लोक लेखा समिति ने GST फ्रेमवर्क की समीक्षा की मांग की {PAC CALLS FOR REVIEW OF GST} | Current Affairs | Vision IAS
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संक्षिप्त समाचार

02 May 2025
87 min

संसदीय लोक लेखा समिति ने GST फ्रेमवर्क की व्यापक समीक्षा की मांग की।

GST फ्रेमवर्क की समीक्षा की आवश्यकता को रेखांकित करने वाले मुद्दे 

  • MSMEs की समस्याएं: इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर की जटिलता और प्रशासनिक बोझ के कारण MSMEs GST फ्रेमवर्क के मौजूदा प्रावधानों का पालन करने में कठिनाई महसूस करते हैं।
  • निर्यातकों की समस्याएं: अक्सर यह देखा गया है कि निर्यातकों को इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) रिफंड काफी देर से दिया जाता है। इस वजह से उन्हें नकदी प्रवाह की समस्या का सामना करना पड़ता है और उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है।
  • स्टील रोलिंग मिलों की समस्याएं: स्क्रैप डीलर्स GST का भुगतान नहीं करते, जिससे इन मिलों को दोहरे करों का भुगतान करना पड़ता है और वे ITC का क्लेम भी नहीं कर पाते है। इसके अलावा, कुछ व्यवसाय उन राज्यों में स्थानांतरित हो रहे हैं, जहां GST में छूट मिलती है।
  • ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्रक द्वारा कर चोरी: यद्यपि हाल ही में, GST कानून में इस क्षेत्रक को लक्षित करने वाले संशोधन किए गए हैं, फिर भी अलग-अलग बिजनेस मॉडल्स के कारण कर चोरी निरंतर जारी है।
    • 1 अक्टूबर, 2023 से, ऑनलाइन गेमिंग पर 28% GST लगाया जा रहा है।
    • ऑनलाइन मनी गेमिंग के आपूर्तिकर्ताओं के लिए IGST अधिनियम के तहत सरलीकृत पंजीकरण योजना में पंजीकरण कराना अनिवार्य किया गया है।
    • GST आसूचना महानिदेशालय (DGGI) को अधिकार दिया गया है कि वह मध्यवर्तियों को IGST अधिनियम का उल्लंघन करने वाले अपंजीकृत ऑफशोर गेमिंग प्लेटफॉर्म्स को ब्लॉक करने का निर्देश दे सकता है।

आगे की राह

  • विशेष रूप से MSMEs के लिए डिजाइन किया गया सरलीकृत GST अनुपालन फ्रेमवर्क विकसित किया जाना चाहिए।
  • निर्यातकों के लिए समर्पित फास्ट-ट्रैक रिफंड प्रोसेसिंग सिस्टम बनाया जाना चाहिए। इससे निर्यात से संबंधित उनके ITC दावों का शीघ्र निपटारा करने में मदद मिलेगी।
  • अलग-अलग गेमिंग प्लेटफॉर्म्स द्वारा अपनाए गए रेवेन्यू स्ट्रीमिंग मॉडल्स को समझने के लिए व्यापक स्वतंत्र अध्ययन किया जाना चाहिए, तदनुसार दिशा-निर्देश तैयार किए जाने चाहिए। 

कारपोरेट कार्य मंत्रालय (MCA) की 'अनुदान मांगों (2025-26)' पर 10वीं रिपोर्ट में विविध मुद्दों जैसे कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR), दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) तथा पर्यावरणीय, सामाजिक एवं गवर्नेंस (ESG) विनियमों को प्रभावी बनाना पर प्रकाश डाला गया है और कई सिफारिशें की गई हैं:-

क्षेत्रसमस्याएंसिफारिशों

कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR)

  • CSR फ्रेमवर्क को लागू करने और निगरानी में खामियां मौजूद हैं।
  • CSR के तहत व्यय की प्रभावशीलता पर विस्तृत विश्लेषण का अभाव है।
  • बिना खर्च हुई CSR राशि का लेखा-जोखा अभी भी पूरी तरह से पारदर्शी नहीं है।
  • अधिक व्यापक रिपोर्टिंग और निगरानी फ्रेमवर्क स्थापित करना चाहिए। उदाहरण के लिए, CSR संबंधी परियोजनाओं के प्रभाव और परिणामों पर विस्तृत रिपोर्ट का नियमित प्रकाशन करना।
  • अनुपालन न करने की स्थिति में समय पर दंड आरोपित किए जाने चाहिए। 

दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC)

