आई.टी. नियम, 2021 के तहत सबसे पहले मैसेज भेजने वाले का पता लगाना अनिवार्य किया गया है।
  • गूगल प्ले स्टोर मामला (भारत): गूगल पर आरोप लगाया गया है कि वह डेवलपर्स को अपनी बिलिंग प्रणाली का उपयोग करने या वैकल्पिक प्रणालियों का उपयोग करने के लिए शुल्क का भुगतान करने हेतु मजबूर कर रहा है। इससे निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुंच रहा है।
  • एप्पल मुकदमा (संयुक्त राज्य अमेरिका, 2024): 2024 में संयुक्त राज्य अमेरिका के न्याय विभाग और 16 राज्यों ने मिलकर एप्पल पर मुकदमा किया था। उनका आरोप था कि एप्पल स्मार्टफोन के बाजार पर अपना एकाधिकार जमा रहा है। इसके अलावा, एप्पल पर यह भी आरोप लगाया गया था कि वह प्रतिस्पर्धी ऐप्स और डिजिटल वॉलेट्स को ठीक से काम नहीं करने दे रहा था, या उन पर पाबंदी लगा रहा था।

 

बिग टेक कंपनियों के विनियमन की आवश्यकता क्यों है?

  • संप्रभुता के लिए खतरा: यूजर डेटा को अवैध रूप से एकत्रित करके और उसे देश के बाहर के सर्वरों पर भेजने से उसके दुरुपयोग का खतरा रहता है। इससे डेटा सुरक्षा एवं राष्ट्रीय संप्रभुता को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा हो रही हैं।
    • उदाहरण के लिए- व्हाट्सएप यूजर डेटा को अपनी मूल कंपनी मेटा को बेच रही है।
  • नेटवर्क प्रभाव: बिग टेक कंपनियां नेटवर्क प्रभाव का उपयोग करके तेजी से आगे बढ़ती हैं। इसका अर्थ है कि उनके पास जितने अधिक यूजर्स होंगे, वे उतनी ही मजबूत होंगी। इससे नए प्रतिस्पर्धियों के लिए प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो जाएगा। इससे कुछ ही कंपनियों के स्थायी प्रभुत्व का खतरा पैदा हो गया है।
    • उदाहरण के लिए- AI टूल ChatGPT ने केवल 2 महीनों में 100 मिलियन यूजर जोड़े थे। ज्ञातव्य है कि 1 ट्रिलियन डॉलर वाली विश्व की शीर्ष सात कंपनियों में से 6 बिग टेक कंपनियां हैं।
  • राजकोष को राजस्व हानि: बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा कर दुरुपयोग के कारण भारत को प्रतिवर्ष लगभग 10 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है। इस समस्या से निपटने के लिए भारत ने 2016 में 6% इक्वलाइजेशन लेवी आरोपित की थी, हालांकि अब इसे हटा दिया गया है।
    • बिग टेक कंपनियां, कम कर या बिना कर वाले देशों में लाभ स्थानांतरित करने के लिए आधार क्षरण एवं लाभ स्थानांतरण (Base Erosion and Profit Shifting: BEPS) का उपयोग करती हैं। ज्ञातव्य है कि ऐसे देशों में इन कंपनियों का वास्तविक कारोबार बहुत कम होता है, जिससे भारत जैसे देशों में कर संबंधी नुकसान होता है।
  • डेटा गोपनीयता और साइबर सुरक्षा जोखिम: बड़े पैमाने पर डेटा संग्रहण से उसके दुरुपयोग, निगरानी एवं उल्लंघन की संभावना बढ़ जाती है।
  • नैतिक चिंताएं:
    • पारदर्शिता और जवाबदेही: बिग टेक कंपनियों के एल्गोरिदम, डेटा उपयोग तथा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में अक्सर पारदर्शिता का अभाव होता है।
    • लोक हित बनाम कॉर्पोरेट लाभ: वे कभी-कभी लोक कल्याण की कीमत पर भी अधिकतम लाभ को प्राथमिकता देती हैं।
    • डिजिटल डिवाइड और समानता: AI-संचालित शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल सेवा तक पहुंच में ग्रामीण बनाम शहरी असमानता मौजूद है।
    • नैतिक नीति निर्माण और विनियमन: वे लॉबिंग, डोनेशन और रणनीतिक साझेदारियों के माध्यम से नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करती हैं।
    • पर्यावरणीय जिम्मेदारी: डेटा सेंटर्स और इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट निपटान का कार्बन फुटप्रिंट चिंता का विषय बना हुआ है।

