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जैव ईंधन (BIOFUELS)

02 May 2025
30 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा जैव ईंधन (Biofuel) उत्पादक देश बन गया है।

जैव ईंधन या बायोफ्यूल्स के बारे में

  • जैव ईंधन ऐसे ईंधन होते हैं, जिनका उत्पादन नवीकरणीय संसाधनों से किया जाता है और इन्हें डीजल, पेट्रोल या अन्य जीवाश्म ईंधनों के स्थान पर या उनके साथ मिश्रित कर उपयोग किया जाता है।
  • जैव ईंधन के प्रकार: इन्हे चार पीढ़ियों में वर्गीकृत किया गया है (इन्फोग्राफिक देखें )।
  • प्रमुख उत्पादक देश: संयुक्त राज्य अमेरिका जैव ईंधन का सबसे बड़ा उत्पादक है, उसके बाद ब्राजील का स्थान आता है।
  • इसमें एथेनॉल और बायोडीजल मिश्रण, संपीड़ित बायोगैस (Compressed Biogas), सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF) आदि शामिल हैं।

जैव ईंधन का महत्त्व

  • पर्यावरणीय लाभ: जैव ईंधन, जीवाश्म ईंधन के उत्पादन से लेकर उपयोग तक की तुलना में 80% तक उत्सर्जन कम कर सकते हैं।
  • जैव ईंधन पराली जलाने की समस्या का समाधान करते हैं, क्योंकि पराली का इस्तेमाल करके ही जैव ईंधन बनाया जाता है। उदाहरण के लिए, हरियाणा में एशिया की पहली 2G एथेनॉल बायो-रिफाइनरी स्थापित की गयी है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: उदाहरण के लिए, पिछले दस वर्षों के दौरान (2024 तक) सार्वजनिक क्षेत्रक की तेल विपणन कंपनियों द्वारा पेट्रोल में एथेनॉल मिश्रण के परिणामस्वरूप 1,13,007 करोड़ रुपये से अधिक की विदेशी मुद्रा की बचत हुई है।
    • यह तेल और गैस क्षेत्रक में बार-बार होने वाली अस्थिरता के प्रभाव को कम करने में भी सहायक हो सकता है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था/ अपशिष्ट प्रबंधन: यह धन सृजन के साथ-साथ व्यापक सामाजिक-आर्थिक लाभ प्रदान करने के लिए अपशिष्ट का उपयोग करके चक्रीय अर्थव्यवस्था को संभव बनाता है। उदाहरण के लिए- नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट का इस हेतु उपयोग किया जा सकता है। 
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: यह कृषि अवशेषों/अपशिष्टों के लिए बाजार के विकास के जरिए किसानों को अतिरिक्त वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है।
    • इसके अलावा, जैव ईंधन आधारित फसल उत्पादन के माध्यम से किसानों को अतिरिक्त आय भी सुनिश्चित होती है।
  • डाउनस्ट्रीम प्रोडक्ट के उपयोग:
    • नवीकरणीय मेथनॉल का उपयोग विभिन्न प्रकार के पॉलिमर और ईंधन के उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
    • जैव ईंधन उत्पादन के दौरान उद्योगों के लिए उपयोगी कई प्रकार के उपोत्पाद भी उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, बायोडीजल के उत्पादन से प्राप्त अपरिष्कृत ग्लिसरीन। 

