प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य आप्रवास (आव्रजन) और विदेशियों से संबंधित विविध सेवाओं को सुव्यवस्थित करना है। इसमें भारत में उनका प्रवेश, निकास और रहना शामिल है।
- यह विधेयक आव्रजन और विदेशियों से संबंधित सेवाओं को शासित करने वाले मौजूदा चार कानूनों को निरस्त करता है-
- विदेशी विषयक अधिनियम, 1946,
- पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम (1920),
- विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम (1939), और
- आप्रवास (वाहक-दायित्व) अधिनियम (2000)।
- इनमें से तीन कानून संविधान के लागू होने से पहले के हैं, जो प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध के संकटकालीन समय के दौरान लाए गए थे।
विधेयक के मुख्य प्रावधानों पर एक नज़र
- प्रवेश करने या ठहरने से रोकने के लिए आधार: यदि विदेशियों को राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता, लोक स्वास्थ्य या विदेशी संबंधों के लिए खतरा माना जाता है, तो उन्हें देश में प्रवेश करने से वंचित किया जा सकता है।
- इस संबंध में आव्रजन अधिकारियों के निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होंगे।
- विदेशियों की ट्रैकिंग: शैक्षणिक प्रतिष्ठानों, अस्पतालों और नर्सिंग होम जैसे संस्थानों को विदेशी नागरिकों की सूचना आव्रजन अधिकारियों को देनी होगी।
- अन्य: कानून के उल्लंघन पर कठोर दंड का प्रावधान किया गया है, जैसे- वैध दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश करने पर 5 साल की कैद या 5 लाख रुपये तक का जुर्माना आदि।

इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में उजागर किया है कि 2024-25 की तुलना में 2025-26 के लिए बजट अनुमान (BE) संबंधी आवंटन में मामूली वृद्धि की गई है।

Article Sources
1 sourceमहाराष्ट्र ने मृत्युदंड की सजा पाए दोषियों की दया याचिकाओं पर तेजी से कार्रवाई करने के लिए अतिरिक्त सचिव (गृह) के अधीन एक समर्पित सेल की स्थापना की है।
- महाराष्ट्र सरकार का यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश (2024) का पालन करता है। ध्यातव्य है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को दया याचिकाओं पर कुशलतापूर्वक त्वरित कार्रवाई करने के लिए अपने गृह/ जेल विभागों के भीतर समर्पित इकाइयां गठित करने का निर्देश दिया गया था।
दया याचिका (Mercy Petition) के बारे में
- न्यायालय द्वारा सजा मिलने के बाद, दोषी व्यक्ति के पास राष्ट्रपति या राज्यपाल के समक्ष दया याचिका (mercy petition) दायर करने का अंतिम संवैधानिक उपाय होता है। इसके तहत दोषी व्यक्ति अपनी सजा में बदलाव या क्षमा की मांग करता है।
- दया याचिका और क्षमा राष्ट्रपति या राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों के अंतर्गत आते हैं। किसी भी व्यक्ति को यह दावा करने का कानूनी अधिकार नहीं है कि उसे क्षमा मिलनी ही चाहिए।
- दया का उपयोग क्षमादान की शक्ति के माध्यम से किया जाता है, जिसे माफ़ करने की शक्ति के रूप में भी जाना जाता है।
क्षमादान की शक्ति
- राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति (अनुच्छेद 72)
- क्षमा (Pardon): सजा से पूर्ण मुक्ति।
- विराम (Respite): दिव्यांगता या गर्भावस्था जैसी विशेष परिस्थितियों के कारण मूल सजा के स्थान पर कम सजा देना।
- स्थगन (Reprieve): कुछ समय के लिए किसी सजा (विशेषकर मृत्युदंड) के निष्पादन पर रोक लगाना। इसका उद्देश्य दोषी को राष्ट्रपति से क्षमा या लघुकरण प्राप्त करने के लिए समय देना है।
- परिहार (Remit): सजा की अवधि कम कर दी जाती है, जबकि इसकी प्रकृति वही रहती है।
- लघुकरण (Commute): सजा की प्रकृति को बदलना, जैसे- मृत्युदंड को कठोर कारावास में बदलना।
- राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति कोर्ट मार्शल के मामलों, संघीय कानूनों के उल्लंघन और मृत्युदंड के मामलों पर लागू होती है।
- राज्यपाल की क्षमादान शक्ति (अनुच्छेद 161): राज्यपाल के पास भी क्षमादान शक्तियां हैं, लेकिन ये मृत्युदंड और कोर्ट मार्शल के मामलों तक विस्तारित नहीं हैं।
- मारू राम बनाम भारत संघ मामले (1980) में, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने माना था कि राष्ट्रपति और राज्यपाल स्वतंत्र रूप से नहीं, बल्कि सरकार की सलाह पर कार्य करते हैं।
लोक सभा सचिवालय और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने AI-संचालित बहुभाषी संसदीय परिचालन के लिए संसद भाषिणी पहल विकसित करने पर सहमति व्यक्त की।
संसद भाषिणी पहल के बारे में
- उद्देश्य: संसद भाषिणी का उद्देश्य संसद से जुड़े कार्यों के संचालन में विविध भाषाओं की सुविधा प्रदान करने और इससे जुड़ी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित बनाने के लिए एक व्यापक इन हाउस AI समाधान प्रदान करना है।
- भाषिणी MeitY द्वारा निर्मित एक AI-संचालित भाषा अनुवाद प्लेटफॉर्म है।
- संसद भाषिणी के अंतर्गत प्रमुख AI पहलों में AI-आधारित अनुवाद, संसद की वेबसाइट के लिए AI-संचालित चैटबॉट आदि शामिल हैं।
Article Sources
1 sourceद फ्यूचर ऑफ फ्री स्पीच द्वारा किए गए एक नए वैश्विक सर्वेक्षण में फ्री स्पीच के समर्थन के मामले में 33 देशों में से भारत को 24वां स्थान दिया गया।
फ्यूचर ऑफ फ्री स्पीच इंडेक्स 2025 के बारे में
- स्कैंडिनेवियाई देश (नॉर्वे, डेनमार्क और स्वीडन) तथा दो निम्न लोकतांत्रिक देश (हंगरी एवं वेनेजुएला) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (फ्री स्पीच) के समर्थन में सबसे उच्चतम स्तर पर हैं।
- कुछ देशों में फ्री स्पीच के समर्थन में गिरावट: जापान, इजरायल और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में 2021 के बाद से फ्री स्पीच के समर्थन में काफी गिरावट आई है।
- पारंपरिक मीडिया, सोशल मीडिया और AI कंटेंट जनमत को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे फ्री स्पीच को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं।