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सोशल मीडिया और किशोर (Social Media and Adolescents)

02 May 2025
36 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में रिलीज हुई एक वेब सीरीज "एडोलेसेंस (Adolescence)" ने वैश्विक स्तर पर ऑनलाइन कट्टरपंथवाद और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर किशोरों की सुरक्षा को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। यह उन ज्वलंत मुद्दों को उजागर करती है, जिनका सामना बच्चे इंटरनेट के अनियंत्रित प्रभाव और उससे उत्पन्न सामाजिक परिणामों के चलते कर रहे हैं।

अन्य संबंधित तथ्य 

  • यूनाइटेड किंगडम अपने स्कूलों में इस वेब सीरीज को दिखाने की योजना बना रहा है, जिसमें शिक्षकों और अभिभावकों के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए डिस्कशन गाइड्स भी शामिल होंगे।
  • 2024 में, ऑस्ट्रेलिया ने बच्चों की ऑनलाइन सेफ्टी संबंधी मुद्दों का हवाला देते हुए 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया अकाउंट खोलने पर प्रतिबंध लगा दिया और इन नियमों के पालन की जिम्मेदारी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर डाल दिया।

ऑनलाइन स्पेस/ सोशल मीडिया का किशोरों पर हानिकारक प्रभाव

  • नेगेटिव सोशल कंडीशनिंग: अविनियमित कंटेंट के संपर्क में आने से किशोरों के व्यक्तित्व विकास और व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। 
    • उदाहरण के लिए, अश्लील कंटेंट व महिलाओं के प्रति नफरत फैलाने वाले कंटेंट लोगों में गुस्सा और नफरत को बढ़ावा देते हैं; 'अच्छे दिखने के स्टैंडर्ड' वाले कंटेंट से किशोरों में खुद को छोटा समझने का भाव उत्पन्न हो सकता है; आदि।
  • ऑनलाइन कट्टरपंथवाद: सोशल मीडिया एल्गोरिदम एक 'इको-चेम्बर' सृजित करता है यानी एक ऐसे समुदाय का निर्माण करता है, जो किसी ख़ास विचारधारा को ही पूर्ण सत्य मान लेता है।
    • उदाहरण के लिए, "मैनोस्फीयर" से जुड़े चैट फोरम, जो नारीवादी विचारधारा के जवाब में महिलाओं के प्रति नफरत और प्रभुत्व वाली पुरुषवादी सोच को उचित ठहराते हैं।
  • सोशल मीडिया की लत और अलगाव: ऑनलाइन माध्यमों से लंबे समय तक चिपके रहने से बच्चे अपने माता-पिता और साथियों के साथ वास्तविक दुनिया के संबंधों से कट जाते हैं, जिससे सामाजिक संपर्क कम होता है और अलगाव बढ़ता है। साथ ही, वे ऑनलाइन माध्यमों से फैलाए जा रहे दुष्प्रचार के प्रभाव में आ जाते हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का जन्म: किशोर, जो पहचान बनाने के बदलाव वाली उम्र से गुजर रहे होते हैं, उन्हें चिंता, अवसाद और अपने लुक्स या बॉडी इमेज को लेकर चिंतित होना जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। 
    • उदाहरण के लिए, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के मॉडल पर्सनालिटी के साथ खुद की तुलना, पीछे छूट जाने का डर तथा को खुद को लोगों द्वारा स्वीकार किए जाने का व्यवहार (जैसे अपने सोशल मीडिया पोस्ट पर लाइक्स और कमेंट्स की संख्या को ही वास्तविक वैल्यू समझना)।
  • सहानुभूति की कमी और साइबर-बुलिंग: ऑनलाइन स्पेस के अधिकांश इंटरैक्शन में सहानुभूति की कमी देखने को मिलती है, जो ट्रोलिंग, अभद्र टिप्पणियों और दूसरों को नुकसान पहुंचाने वाले संवेदनहीन कंटेंट पोस्ट करने में दिखती है।
    • उदाहरण के लिए, दिल्ली में "बॉयज़ लॉकर रूम" की घटना (2020) जिसमें स्कूली लड़कों के एक ग्रुप में आपत्तिजनक इमेजेज साझा किए गए थे। 

किशोरों पर सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभावों को रोकने में चुनौतियां?

