सुर्ख़ियों में क्यों?
भारत के प्रधान मंत्री ने गुजरात के गिर राष्ट्रीय उद्यान में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की 7वीं बैठक की अध्यक्षता की।
अन्य संबंधित तथ्य
- राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) की हालिया बैठक 10 साल से अधिक समय के बाद हुई है।
- NBWL की अंतिम पूर्ण बैठक 5 सितंबर 2012 को हुई थी
- NBWL की पहली बैठक 2003 में हुई थी।
- इस बैठक के दौरान, प्रधान मंत्री ने पहली बार 'नदी डॉल्फिन' अनुमान रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट के अनुसार, देश में 'नदी डॉल्फिन (नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिन)' की कुल संख्या 6,327 है।
- प्रधान मंत्री ने 2025 में शेरों की संख्या का आकलन करने के 16वें चक्र की शुरुआत की घोषणा की। पिछली बार शेरों की संख्या का आकलन 2020 में किया गया था।
राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) के बारे में
- यह एक वैधानिक निकाय है। इसका गठन वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में 2002 में किए गए संशोधन के बाद 2003 में किया गया था।
- उत्पत्ति: भारत सरकार ने 1952 के दौरान भारतीय वन्यजीव बोर्ड (IBWL) के रूप में नामित एक सलाहकार निकाय का गठन किया था।
- श्री जयचमराजा वाडियार (मैसूर के पूर्व महाराजा) इसके पहले अध्यक्ष थे।
- IBWL ने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 को लागू करने, एशियाई शेरों के लिए गिर राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना एवं बाघ को राष्ट्रीय पशु घोषित करने आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- सदस्य
- अध्यक्ष: भारत के प्रधान मंत्री
- उपाध्यक्ष: पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के प्रभारी केंद्रीय मंत्री।
- बोर्ड के सदस्य-सचिव: अतिरिक्त वन महानिदेशक (वन्य जीव) एवं निदेशक, वन्य जीव संरक्षण।
- गैर-सरकारी संगठनों का प्रतिनिधित्व करने के लिए पांच व्यक्तियों को केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाता है।
- केंद्र सरकार द्वारा प्रख्यात संरक्षणवादियों, पारिस्थितिकीविदों और पर्यावरणविदों में से दस व्यक्तियों को नामित किया जाता है।
- स्थायी समिति: NBWL, राष्ट्रीय बोर्ड द्वारा समिति को सौंपी गई शक्तियों का प्रयोग करने और कर्तव्यों का पालन करने के उद्देश्य से एक स्थायी समिति का गठन करता है।
- अध्यक्ष: पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री।
- NBWL के कार्य:
- वन्य जीवन और वनों के संरक्षण एवं विकास को संधारणीय उपायों द्वारा बढ़ावा देना।
- वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा देने तथा वन्य जीवों के अवैध शिकार और उनके अंगों के अवैध व्यापार को प्रभावी रूप से नियंत्रित करने के तरीकों और साधनों पर नीतियां बनाना एवं केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को सलाह देना।
- राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों एवं अन्य संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना, प्रबंधन तथा उन क्षेत्रों में प्रतिबंधित की जाने वाली गतिविधियों के मामलों पर सिफारिशें करना।
- विभिन्न परियोजनाओं और गतिविधियों को कार्यान्वित करना या कराना, लेकिन वन्य जीवन या उसके पर्यावास पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना।
NBWL से संबंधित मुद्दे
- संरक्षित क्षेत्रों में परियोजनाओं की स्वीकृति: केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के तहत दौधन बांध का निर्माण करने से पन्ना टाइगर रिजर्व का लगभग 100 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र जलमग्न हो जाएगा। इसके बावजूद इस परियोजना को मंजूरी दे दी गई।
- लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए खतरा: उदाहरण के लिए, होलोंगापार गिब्बन अभयारण्य (असम) में तेल अन्वेषण से भारत की एकमात्र कपि प्रजाति हूलॉक गिब्बन के पर्यावास को खतरा है।
- स्वतंत्र सदस्यों की भूमिका को कम करना: 2014 के बाद से, स्थायी समिति ने संरक्षण के क्षेत्र से संबंधित विशेषज्ञों और गैर-सरकारी सदस्यों की अपेक्षित संख्या के बिना 50 बैठकें आयोजित की हैं।
- स्थानीय समुदायों की राय की उपेक्षा: छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य वनक्षेत्र में कोयला खनन परियोजना की मंजूरी के दौरान स्थानीय विरोध को नजरअंदाज किया गया। ध्यातव्य है कि यह वन्य हाथियों का पर्यावास है।
- मंजूरी के बाद अपर्याप्त निगरानी: पिछले 5 वर्षों में वन्यजीव अभयारण्य और संरक्षित क्षेत्रों में परियोजना संबंधी 718 प्रस्तावों को NBWL द्वारा वाइल्डलाइफ क्लीयरेंस दे दिया गया है।
- हालांकि, राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन द्वारा अनुपालन प्रमाण-पत्र नहीं भेजे जा रहे हैं। (फरवरी 2024 में आयोजित हुई स्थायी समिति की 77वीं बैठक के अनुसार)
आगे की राह
- विशेषज्ञता की आवश्यकता: NBWL और इसकी स्थायी समिति दोनों में योग्य वन्यजीव वैज्ञानिकों एवं संरक्षण के क्षेत्र में संलग्न NGOs की उपस्थिति सुनिश्चित की जानी चाहिए। साथ ही, नियमित तौर पर और समावेशी बैठकें विश्वसनीयता को बहाल कर सकती हैं।
- मंजूरी के बाद निगरानी: प्रस्तावित परियोजना से संबंधित कंपनी द्वारा निर्धारित शर्तों के अनुपालन की वार्षिक प्रमाणपत्र राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन को प्रस्तुत किया जाएगा और राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन द्वारा सरकार को वार्षिक प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया जाएगा।
- स्थानीय सामुदायिक भागीदारी को संस्थागत बनाना: प्रभावित जनजातीय और वन-आश्रित समुदायों से स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति अनिवार्य की जानी चाहिए।
- विकास और पर्यावरण में संतुलन बनाना: NBWL को पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को प्रोत्साहित करना चाहिए,जैसे- संरक्षित क्षेत्रों से होकर गुजरने वाले सड़कों का मार्ग बदलना, सुरंगों का उपयोग करना तथा बड़े बांधों या ओपन-पिट माइनिंग की तुलना में नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना।
- उदाहरण के लिए, पेंच टाइगर रिजर्व (महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश) से होकर गुजरने वाले NH-7 में ओवरपास के उपयोग से बाघ गलियारों को सुरक्षित करने में मदद मिली है।
- वैज्ञानिक और तकनीकी साधनों का लाभ उठाना: किसी परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी देने से पहले उसके प्रभावों का आकलन और पूर्वानुमान करने के लिए वन्यजीव की गतिविधि से संबंधित डेटा, उपग्रह इमेजरी और AI-आधारित पर्यावास मॉडलिंग का उपयोग किया जाना चाहिए।