  • हितों का टकराव और प्रावधानों की असमान व्याख्या के कारण IBC  के तहत समाधान प्रक्रिया में देरी होती है।
  • IBC के तहत समाधान पेशेवरों (RPs) के खिलाफ शिकायतों के निवारण के लिए कोई मजबूत फ्रेमवर्क नहीं है।
  • समाधान संबंधी योजनाओं को केंद्रीय ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से लागू करने हेतु प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए।
  • RPs के लिए कठोर प्रमाणन मानक और प्रदर्शन के मामले में स्वतंत्र समीक्षा लागू की जानी चाहिए।
  • परिचालनरत लेनदारों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए लेनदारों की समिति (CoC) की संरचना की समीक्षा करनी चाहिए।

पर्यावरणीय, सामाजिक एवं गवर्नेंस (ESG)

  • ग्रीनवॉशिंग का जोखिम लगातार बढ़ रहा है।
  • लघु व्यवसायों को ESG प्रणाली को अपनाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • अनुपालन सुनिश्चित करने और ग्रीनवाशिंग के लिए दंड आरोपित करने हेतु मंत्रालय के तहत एक समर्पित ESG पर्यवेक्षण निकाय गठित करना चाहिए।
  • निदेशकों के लिए प्राथमिक कर्तव्यों के रूप में ESG उद्देश्यों को शामिल करने हेतु कंपनी अधिनियम, 2013 में संशोधन किया जाना चाहिए।
  • लेखापरीक्षा समितियों के समान स्वतंत्र ESG समितियां गठित की जानी चाहिए।

इस रिपोर्ट में मात्स्यिकी क्षेत्रक में सुधार, रोजगार के अवसर बढ़ाने और राजस्व सृजन को बढ़ावा देने के लिए पूर्व में की गई सिफारिशों पर सरकार की कार्यवाहियों का मूल्यांकन किया गया है।

  • भारत विश्व में तीसरा सबसे बड़ा मत्स्य-उत्पादक देश है। विश्व में मत्स्य उत्पादन में भारत लगभग 8% का योगदान देता है।
  • पिछले कुछ वर्षों में, कृषि सकल मूल्य वर्धन (GVA) में मात्स्यिकी क्षेत्रक का योगदान 4% से बढ़कर 6.72% से अधिक हो गया है।

हाल ही में, केंद्र सरकार ने संशोधित ‘इथेनॉल ब्याज अनुदान योजना’ के तहत सहकारी चीनी मिलों के लिए एक नई योजना अधिसूचित की है।

‘सहकारी चीनी मिलों के लिए योजना’ के बारे में

  • कार्यान्वयन मंत्रालय/ विभाग: केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय का खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग।
  • उद्देश्यगन्ना-आधारित मौजूदा इथेनॉल संयंत्रों को मल्टी-फीडस्टॉक आधारित संयंत्रों में बदलना। इससे मक्का और खाद्य के लिए अनुपयोगी हो चुके खाद्यान्न जैसे अन्य कच्चे माल का उपयोग किया जा सकता है।
  • संशोधित इथेनॉल ब्याज अनुदान योजना के तहत सरकार 6% प्रतिवर्ष की ब्याज छूट देगी या बैंकों/ वित्तीय संस्थानों द्वारा तय ब्याज दर का 50% वहन करेगी (जो भी कम हो)।
  • इस योजना से इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ गैर-परंपरागत कच्चे माल का उपयोग भी बढ़ेगा। इससे किसानों और सहकारी चीनी मिलों को लाभ मिलेगा।

पिछले चार वर्षों में भारत का तम्बाकू निर्यात दोगुना हो गया।

तंबाकू

  • भारत की स्थिति: भारत तम्बाकू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक (चीन के बाद) तथा दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक (ब्राजील के बाद) देश है।
  • प्रमुख उत्पादक राज्य: गुजरात (कुल खेती योग्य क्षेत्र का 45% और उत्पादन 30%), आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और बिहार।
  • अनुकूल परिस्थितियां:
    • तापमान: 20° से 27°C के बीच होना चाहिए।
    • वर्षा: जब इसे वर्षा सिंचित फसल के रूप में उगाया जाता है, तो फसल उगाने के मौसम के दौरान कम-से-कम 500 मिलीमीटर अच्छी तरह से वितरित वर्षा की आवश्यकता होती है। 
    • जिस क्षेत्र में वर्षा 1200 मिमी. से अधिक होती है, वहां पर आमतौर इसकी खेती नहीं की जाती है।
    • मृदा: रेतीली या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इसका एक अपवाद है- आंध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्र, जहां गहरी काली मृदा में तंबाकू का उत्पादन किया जाता है। इस क्षेत्र में सिगरेट में इस्तेमाल होने वाले तंबाकू का उत्पादन किया जाता है। 

