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परोपकार: सामाजिक भलाई के लिए एक नैतिक अनिवार्यता

02 May 2025
38 min

परिचय

"दूसरों की सेवा करना इस पृथ्वी पर हमारे रहने का किराया है" - मुहम्मद अली। यह विचार भारत में बढ़ती परोपकार की भावना को दर्शाता है। इंडिया फिलैन्थ्रॉपी रिपोर्ट 2025 के अनुसार, भारत में परोपकारी वित्त-पोषण में वृद्धि हो रही है, जिसका मुख्य कारण है- कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के तहत व्यय, अल्ट्रा-हाई-नेट-वर्थ वाले व्यक्तियों (UHNIs) का योगदान, और मध्य वर्ग में परोपकारिता की बढ़ती की संस्कृति। परोपकारिता प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक कई संस्कृतियों का हिस्सा रही है। आइए देखें कि वर्तमान संदर्भ में इसका वास्तव में क्या अर्थ है।

आधुनिक संदर्भ में परोपकारिता

परोपकारिता शब्द का शाब्दिक अर्थ है "मानवता के लिए प्रेम"। इसका आशय है कि व्यक्ति अपने आर्थिक संसाधनों को स्वेच्छा से समाज के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे कि शिक्षा, सामाजिक कल्याण, विज्ञान आदि में इस उद्देश्य से प्रदान करे कि अधिक से अधिक लोगों के जीवन में भलाई और सुख का विस्तार हो सके।

  • दान का उद्देश्य आमतौर पर जरूरतमंदों को तात्कालिक राहत प्रदान करना होता है, जबकि परोपकार का लक्ष्य व्यापक स्तर पर और दीर्घकालिक रूप से सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन लाना होता है, जिससे पूरे समुदायों का सतत विकास और उत्थान सुनिश्चित किया जा सके।

परोपकारिता का दार्शनिक आधार

भारतीय परिप्रेक्ष्य

  • चाणक्य का अर्थशास्त्र: लोक कल्याण के लिए राज्य को अपने राजस्व का 1/6 भाग दान करना चाहिए।
  • विवेकानंद का 'दरिद्र नारायण' का विचार: गरीबों की सेवा करना ईश्वर की पूजा करने के समान है।
  • गांधीजी का न्यासिता का सिद्धांत: धनवान व्यक्तियों को केवल सामाजिक धन के न्यासी के रूप में कार्य करना चाहिए। 
  • धार्मिक:
    • हिंदू धर्म: दान और दक्षिणा की अवधारणाएं
    • इस्लाम: ज़कात (निर्धारित दान) और सदकात (स्वैच्छिक दान)
    • बौद्ध धर्म: भिक्षा (भोजन या अन्य दान)
    • सिख धर्म: लंगर (सामुदायिक रसोई)

पश्चिमी परिप्रेक्ष्य

  • परिणामवादी दृष्टिकोण (सद्गुण नीतिशास्त्र): उदारता और करुणा महत्वपूर्ण सदगुण हैं।
  • कांट का नीतिशास्त्र (नैतिक दायित्व): परोपकारी होना हमारा कर्तव्य है।
  • रॉल्स का सिद्धांत (निष्पक्षता के रूप में न्याय): सबसे वंचित वर्गों को प्राथमिकता देना।
  • उपयोगितावाद: अधिकतम लोगों का अधिकतम कल्याण सुनिश्चित करना।
  • उदारवाद: इसके समर्थक सरकार द्वारा प्रदान की गई सहायता की तुलना में परोपकारिता की नैतिक श्रेष्ठता पर जोर देते हैं।

परोपकारिता के बहुआयामी पहलू

परोपकारी नैतिकताप्रथागतउद्यमशीलताआध्यात्मिकता/ प्रभावी परोपकारिता
परिभाषायह पर्याप्त चिंता दिखाकर परोपकारिता पर ध्यान केंद्रित करता हैअच्छी तरह से सोची-समझी, सतत सामाजिक परियोजनाएं, जो सामाजिक उन्नति के अवसर पैदा करती हैंयह संस्थागत कमियों को दूर करने के उद्देश्य से दीर्घकालिक पहलों, सांस्कृतिक मूल्यों और धार्मिक सिद्धांतों से प्रेरित है
उद्देश्यसुधारात्मकपरिवर्तनकारीविकासात्मक
रणनीतिअवसर-संचालितपरिवर्तन-संचालितआवश्यकता और परिणाम-संचालित
परियोजनाउत्तरदायीसक्रियसहायक
निवेशव्यक्तिपरकवस्तुनिष्ठअनिवार्य और विवेकाधीन
भागीदारीसीमित सहभागिताव्यापक सहभागितासमग्र सहभागिता
प्रमुख फोकस क्षेत्रसामुदायिक एकता, दान से जुड़ी पहलें व्यक्तिवादी दृष्टिकोण, अवसरों तक समान पहुंचउत्तरदायी पूंजीवाद, विरासत, विकासात्मक लक्ष्य

 