बिग टेक कंपनियों को विनियमित करने में चुनौतियां

  • विनियामक शून्यता: प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 एक्स-पोस्ट मॉडल पर आधारित है, जिसमें प्रतिस्पर्धा-रोधी व्यवहार के घटित होने के बाद कार्रवाई की जाती है। हालांकि, यह पारंपरिक दृष्टिकोण वर्तमान की तेज गति वाली डिजिटल अर्थव्यवस्था की जटिलताओं और गतिशीलता के साथ तालमेल बिठाने में असमर्थ साबित हो रहा है।
    • इसके अतिरिक्त, तकनीकी प्रगति की गति अक्सर विनियामक प्रतिक्रियाओं से आगे निकल जाती है।
  • प्रवर्तन में देरी: कानून के प्रवर्तन में देरी अक्सर बिग टेक कंपनियों को विनियमित करने में चुनौती पैदा करती है। उदाहरण के लिए- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (Digital Personal Data Protection Act: DPDPA), 2025 को अभी लागू किया जाना है।
  • विनियामक तंत्र का एकसमान न होना: बड़ी टेक कंपनियां वैश्विक स्तर पर काम करती हैं, लेकिन विनियामक प्रतिक्रियाएं अलग-अलग देशों में अलग-अलग होती हैं, जिससे एकसमान विनियमन प्रभावित होता है।
  • टेक्नो-राष्ट्रवाद और संरक्षणवाद: इससे देश घरेलू कंपनियों के पक्ष में हो जाते हैं।
  • कानून की अस्पष्टता: हाल ही में एक मामले में, एक्स ने सोशल मीडिया पर कंटेंट को विनियमित करने और हटाने का आदेश देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा आई.टी. अधिनियम की धारा 79(3)(b) के उपयोग को चुनौती दी थी। कंपनी ने तर्क दिया कि सरकार द्वारा इस प्रावधान का "दुरुपयोग" आई.टी. अधिनियम के अन्य प्रावधानों जैसे धारा 69A के तहत उपलब्ध सुरक्षा उपायों को दरकिनार कर देता है। 
    • एक्स ने केंद्र सरकार के नए सहयोग पोर्टल का भी विरोध किया है। यह पोर्टल सभी सरकारी एजेंसियों को यह सुविधा देता है कि वे एक मानकीकृत टेम्पलेट के माध्यम से किसी भी गैर-कानूनी या दुर्भावनापूर्ण गतिविधि में प्रयुक्त सूचना, डेटा या कम्युनिकेशन लिंक को हटाने या निष्क्रिय करने का अनुरोध कर सकती हैं।
    • एक्स ने तर्क दिया कि ऐसा आदेश सुप्रीम कोर्ट के श्रेया सिंघल वाद में दिए फैसले का उल्लंघन करता है।श्रेया सिंघल वाद में कहा गया था कि कंटेंट को केवल उचित कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से ही ब्लॉक किया जा सकता है।

श्रेया सिंघल वाद (2015) के बारे में

  • आई.टी. अधिनियम की धारा 69A को बरकरार रखा गया: सुप्रीम कोर्ट ने आई.टी. अधिनियम की धारा 69A को बरकरार रखते हुए कहा कि सरकार ऑनलाइन कंटेंट को ब्लॉक कर सकती है, यदि वह संविधान के अनुच्छेद 19(2) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध) का उल्लंघन करता है।
  • धारा 79(3)(b) के लिए संरक्षण प्रदान किया गया: यह धारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स एवं ऑनलाइन सेवा प्रदाताओं जैसे मध्यवर्तियों को "सेफ हार्बर (Safe harbour)"  संरक्षण प्रदान करती है। यह धारा उन्हें उनके प्लेटफॉर्म्स पर होस्ट की गई यूजर-जनित कंटेंट के लिए उत्तरदायित्व से बचाती है।
    • धारा 79(3)(b): यदि कोई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म/ मध्यवर्ती सरकारी अधिसूचना के बाद भी गैर-कानूनी कंटेंट को ब्लॉक करने/ हटाने में विफल रहता है तो "सेफ हार्बर" संरक्षण को हटा दिया जाता है।
      • हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि धारा 79(3)(b) तब प्रभावी होगी, जब अदालत का आदेश पारित हो जाएगा, या सरकार एक अधिसूचना जारी करेगी जिसमें कहा जाएगा कि विचाराधीन कंटेंट अनुच्छेद 19(2) में दिए गए आधारों से संबंधित है।

 

 

बिग टेक कंपनियों को विनियमित करने के लिए प्रमुख कानून

भारत में

  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA), 2023: इस अधिनियम के तहत यह प्रावधान किया गया है कि डिजिटल व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण की ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए, जो प्रत्येक व्यक्ति के अपने डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा के अधिकार को स्वीकारते हुए उसकी रक्षा करे।
  • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) या आईटी नियम {Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) or IT Rules}, 2021: भारत में बड़े यूजर आधार वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यवर्तियों (SSMIs) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। उन्हें अतिरिक्त नियमों का पालन करना पड़ता है, जैसे- विशिष्ट परिस्थितियों में सबसे पहले मैसेज भेजने वाले का पता लगाना।
  • प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002: यह अनुचित व्यवहारों को रोकने, उपभोक्ताओं की सुरक्षा करने और मुक्त व्यापार सुनिश्चित करने से संबंधित है।
    • 2023 का संशोधन वैश्विक कारोबार के आधार पर दंड की अनुमति देता है। CCI प्रतिस्पर्धा-विरोधी कृत्यों या प्रभुत्व के दुरुपयोग के लिए पिछले 3 वर्षों की औसत आय या कारोबार के 10% तक का जुर्माना लगा सकता है।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019: इसमें भ्रामक विज्ञापनों और अनुचित व्यापार प्रथाओं के लिए कंपनियों को दंडित करने का प्रावधान है। 
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A: यह सरकार को भारत की संप्रभुता और अखंडता, भारत की रक्षा, राज्य की सुरक्षा आदि के हित में किसी भी कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से किसी भी सूचना तक सार्वजनिक पहुंच को अवरुद्ध करने की अनुमति देती है।