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत को 2047 तक उच्च आय वाला देश (HIC) बनने के लिए अगले 22 वर्षों में औसतन 7.8% की दर से विकास करना होगा।

  • भारत 2007-08 में निम्न-मध्यम आय वाला देश (LMIC) बन गया था। उल्लेखनीय है कि भारत वर्तमान में 2032 तक उच्च-मध्यम आय वाला देश (UMIC) बनने की राह पर है।

2047 तक उच्च आय वाले देशों (HIC) के समूह में शामिल होने की राह में मौजूद प्रमुख चुनौतियां

  • मंद संरचनात्मक परिवर्तन: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारत में कार्यबल का 45% हिस्सा कृषि क्षेत्रक में नियोजित है। इसके अलावा, पारंपरिक बाजार आधारित सेवाएं और निर्माण कार्य (कम उत्पादकता) मिलकर लगभग 30% का योगदान देती हैं।  
    • इसके विपरीत, कुल रोजगार में विनिर्माण क्षेत्रक की हिस्सेदारी लगभग 11% थी और आधुनिक बाजार सेवाओं की हिस्सेदारी केवल 7% थी।
  • निजी निवेश में गिरावट: 1990 के दशक के सुधारों के बाद देश में निजी निवेश में वृद्धि हुई। लेकिन 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में इसमें गिरावट देखी गई।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश का कम उपयोग: वर्ष 2000-19 के दौरान, कार्यशील आयु वर्ग की आबादी में 37.4% की वृद्धि हुई थी, लेकिन रोजगार में केवल 15.7% की वृद्धि हुई थी।
    • इस अवधि के दौरान, श्रम बल भागीदारी दर 58% से घटकर 49% हो गई, जो कि मध्यम आय वाले देशों के मानकों से कम है।

संवृद्धि को बढ़ावा देने हेतु अपनाई जाने वाली मुख्य रणनीतियां

  • निवेश को बढ़ावा देना: बेहतर वित्तीय विनियमों द्वारा, MSME क्षेत्रक को आसानी से ऋण उपलब्ध कराकर और सरलीकृत FDI नीतियों के माध्यम से 2035 तक निवेश को GDP के 33.5% से बढ़ाकर 40% करना।
  • रोजगार उत्पन्न करना: एग्रो-प्रोसेसिंग, विनिर्माण, परिवहन और केयर इकॉनमी जैसे रोजगार-समृद्ध क्षेत्रों में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • संतुलित क्षेत्रीय विकास पर फोकस करना: कम विकसित राज्य मूलभूत आवश्यकताओं (स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अवसंरचनाओं के विकास) पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि विकसित राज्य अगली पीढ़ी के सुधारों को आगे बढ़ाते हैं।

सार्वजनिक ऋण महत्वपूर्ण व्ययों को वित्त-पोषित करके विकास को गति दे सकता है, लेकिन अत्यधिक ऋण वृद्धि विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए चुनौतियां पैदा करती है।

  • यूएन ट्रेड एंड डेवलपमेंट की इस रिपोर्ट में बढ़ते ऋण जोखिमों की चेतावनी दी गई है तथा स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए तत्काल वैश्विक कार्रवाई का आग्रह किया गया है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र

  • वैश्विक ऋण वृद्धि: 2023 में सार्वजनिक ऋण 97 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। इसके अलावा, विकासशील देशों का ऋण विकसित देशों की तुलना में दोगुनी तेजी से बढ़ रहा है।
    • भारत का सार्वजनिक ऋण 2.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है।
  • ऋण भुगतान पर अधिक व्यय: 54 विकासशील देश अपने सामाजिक क्षेत्रक की तुलना में ब्याज भुगतान पर अधिक धन व्यय करते हैं।
  • असमान वित्तीय प्रणाली: विकासशील देश विकसित देशों की तुलना में 2 से 12 गुना अधिक ब्याज का भुगतान करते हैं।

बढ़ते वैश्विक सार्वजनिक ऋण से उत्पन्न होने वाली चुनौतियां

  • ऋण का बोझ: किसी देश पर अत्यधिक ऋण, उसके निवेश एवं उपभोग की क्षमता को हतोत्साहित करके आर्थिक संवृद्धि को बाधित करता है।
  • तरलता संबंधी चुनौती: विकासशील देशों से निजी ऋणदाताओं द्वारा लगभग 50 बिलियन डॉलर की निकासी ने तरलता की कमी को और बढ़ा दिया है।
  • पश्चिमी प्रभुत्व वाले संस्थानों (निजी, बहुपक्षीय और द्विपक्षीय ऋणदाताओं) के साथ ऋणदाता आधार (creditor base) ऋण की पुनर्संरचना को महंगा बनाता है।

