रणनीतिक क्रिप्टो रिजर्व (Strategic Crypto Reserve: SCR) | Current Affairs | Vision IAS
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रणनीतिक क्रिप्टो रिजर्व (Strategic Crypto Reserve: SCR)

Posted 02 May 2025

Updated 08 May 2025

28 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?


अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत एक रणनीतिक बिटकॉइन रिजर्व (SBR) और एक यू.एस. डिजिटल एसेट स्टॉकपाइल की स्थापना की गई है, ताकि एक रणनीतिक क्रिप्टो रिजर्व (SCR) तैयार किया जा सके।

अन्य संबंधित तथ्य  

  • इसका उद्देश्य रणनीतिक क्रिप्टो रिजर्व (SCR) में बिटकॉइन, एथेरियम, XRP, सोलाना (SOL) और कारडैनो (ADA) जैसी क्रिप्टोकरेंसी को शामिल करना है, ताकि अमेरिका के क्रिप्टो उद्योग को बढ़वा दिया जा सके।
  • इसका उद्देश्य क्रिप्टो प्रबंधन में मौजूद कमियों को दूर करना भी है, क्योंकि SBR को स्थापित करने वाले प्रारंभिक देशों में शामिल होकर अमेरिका रणनीतिक बढ़त हासिल कर सकता है।

क्रिप्टोकरेंसी क्या होती है?

  • क्रिप्टोकरेंसी एक डिजिटल या वर्चुअल मुद्रा है, जो सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्रिप्टोग्राफी का उपयोग करती है और विकेंद्रीकृत ब्लॉकचेन तकनीक पर काम करती है।
  • पारंपरिक फिएट मुद्राओं के विपरीत, क्रिप्टोकरेंसी पर किसी देश या सरकार या केंद्रीय बैंक का नियंत्रण नहीं होता है।
  • उदाहरण: बिटकॉइन (BTC), एथेरियम (ETH), रिपल (XRP), टेथर (USDT), आदि।

रणनीतिक क्रिप्टो रिजर्व (SCR) के बारे में

  • रणनीतिक क्रिप्टो रिजर्व (SCR) मूलतः सरकार के नियंत्रण में रखी गई क्रिप्टोकरेंसी का भंडार या स्टॉकपाइल होता है। इसे राष्ट्रीय वित्तीय भंडार के रूप में रखा जाता है ताकि आर्थिक अनिश्चितताओं से सुरक्षा, वित्तीय संप्रभुता को मजबूत करने और आर्थिक लचीलापन बढ़ाने के उद्देश्य से ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग किया जा सके।
  • यह पारंपरिक करेंसी रिजर्व जैसे विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार के बजाय एक डिजिटल मुद्रा भंडार के रूप में कार्य करता है।
  • रणनीतिक क्रिप्टो रिजर्व (SCR) के संचालन की प्रक्रिया अभी पूरी तरह से तय नहीं की गई है।
    • हालांकि, इसे रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार के समान समझा जा सकता है, जिसका उपयोग सरकार पेट्रोलियम आपूर्ति में रुकावट के प्रभावों को कम करने के लिए करती है।

क्या भारत को भी रणनीतिक क्रिप्टो रिजर्व स्थापित करना चाहिए?

पक्ष में तर्क

  • राष्ट्रीय रिजर्व का विविधीकरण: क्रिप्टोकरेंसी पारंपरिक संपत्तियों जैसे कि स्वर्ण, बॉण्ड और शेयर से ज्यादा संबंधित नहीं होती है, जिससे पोर्टफोलियो संबंधी जोखिम कम हो जाता है।
  • आर्थिक झटकों से बचाव: यह यू.एस. डॉलर के उतार-चढ़ाव और वैश्विक मौद्रिक अस्थिरता से बचाव का एक उपाय हो सकता है।
    • उदाहरण: यह भू-राजनीतिक तनावों (जैसे कि आर्थिक प्रतिबंध, व्यापार युद्ध, आदि) के कारण होने वाले नुकसान को कम कर सकता है।
  • लागत प्रभावी विप्रेषण (Cost-Efficient Remittance): क्रिप्टो लेन-देन विप्रेषण शुल्क को 6.4% (वैश्विक औसत) से घटाकर 1% से भी कम कर सकते हैं, जिससे भारत को सालाना अरबों रुपये की बचत हो सकती है।
  • तकनीकी रूप से अग्रणी: भारत की तकनीकी प्रतिभा का उपयोग करके ब्लॉकचेन और डिसेंट्रलाइज फाइनेंस (DeFi) के क्षेत्र में नवाचार किया जा सकता है।
  • उच्च रिटर्न की क्षमता: क्रिप्टो करेंसी का इतिहास देखें तो इसने पारंपरिक संपत्तियों की तुलना में बेहतर रिटर्न दिया है। अतः यह विकास के बहुआयामी अवसर प्रदान करती है।
    • उदाहरण: पिछले 10 सालों में बिटकॉइन ने 200 गुना की वृद्धि की है, जबकि NVIDIA और Apple जैसे बड़े स्टॉक्स ने 50 गुना और 10 गुना की वृद्धि की।
  • वित्तीय संप्रभुता: यह बाहरी वित्तीय प्रणालियों (जैसे- SWIFT) पर निर्भरता को कम करता है और आर्थिक स्वतंत्रता को मजबूत बनाता है।