वैश्विक

  • यूरोपीय संघ: डेटा संरक्षण और डिजिटल विनियमन के क्षेत्र में यूरोपीय संघ के प्रमुख कदमों में जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR), 2016 और डिजिटल सर्विसेज एक्ट पैकेज के तहत प्रस्तावित डिजिटल मार्केट एक्ट (DMA) शामिल हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र: वर्ष 1980 में, संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंधात्मक व्यावसायिक प्रथाओं पर आयोजित सम्मेलन के तहत "प्रतिबंधात्मक व्यापारिक गतिविधियों के नियंत्रण के लिए बहुपक्षीय रूप से सहमत न्यायसंगत सिद्धांतों और नियमों के एक सेट" को स्वीकृति प्रदान की थी।

बिग टेक कंपनियों को प्रभावी ढंग से विनियमित करने के लिए आगे की राह

डिजिटल प्रतिस्पर्धा कानून पर समिति की मुख्य सिफारिशें इस प्रकार हैं:

  • डिजिटल प्रतिस्पर्धा के पूर्व-विनियमन की आवश्यकता: एक डिजिटल प्रतिस्पर्धा कानून बनाया जाना चाहिए। इससे CCI केवल उन उद्यमों को विनियमित कर सकेगी जिनकी महत्वपूर्ण उपस्थिति है तथा जो भारतीय डिजिटल बाजार को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
  • प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण डिजिटल उद्यम (Systemically Significant Digital Enterprises: SSDEs): सर्च इंजन, सोशल मीडिया, ऑपरेटिंग सिस्टम और ब्राउज़र जैसी बाजार संकेन्द्रण के प्रति संवेदनशील मुख्य सेवाएं प्रदान करने वाली संस्थाओं को पूर्व-विनियमन के लिए SSDEs के रूप में नामित करना चाहिए।
  • SSDEs के वर्गीकरण के लिए सीमाएं: मानदंड में उद्यमों के संसाधन और उनके द्वारा एकत्रित डेटा की मात्रा शामिल होनी चाहिए। 
  • एसोसिएट डिजिटल एंटरप्राइजेज़ (ADEs): उद्यमों को अपने समूह के अंतर्गत उन सभी अन्य उद्यमों की पहचान करनी चाहिए जो मुख्य डिजिटल सेवा की प्रदायगी में शामिल हैं। इन उद्यमों को प्रस्तावित ढांचे के अंतर्गत ADEs के रूप में नामित किया जाना चाहिए तथा उन्हें इसका अनुपालन करना चाहिए। 
  • SSDEs के दायित्व: SSDEs को निम्नलिखित कार्यों का निष्पादन नहीं करना चाहिए;
    • अपने स्वयं के या संबंधित पक्ष के उत्पादों को प्राथमिकता देना या तीसरे पक्ष के ऐप्स को ब्लॉक करना;
    • उपयोगकर्ताओं को अपनी अन्य सेवाएं अपनाने के लिए बाध्य करना;
    • प्रतिस्पर्धा करने के लिए गैर-सार्वजनिक व्यावसायिक उपयोगकर्ता डेटा का उपयोग करना; आदि।
  • नियमों को ठीक से लागू करना: CCI को मामलों का शीघ्र पता लगाने और निपटान के लिए महानिदेशक कार्यालय सहित अपनी तकनीकी क्षमता में सुधार करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, तेजी से अपील के लिए NCLAT की एक अलग पीठ गठित की जानी चाहिए। 
  • दंड: उल्लंघन करने पर SSDEs के वैश्विक कारोबार के 10% तक जुर्माना लगाया जाना चाहिए। 

निष्कर्ष

गूगल, मेटा, अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट और एक्स जैसी बड़ी टेक कंपनियों पर बाजार में लंबे समय से बाजार में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के आरोप लगते रहे हैं। ये कंपनियां न केवल हमारे उपभोग के तरीकों को, बल्कि हमारी सोच और अभिव्यक्ति को भी प्रभावित करती हैं। यदि इन पर प्रभावी विनियमन न हो, तो इनका वर्चस्व निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा और स्वतंत्र सार्वजनिक संवाद के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है। ऐसा असंतुलन न केवल प्रतिस्पर्धा को दबा सकता है, बल्कि उपभोक्ताओं की पसंद को भी सीमित कर सकता है। इसलिए, नवाचार को संरक्षित रखने और बाजार में निष्पक्षता बनाए रखने के लिए समय पर नियामक हस्तक्षेप आवश्यक है।

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