रिपोर्ट में की गई सिफारिशें

  • समन्वय संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए ऋण पुनर्संरचना तंत्र का निर्माण करना चाहिए।
  • ऋण संकटों को रोकने के लिए आकस्मिक वित्त-पोषण का विस्तार करना चाहिए।
  • वैश्विक वित्तीय गवर्नेंस में विकासशील देशों की भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए। 

भारत और जापान ने 75 अरब डॉलर के द्विपक्षीय करेंसी स्वैप समझौते को नवीनीकृत किया है।

द्विपक्षीय स्वैप एग्रीमेंट (BSA) के बारे में:

  • यह दो केंद्रीय बैंकों के बीच एक समझौता है। इसके तहत वे एक मुद्रा के नकदी प्रवाह का दूसरी मुद्रा के नकदी प्रवाह से पूर्व निर्धारित शर्तों के अनुसार विनिमय कर सकते हैं।
  • भारत-जापान BSA का उद्देश्य: यह द्विपक्षीय करेंसी स्वैप व्यवस्था है, जिससे दोनों देश जरूरत पड़ने पर अपनी स्थानीय मुद्रा के बदले अमेरिकी डॉलर का विनिमय कर सकते हैं।
  • महत्त्व: विनिमय दर की अस्थिरता को प्रबंधित करने और वित्तीय संकटों के दौरान तरलता प्रदान करने में सहायता करना।

नेशनल हाईवेज इंफ्रा ट्रस्ट (NHIT) ने सड़क क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (InvITs) के माध्यम से सबसे बड़ी धनराशि जुटाई है।

  • NHIT राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) द्वारा 2020 में स्थापित InvIT है। इसका उद्देश्य भारत के परिसंपत्ति मुद्रीकरण कार्यक्रम (Asset Monetisation programme) में योगदान देना है। 

अवसंरचना निवेश ट्रस्ट (InvITs) के बारे में

  • परिभाषा: InvITs निवेश जुटाने के साधन हैं। ये वास्तव में म्यूचुअल फंड या रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (REIT) की तरह कार्य करते हैं।
  • InvITs किसी व्यक्ति या संस्था को अवसंरचना परियोजनाओं में सीधे निवेश करने की सुविधा प्रदान करते हैं।
    • एक InvIT सीधे या किसी स्पेशल पर्पज व्हीकल (SPV) या होल्डिंग कंपनी के माध्यम से अवसंरचना परियोजनाओं में निवेश कर सकता है।
  • InvITs टोल, रेंट, निवेश पर ब्याज या लाभांश के रूप में आय अर्जित करते हैं।
    • InvITs के यूनिट होल्डर्स को ब्याज, लाभांश और रेंट से आय पर कर चुकाना होता है।
  • InvITs का विनियमन: InvITs को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (अवसंरचना निवेश न्यास) विनियम, 2014 के तहत प्रशासित किया जाता है।
    • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के नियमों के अनुसार, InvITs को अपनी कुल आय का कम-से-कम 90% निवेशकों को वितरित करना आवश्यक है। 
    • InvITs को "वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन (सरफेसी/ SARFAESI)" के तहत “उधारकर्ता” (Borrower) के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • InvITs के निम्नलिखित प्रकार हैं:
    • सार्वजनिक क्षेत्र के InvITs; 
    • निजी क्षेत्र के सूचीबद्ध InvITs; तथा  
    • निजी क्षेत्र के गैर-सूचीबद्ध InvITs.  
  • InvITs के लाभ
    • रिटेल यानी व्यक्तिगत निवेशक बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं में निवेश कर सकते हैं।
    • लघु निवेशक कम राशि भी निवेश कर सकते हैं।
    • ये निवेश “लिक्विड” होते हैं। यानी निवेशक जब चाहे InvITs की यूनिट्स बेच सकते हैं, क्योंकि ये शेयर बाजारों में सूचीबद्ध होती हैं।