●    अप्रासंगिक हो गई नीतियां: डिजिटल क्षेत्र में तेजी से हो रहे बदलाव नीतियों में सुधारों की गति से कहीं आगे निकल गए हैं। इस बदलाव के साथ तेजी से ढलना माता-पिता और सामाजिक संस्थानों (जैसे-स्कूल) के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है।

●    डिजिटल साक्षरता का अभाव: किशोरों के पास ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स एक स्वतंत्र एजेंसी के समान हैं, लेकिन डिजिटल साक्षरता की कमी के कारण वे अच्छे-बुरे कंटेंट में अंतर नहीं कर पाते हैं और बिना पूरी जानकारी के अपनी सहमति (कंसेंट) दे देते हैं।

  • कंटेंट मॉडरेशन बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को नियम-कानून के दायरे में लाना विवादास्पद बना हुआ है, मुख्य रूप से इस तर्क के कारण कि इस तरह का रेगुलेशन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लोकतांत्रिक सिद्धांत को कमजोर करता है।
  • सूचना की प्राप्ति, आत्म-अभिव्यक्ति के लिए एक प्लेटफार्म तथा समान पहचान और सामान रुचियों वाले व्यक्तियों को आपस में जोड़ने में इंटरनेट और सोशल मीडिया हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं।
  • बच्चों को इन खतरों (सोशल मीडिया) से दूर रखना अस्थायी उपाय होगा और लंबे समय तक यह उपाय अधिक प्रभावी नहीं होगा।

●    कंटेंट मॉडरेशन में खामियां: किसी कंटेंट को बच्चों के लिए प्रतिबंधित करने से भी कोई अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि बच्चे डार्क वेब, पाइरेसी आदि के जरिए इस कंटेंट तक पहुंच सकते हैं।

●  अलग-अलग पीढ़ियों के बीच डिजिटल डिवाइड: किशोर, डिजिटल तकनीकों के संपर्क में होने के कारण, नई तकनीकों को जल्दी से अपना लेते हैं, जबकि पुरानी पीढ़ी उनका विरोध कर सकती है या उन्हें गलत समझ सकती है। उदाहरण के लिए भारतीय अभिभावक इमोजी या मीम्स को गलत समझते हैं।

  • सांस्कृतिक दुविधाएं तब उत्पन्न होती हैं जब युवा उन लिबरल वैश्विक मूल्यों को अपना लेते हैं जो पारंपरिक भारतीय पारिवारिक मानदंडों से मेल नहीं खाते हैं।

●    जागरूकता की कमी: माता-पिता में, स्कूलों और समाज में सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभावों के बारे में जागरूकता की कमी है। उदाहरण के लिए, लैंग्वेज टर्मिनोलॉजी और इमोजी के बदलते अर्थ के माध्यम से बदलते प्रतीकात्मक इंटरैक्शन।

आगे की राह 

  • किशोरों में डिजिटल सिटीजनशिप को बढ़ावा देना: डिजिटल सिटीजनशिप में कानूनी एवं सुरक्षित रूप से, सम्मानजनक और जिम्मेदार तरीके से इंटरनेट का उपयोग करना शामिल होता है।
  • डिजिटल एथिक्स ऑफ़ केयर: इसमें डिजिटल प्लेटफॉर्म के जिम्मेदारी पूर्वक उपयोग (डिजिटल रिस्पांसिबिलिटी), डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दूसरों की भावनाओं का ख्याल रखना (डिजिटल एम्पथी), डिजिटल माध्यम में भी दूसरों के प्रति दया और करुणा का भाव रखना (डिजिटल केयर) और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सम्मानपूर्वक संवाद करना (डिजिटल रेस्पेक्ट) शामिल हैं।
  • डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना: हमें बच्चों को महत्वपूर्ण निर्णय लेने और उन्हें निष्क्रिय उपभोक्ता से सोच-समझ वाले सक्रिय यूजर बनाने के लिए सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
  • माता-पिता की देखरेख: माता-पिता को खुले संवाद को बढ़ावा देने तथा सामाजिक अलगाव और अकेलेपन को रोकने के लिए बेहतर भावनात्मक माहौल प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • स्कूल के माहौल में सुधार: स्कूलों को बेहतर एंटी-बुलिंग कार्यक्रम लागू करने चाहिए, सलाह-सहायता प्रदान करनी चाहिए, माता-पिता के साथ सहयोग करनी चाहिए तथा किशोरों द्वारा सामना किए जाने वाली समस्याओं को बेहतर ढंग से समझने और उनसे निपटने के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए, ब्रिटेन की तरह रिलेशन्स, सेक्स और हेल्थ एजुकेशन (RSHE) को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए।
  • नीतिगत सुधार: एक बहुआयामी अप्रोच अपनाते हुए यह स्वीकार करना आवश्यक है कि बच्चों का डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सुरक्षा सुनिश्चित करना सभी हितधारकों—जैसे पुलिस, स्कूल, सोशल मीडिया कंपनियां, अभिभावक और समाज—की सामूहिक जिम्मेदारी है।
    • शिक्षा नीतियों, किशोर न्याय कानूनों और डेटा सुरक्षा कानूनों में भी किशोरों की विशेष आवश्यकताओं का ध्यान रखना आवश्यक है।
    • सूचना-प्रौद्योगिकी (टेक) कंपनियों की जवाबदेही: सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने की बजाय, हमें टेक कंपनियों को ऐसे प्लेटफॉर्म्स को  बच्चों के लिए सुरक्षित और उनके अनुकूल बनाने के लिए जवाबदेह बनाना चाहिए।
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