जैव ईंधन से जुड़ी मौजूदा चुनौतियां

  • फीडस्टॉक संबंधी चुनौतियां:
  • जैव ईंधन के लिए फीडस्टॉक की आपूर्ति को फीडस्टॉक के अन्य व्यावसायिक उपयोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए, वन आधारित अवशेषों का उपयोग कागज निर्माण में भी किया जाता है।
  • कृषि अपशिष्ट की मौसमी और क्षेत्रीय उपलब्धता संबंधी बाधाएं। जैसे धान का भूसा।
  • लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास का विघटन काफी कठिनाई से होता है, जिससे एडवांसड बायोफ्यूल के उत्पादन की व्यावसायिक व्यवहार्यता पर असर पड़ता है।
  • अवसंरचना संबंधी बाधाएं: उदाहरण के लिए विकेन्द्रीकृत भंडारण और पृथक्करण संबंधी सुविधाओं का अभाव है।
  • खाद्य सुरक्षा बनाम ईंधन संबंधी दुविधा: जैव ईंधन का अधिक उत्पादन करने के लिए गन्ने जैसी प्रमुख फसलों की अधिक खेती करने से भारत की खाद्य सुरक्षा पर और अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • वित्तपोषण की आवश्यकता: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार मौजूदा नीतियों के तहत तय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 2030 तक जैव ईंधन के क्षेत्र में कम-से-कम 100-270 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश आवश्यक है। 
  • परंपरागत ईंधन के साथ प्रतिस्पर्धा: सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF) परंपरागत जेट ईंधन की तुलना में 2-10 गुना अधिक महंगा है।
  • कम ऊर्जा दक्षता: जैव ईंधन में जीवाश्म ईंधन की तुलना में कम ऊर्जा घनत्व होता है, जिससे समान बिजली उत्पादन के लिए तुलनात्मक रूप से जैव ईंधन की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए डीजल प्रति किलोग्राम 46 मेगाजूल ऊर्जा प्रदान करता है जबकि जैव ईंधन 38 मेगाजूल ऊर्जा प्रदान करता है।

जैव ईंधन के उत्पादन को बढ़ावा देने वाली प्रमुख पहलें और उठाए गए कदम

नीति और रोडमैप संबंधी पहलें

  • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति (2018, 2022 में संशोधित): जैव ईंधन के लिए फीडस्टॉक आधार का विस्तार किया गया है। इसके तहत गन्ने के रस, ख़राब हो चुके अनाज और कृषि अपशिष्ट को फीडस्टॉक के रूप में उपयोग करने की अनुमति दी गई है।
  • इसके अलावा, दूसरी पीढ़ी (2G) के जैव ईंधन के लिए प्रोत्साहन की भी शुरुआत की गई है।
  • एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम: भारत ने पेट्रोल में 19.6% एथेनॉल मिश्रण (जनवरी 2025 तक) का लक्ष्य हासिल कर लिया है। साथ ही, भारत 2030 के लिए निर्धारित मूल लक्ष्य से पांच वर्ष पहले 2025 तक 20% EBP को हासिल करने की राह पर है।

अवसंरचना और उत्पादन संबंधी सहायता

  • प्रधान मंत्री जी-वन योजना (2019): इसका उद्देश्य 2G एथेनॉल क्षमता में नवीनतम प्रगति को बढ़ावा देना है।
  • गोबर- धन (गैलवनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज) योजना: यह कृषि अपशिष्ट और पशुओं के गोबर से बायोगैस और संपीड़ित बायोगैस (CBG) के उत्पादन को बढ़ावा देती है।
  • किफायती परिवहन के लिए संधारणीय विकल्प (सतत/SATAT) पहल (2018): इसका उद्देश्य बायोमास अपशिष्ट से संपीड़ित जैव गैस (CBG) और जैव-खाद का उत्पादन कर बायोमास अपशिष्ट के आर्थिक मूल्य को साकार करना है।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग

  • ग्लोबल बायोफ्यूल्स अलायंस (2023): यह जैव ईंधन उत्पादन और प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए भारत के नेतृत्व वाली एक पहल है।
  • द्विपक्षीय व्यवस्था: भारत और ब्राजील ने सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑन एथेनॉल शुरू किया है।
  • तकनीकी आदान-प्रदान पहल से गन्ना/ मोलैसेज (शीरा) आधारित एथेनॉल की उत्पादन क्षमता में सुधार हो रहा है।

अन्य

  • मिश्रण कार्यक्रम के लिए जैव डीजल की खरीद पर GST दर को 12% से घटाकर 5% किया गया है।
  • E20 ईंधन, एथेनॉल 100 आदि को लॉन्च किया गया है।

 

निष्कर्ष

भारत का तीसरा सबसे बड़ा जैव ईंधन उत्पादक देश बनना इसके ऊर्जा सुरक्षा और डीकार्बोनाइजेशन संबंधी प्रयासों को उजागर करता है। हालांकि जैव ईंधन आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ प्रदान करते हैं, फिर भी फीडस्टॉक की कमी और उच्च लागत जैसी चुनौतियों अभी भी मौजूद हैं। अनुसंधान और विकास, नीति संबंधी समर्थन, और वैश्विक सहयोग को मजबूत करना संधारणीय जैव ईंधन उत्पादन को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण होगा, जिससे एक स्वच्छ एवं आत्मनिर्भर भविष्य सुनिश्चित हो सके।

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