परिसंपत्ति मुद्रीकरण (Asset Monetization) के बारे 

  • यह सरकार और उसके संस्थानों के लिए अप्रयुक्त या कम उपयोग की गई सार्वजनिक परिसंपत्तियों के आर्थिक मूल्य को अनलॉक करके नए राजस्व अर्जित करने की प्रक्रिया है।
  • भारत का मुद्रीकरण कार्यक्रम
    • राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP): यह नीति आयोग की योजना है। इसका उद्देश्य 2022-2025 के दौरान सार्वजनिक परिसंपत्तियों के मुद्रीकरण से 6 लाख करोड़ रुपये जुटाना है।
    • दूसरी ‘परिसंपत्ति मुद्रीकरण योजना (2025-2030’): इसकी घोषणा केंद्रीय बजट 2025-26 में की गई थी। इस योजना के तहत मुद्रीकरण से 10 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया है।
    • अन्य योजनाएं: राष्ट्रीय भूमि मुद्रीकरण निगम (National Land Monetization Corporation) की स्थापना आदि।

केन्द्रीय वित्त मंत्री ने MSMEs के लिए डिजिटल फुटप्रिंट-आधारित क्रेडिट असेसमेंट मॉडल लॉन्च किया 

  • केंद्रीय बजट 2024-25 में घोषणा की गई थी कि सार्वजनिक क्षेत्रक के बैंक (PSBs) MSMEs को ऋण देने से पहले उनके ऋण भुगतान की क्षमता का आकलन अपने स्तर से करेंगे। इसके लिए उन्हें किसी बाहरी एजेंसी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। 
  • इस डिजिटल असेसमेंट मॉडल में निम्नलिखित डिजिटल फुटप्रिंट का उपयोग किया जाएगा:
    • NSDL के जरिए नाम और पैन सत्यापन;
    • OTP के जरिए मोबाइल और ईमेल सत्यापन;
    • सेवा प्रदाता की मदद से API से GST डेटा प्राप्त करना; तथा 
    • बैंक स्टेटमेंट का विश्लेषण।
  • यह मॉडल MSMEs को ऋण देने की मंजूरी प्रक्रिया को स्वचालित बना देगा। इससे लघु और मध्यम उद्यमों को तेजी से एवं पारदर्शी तरीके से ऋण प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।

भारत की वेंचर कैपिटल (VC) फंडिंग 2024 में 43% बढ़कर 13.7 बिलियन डॉलर हो गई। 

वेंचर कैपिटल के बारे में

  • यह निजी इक्विटी का एक रूप है। यह दीर्घकालिक विकास क्षमता वाली स्टार्ट-अप कंपनियों तथा लघु व्यवसायों के लिए वित्त-पोषण का एक प्रकार है।
  • वेंचर कैपिटल आमतौर पर इक्विटी शेयरों या इक्विटी पर भविष्य के दावे (जैसे- परिवर्तनीय ऋण) का रूप धारण करती है। यह बदले में वेंचर कैपिटल फर्म को व्यवसाय में स्वामित्व का हिस्सा प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करती है।
  • उद्यम पूंजीपति या वेंचर कैपिटलिस्ट वित्त-पोषण, तकनीकी विशेषज्ञता या प्रबंधकीय अनुभव के माध्यम से सहायता प्रदान करते हैं। 

वैल्यूएटिक्स री (Valueattics Re) भारत में पुनर्बीमा कारोबार शुरू करने के लिए IRDAI (भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण) से मंजूरी पाने वाली पहली निजी कंपनी बन गई है ।

  • वर्तमान में, सार्वजनिक क्षेत्रक की जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (GIC Re) भारत में कार्यरत एकमात्र पुनर्बीमा कंपनी है।

पुनर्बीमा के बारे में

  • पुनर्बीमा एक जोखिम प्रबंधन पद्धति है। इसमें बीमा कंपनियां स्वयं को बड़े वित्तीय नुकसान से बचाने के लिए अपने जोखिम का एक हिस्सा किसी अन्य बीमा कंपनी (रीइंश्योरर/ पुनर्बीमाकर्ता) को हस्तांतरित कर देती है।
  • विनियामक: भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI)।
  • कानून: इसे बीमा अधिनियम, 1938 और IRDAI (पुनर्बीमा) विनियम, 2018 के तहत प्रबंधित किया जाता है।

टेलीमेटिक्स विकास केंद्र ने दूरसंचार और IT क्षेत्रकों के लिए अत्याधुनिक इनक्यूबेशन कार्यक्रम ‘समर्थ’ का शुभारंभ किया।

समर्थ के बारे में

  • उद्देश्य: सस्टेनेबल और स्केलेबल बिजनेस मॉडल के विकास को प्रोत्साहित करना, अत्याधुनिक संसाधनों को उपलब्ध कराना और किसी आइडिया को वाणिज्यिक रूप से सार्थक बनाने में स्टार्ट-अप्स की मदद करना।
  • कार्यान्वयन साझेदार: सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क्स ऑफ इंडिया (STPI), इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत प्रमुख विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संगठन।
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