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प्रसन्नता/ सुख (HAPPINESS)

Posted 02 May 2025

Updated 07 May 2025

38 min read

परिचय

"प्रसन्नता एक चयन है जो कभी-कभी प्रयास की मांग करता है" - ऐस्चिलस। यह उद्धरण हाल ही में जारी वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2025 में भारत की स्थिति को देखते हुए और महत्वपूर्ण हो जाता है। इसमें 147 देशों की सूची में भारत 118वें स्थान पर है। भारत की स्थिति इसके पड़ोसी देशों, जैसे- नेपाल और पाकिस्तान से भी खराब है।

प्रसन्नता क्या है?

प्रसन्नता को आम तौर पर "अपने संपूर्ण रूप से जीवन के व्यक्तिपरक आनंद" के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह उस स्तर को दर्शाता है जिस स्तर तक कोई व्यक्ति अपने जीवन को अपने अनुकूल और आनंदमय मानता है। विद्वान आम तौर पर प्रसन्नता को दो मौलिक प्रकारों में विभाजित करते हैं:-

प्रसन्नता की खोज: एक दार्शनिक यात्रा, पूर्व और पश्चिमी दृष्टिकोणों के आधार पर 

प्रसन्नता की अवधारणा दार्शनिक वाद-विवाद के लिए एक क्रीड़ास्थल की तरह रही है, जो विभिन्न परंपराओं में प्रकट होती है:

भारतीय परिप्रेक्ष्यपश्चिमी परिप्रेक्ष्य
चार्वाक नीतिशास्त्र: चार्वाक मानते हैं कि काम (Enjoyment) जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है और अर्थ (Wealth) उस लक्ष्य को पाने का साधन। उद्धरण: "यावत् जीवेत् सुखं जीवेत् - जब तक जियो, सुख से जियो"एपिक्यूरियनवाद (मध्यम सुखवाद): शारीरिक दर्द और मानसिक चिंता से मुक्ति असली प्रसन्नता है। उदाहरण के लिए, आवश्यक और अनावश्यक सुखों के बीच संतुलन बनाना।
भगवद् गीता (निष्काम कर्म): तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल पर नहीं। उद्धरण: "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:" - अध्याय 2, श्लोक 47कांट (कर्तव्यशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य): "कर्तव्य के लिए कर्तव्य" का पालन करना, अर्थात्, नैतिक कर्तव्य ही व्यक्ति को वास्तविक प्रसन्नता की ओर ले जाता है।
बौद्ध धर्म (मध्यम मार्ग): सुख कहीं पहुँचने में नहीं, बल्कि जीवन को अनुभव करने में है। सुख का कोई मार्ग नहीं है, सुख ही मार्ग है - महात्मा बुद्धलॉक (प्रसन्नता की खोज नैतिकता और सभ्यता की नींव है): लॉक का कहना है कि यदि प्रसन्नता प्राप्त करने की हमारी कोई इच्छा नहीं होती, तो हम भोजन करने और सोने जैसे साधारण सुखों से भी संतुष्ट रहते, लेकिन प्रसन्नता की इच्छा ही हमें आगे, महान और उच्च सुखों की ओर ले जाती है।
भक्ति परंपरा (भक्ति और समर्पण के माध्यम से सुख): भौतिक और आध्यात्मिक सुख एक भावना (संवेग) और/या एक प्रसन्न मन की अवस्था है, जो आनंद, उत्साह, संतोष, प्रसन्नता और तीव्र प्रेम से युक्त होती है।उपयोगितावाद (अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख): जहां जेरेमी बेंथम सभी सुखों को मात्रात्मक रूप से समान मानते हैं, वहीं जे.एस. मिल सुखों के बीच गुणात्मक भेद करते हैं। मिल के अनुसार, उच्च सुख, जैसे- बौद्धिक, नैतिक और सौंदर्य अनुभव; निम्न सुखों, जैसे- इंद्रिय और शारीरिक आनंद; की तुलना में कहीं अधिक मूल्यवान होते हैं।
गुरु नानक (संतोख: संतोष): संतोष शाश्वत सुख है।स्टोइकवाद (नियंत्रण योग्य को नियंत्रित करना): प्रसन्नता का केवल एक ही मार्ग है और वह है उन चीजों के बारे में चिंता करना बंद कर देना जो हमारी इच्छाशक्ति की सीमा से परे हैं। उद्धरण: "तुम्हारा नियंत्रण केवल तुम्हारे मन पर है - बाहरी घटनाओं पर नहीं" - मार्कस ऑरेलियस।
लोकोत्तर परिप्रेक्ष्य: जब व्यक्ति सांसारिक सीमाओं से ऊपर उठकर ईश्वर या ब्रह्म से जुड़ जाता है तब उसे "आनंद" यानी परम सुख की प्राप्ति होती है। उपनिषदिक परंपरा के अनुसार, "सत्-चित्-आनंद" परम सत्य (ब्रह्म) के तीन गुणों को संदर्भित करता है: सत् (अस्तित्व/ होना), चित् (चेतना/ जागरूकता), और आनंद (परम सुख/ प्रसन्नता)।ईसाई धर्मशास्त्र (सेंट ऑगस्टीन): वास्तविक प्रसन्नता ईश्वर के साथ अंतिम मिलन में निहित है जिसे विश्वास और दिव्य अनुग्रह के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

 