विकास के साधन के रूप में परोपकार का महत्त्व

  • वित्त-पोषण की कमी को समाप्त करना: परोपकार, सरकारों द्वारा दी गई बजटीय सहायता के पूरक के रूप में कार्य करता है।
  • विकास संबंधी खामियों को दूर करना: परोपकार गरीबी उन्मूलन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच सुनिश्चित करता है।
    • उदाहरण के लिए, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ग्रामीण क्षेत्र में सार्वजनिक शिक्षा को बढ़ावा देता है।
  • नवाचार को बढ़ावा देना:तकनीक आधारित पहलों जैसे कि डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम, हेल्थकेयर स्टार्टअप्स आदि के जरिए समाज में बदलाव लाया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने स्वच्छ भारत मिशन के अनुरूप स्वच्छता संबंधी नवाचारों को बढ़ावा दिया है।

परोपकारिता से जुड़ी नैतिक चुनौतियां

  • सामाजिक एजेंडे पर अभिजात वर्ग का कब्जा: विशेषज्ञों का तर्क है कि बड़े दानदाता नीतिगत निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे धनी लोगों का प्रभुत्व स्थापित हो सकता है। इसके अलावा, कई विद्वान यह मानते हैं परोपकारिता का उपयोग प्रायः कर चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों के लिए किया जाता है।
  • कॉर्पोरेट दुविधा: व्यवसायों का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है। ऐसे में परोपकारी खर्चों को शेयरधारकों की संपत्ति के दुरुपयोग के रूप में देखा जा सकता है।
  • कल्याणकारी जवाबदेही में कमी: यह कल्याणकारी व्यय के लिए सरकार की जवाबदेही को कम कर सकता है, जिससे सार्वजनिक जिम्मेदारी निजी हितधारकों पर स्थानांतरित हो सकती है।
  • क्षेत्रीय और भौगोलिक असमानता: परोपकारी दान प्रायः कुछ क्षेत्रों या शहरों तक केंद्रित हो गए हैं। महाराष्ट्र और कर्नाटक को अधिकतम CSR फंड मिलता है, जबकि बिहार और ओडिशा इस मामले में काफी पीछे हैं।
    • सांस्कृतिक और धार्मिक पूर्वाग्रह: कई दान दाता अपने निजी विश्वासों और व्यक्तिगत मान्यताओं के अनुसार दान देते है।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता की कमी: विदेशी फंडिंग प्राप्त करने वाले गैर-सरकारी संगठनों में से कुछ ही संगठन आयकर रिटर्न दाखिल करते हैं। इस वजह से सरकार ने कई गैर-सरकारी संगठनों पर प्रतिबंध भी लगाया है। इससे संप्रभुता संबंधी चिंताओं बनाम विकास की आवश्यकताओं को संतुलित करने की बहस छिड़ गई है।

निष्कर्ष

परोपकार की आधारशिला ऐसे नैतिक मूल्यों पर टिकी होनी चाहिए जो समानता और न्याय को बढ़ावा देते हुए एक समानतावादी समाज की दिशा में कार्य करे। इसकी विशिष्टता यह है कि यह समाज के उन अंतिम वर्गों तक पहुंचने की क्षमता रखता है, जहां देश के करोड़ों लोग निवास करते हैं – ऐसे क्षेत्र जहां न तो राज्य की योजनाएं प्रभावी रूप से पहुंच पाती हैं और न ही बाजार की ताकतें। इसलिए, परोपकारिता का प्रभावी उपयोग समाज के सबसे वंचित और उपेक्षित वर्गों तक सहायता पहुंचाने के लिए किया जाना चाहिए।

परोपकारिता का भविष्य केवल कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के तहत किए गए दान तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसे एक ऐसे निवेश के रूप में विकसित किया जाना चाहिए जो विश्वास, सोच और नैतिक दृष्टिकोण पर आधारित हो, जिसमें समाज के सभी वर्गों की सक्रिय भागीदारी हो, न कि केवल अमीर और प्रभावशाली लोगों तक सीमित रहे। परोपकारिता का उद्देश्य केवल तात्कालिक राहत प्रदान करना नहीं, बल्कि इसे न्याय के पूरक और प्रणालीगत बदलाव लाने वाले एक प्रभावशाली साधन के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिए, ताकि इसका वास्तविक और दीर्घकालिक प्रभाव सुनिश्चित किया जा सके। 

केस स्टडी

एक धनी उद्योगपति, श्री X, ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल बनाने के लिए 50 करोड़ रुपये दान करते हैं, जिससे उन्हें सार्वजनिक प्रशंसा मिलती है। बाद में पता चलता है कि उन्होंने 30 करोड़ रुपये की कर चोरी की और दान का उपयोग करके लाभ का दावा करते हुए अपनी कंपनी की छवि सुधारने का प्रयास किया। आलोचकों का तर्क है कि उनका परोपकार व्यक्तिगत लाभ का एक साधन है, जबकि समर्थकों का कहना है कि स्कूलों से समाज को अभी भी लाभ होता है।

A. "कर लाभ से प्रेरित परोपकार दान नहीं बल्कि स्मार्ट अकाउंटिंग है।" इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। लाभ और सामाजिक कल्याण को संतुलित करते हुए, आधुनिक भारत में नैतिक कॉर्पोरेट परोपकार का मार्गदर्शन गांधीजी का "न्यासिता" का सिद्धांत कैसे कर सकता है?

B. "सामाजिक कल्याण के लिए निजी परोपकार पर सरकारों की बढ़ती निर्भरता राज्य की जिम्मेदारी के क्षरण के बारे में चिंताएं बढ़ाती है।" भारत की विकास संबंधी चुनौतियों के संदर्भ में, इस कथन का परीक्षण कीजिए।

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