विपक्ष में तर्क

  • अस्थिरता और बाजार संबंधी जोखिम: क्रिप्टोकरेंसी की कीमत में अत्यधिक उतार-चढ़ाव (जैसे- 2022 में बिटकॉइन के मूल्य में 80% की गिरावट) क्रिप्टो रिजर्व को अस्थिर बना सकता है।
  • RBI की आपत्तियां और नीतिगत रुख: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बार-बार क्रिप्टोकरेंसी के जोखिमों के बारे में चेतावनी दी है और जिसमें वित्तीय अस्थिरता को प्रमुख कारण बताया गया है।
    • RBI विकेंद्रीकृत क्रिप्टोकरेंसी की तुलना में सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) को प्राथमिकता देता है, क्योंकि RBI विकेंद्रीकृत क्रिप्टोकरेंसी को मौद्रिक संप्रभुता के लिए खतरा मानता है।
  • विनियामक चुनौतियां: इसमें मौजूदा वित्तीय कानूनों से टकराव और भविष्य में संभावित विनियमों के संबंध में अनिश्चितता आदि शामिल है।
  • सुरक्षा संबंधी जोखिम: क्रिप्टो वॉलेट्स या एक्सचेंज पर साइबर हमले से भारी नुकसान हो सकता है।
    • उदाहरण: 2021 में 600 मिलियन डॉलर का पॉली नेटवर्क हैक।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग प्रक्रिया (जैसे: बिटकॉइन का प्रूफ-ऑफ-वर्क) में बिजली की खपत अधिक होती है, जो जलवायु संबंधी लक्ष्यों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
  • स्वीकृति संबंधी बाधाएं: इसमें क्रिप्टो के प्रति आम लोगों में संदेह और रिजर्व संपत्ति के रूप में इसकी सीमित संस्थागत विश्वसनीयता, आदि शामिल हैं।
    • तरलता संबंधी समस्याएं: व्यापक क्रिप्टो होल्डिंग्स को फिएट मुद्रा में कन्वर्ट करने में तरलता संबंधी समस्या उत्पन्न हो सकती है।

भारत के लिए आगे का राह 

  • लघु स्तर पर शुरुआत: भारत ट्रायल के तौर पर अपने विदेशी मुद्रा भंडार का 1-2% (लगभग 6-12 बिलियन डॉलर) हिस्सा क्रिप्टोकरेंसी के लिए निर्धारित कर सकता है।
  • विनियामक फ्रेमवर्क का निर्माण: भारत सिंगापुर और जापान के संतुलित मॉडल से सीख ले सकता है, ताकि जोखिम को कम करते हुए नवाचार को बढ़ावा दिया जा सके।
  • तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ उठाना: देश की स्थानीय प्रतिभा का उपयोग करके क्रिप्टो को सुरक्षित रूप से भंडारित करने के उपायों के साथ-साथ ब्लॉकचेन इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास किया जा सकता है।
  • उपयोगिता पर ध्यान देना: विप्रेषण और DeFi में क्रिप्टो के उपयोग को प्राथमिकता दी जा सकती है, ताकि जमीनी स्तर पर इसके उपयोग को बढ़ावा मिल सके।
  • वैश्विक प्रवृत्तियों पर नजर रखना: भारत अंतर्राष्ट्रीय मानकों (जैसे: अमेरिकी बिटकॉइन ETF, EU के MiCA रेगुलेशन) के अनुरूप नियम बना सकता है।
  • Tags :
  • CBDC
  • रणनीतिक क्रिप्टो रिजर्व
  • बिटकॉइन
  • रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार
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