वर्तमान जीवन-शैली में प्रसन्नता के समक्ष मौजूद बाधाएं

बाह्य कारक

  • नकारात्मक सामाजिक तुलनाएं: मौजूदा दौर में अवास्तविक मानक (जैसे- शरीर, सुंदरता, आदि) व्यक्तियों के आत्म-मूल्य और प्रसन्नता में कमी लाने का काम कर रहे हैं।
  • सामाजिक समर्थन प्रणालियों की कमी: 2023 में हुए एक सर्वे के अनुसार, दुनिया भर में 19% युवाओं ने बताया कि उनके पास कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जिस पर वे सामाजिक सहयोग के लिए विश्वास कर सकें।
  • वित्तीय दबाव और असुरक्षा: उदाहरण के लिए, गरीबी एक ऐसा बोझ है जो व्यक्तियों की सोचने-समझने की शक्ति को कम कर देती है।
  • हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आना: उदाहरण के लिए, मादक पदार्थों का सेवन मानसिक स्वास्थ्य को बिगाड़ देती है और व्यक्ति को अशांत और दुखी बना देता है।

आंतरिक कारक

  • आत्म-संदेह एवं आत्म-सम्मान में कमी: उदाहरण के लिए, जब व्यक्ति खुद को नकारात्मक रूप में देखने लगता है तो इससे चिंता, अवसाद और दूसरों के प्रति कृतज्ञता की भावना कम हो जाती है।
  • वर्तमान क्षण में न जीना: लगातार नकारात्मक सोचना, हर बात को ज़्यादा सोचते रहना और अनसुलझे मानसिक आघात इंसान को अंदर ही अंदर तोड़ देते हैं। वह हर समय यही सोचता रहता है कि "कहीं कुछ गलत न हो जाए।"
  • अत्यधिक स्क्रीन टाइम: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, स्क्रीन टाइम में वृद्धि और खुले में खेलने के समय में कमी युवाओं को एक 'चिंतित पीढ़ी' के रूप में तब्दील कर रही है।

सिविल सेवक नागरिकों के बीच प्रसन्नता के स्तर को कैसे बढ़ा सकते हैं

"समाज की प्रसन्नता ही सरकार का उद्देश्य है"- जॉन एडम्स। सिविल सेवक सुशासन, समावेशी नीतियों और सहानुभूतिपूर्ण प्रशासन लागू करके नागरिकों की प्रसन्नता और कल्याण के स्तर को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा सकते हैं:

  • जन-केंद्रित गवर्नेंस और कुशल सेवा वितरण को अपनाना: उदाहरण के लिए, ग्राम पंचायत विकास योजना।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: ई-गवर्नेंस, सूचना का अधिकार, सामाजिक लेखा-परीक्षण आदि के माध्यम से भ्रष्टाचार को कम करना।
  • मानसिक और भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा देना: उदाहरण के लिए, टेली-मानस (टोल फ्री मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन), लचीले काम के घंटे आदि के प्रावधानों द्वारा वर्क-लाईफ संतुलन, आदि।
  • सामाजिक सद्भाव और समुदाय निर्माण को प्रोत्साहन देना: उदाहरण के लिए, सांप्रदायिक तनाव को कम करने के लिए अंतर-धार्मिक संवाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • प्रसन्नता को नीति का एक घटक बनाना: उदाहरण के लिए, ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस (भूटान), हैप्पीनेस मंत्री, आदि।

निष्कर्ष

प्रसन्नता, जिसे अक्सर एक चमत्कार के रूप में देखा जाता है, वास्तव में सुनियोजित प्रैक्टिस और रणनीतियों के माध्यम से बढ़ाई जा सकती है जो समग्र रूप से व्यक्ति के कल्याण को बेहतर बनाते हैं। अपने जीवन में प्रसन्नता के स्तर को बढ़ाने और उसे बनाए रखने के लिए, व्यक्तियों को ऐसी गतिविधियों में भाग लेने और ऐसी आदतें अपनाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए जो प्रसन्नता के हेडोनिक और यूडेमोनिक, दोनों आयामों के अनुरूप हों।

केस स्टडी

XYZ जिले में पिछले दशक में तेजी से आर्थिक परिवर्तन हुए हैं। औद्योगिक और तकनीकी प्रगति तथा शहरीकरण में पर्याप्त निवेश को इसका कारण बताया गया है। जिले की प्रति व्यक्ति आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, और यह क्षेत्र व्यापार एवं वाणिज्य का केंद्र बन गया है। सरकारी पहलों से स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और डिजिटल कनेक्टिविटी में सुधार हुआ है। हालांकि, इन सकारात्मक रुझानों के बावजूद, हाल के अध्ययनों से यहां के निवासियों, विशेष रूप से युवाओं के बीच तनाव, चिंता संबंधी विकारों, अवसाद, सामाजिक अलगाव और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में चिंताजनक वृद्धि दर्ज की गई है। सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा करने का दबाव, असफलता का डर और भावनात्मक लचीलेपन की कमी इस मानसिक स्वास्थ्य संकट को और बढ़ा रहे हैं।

a) एक जिला मजिस्ट्रेट के रूप में, आर्थिक संवृद्धि के बावजूद अप्रसन्नता में हो रही वृद्धि को दूर करने के लिए कौन-कौन से नीतिगत हस्तक्षेप किए जा सकते हैं? गवर्नेंस, सार्वजनिक नीति और सामुदायिक विकास के संदर्भ में चर्चा कीजिए। 

b) प्रसन्नता मानव विकास का एक अनिवार्य घटक है। नीतिगत लक्ष्य के रूप में प्रसन्नता को बढ़ावा देने में सरकार की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। क्या नीतिगत फ्रेमवर्क में प्रसन्नता को भी आर्थिक संवृद्धि की तरह समान महत्त्व दिया जाना चाहिए।

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