भारत-कुवैत संबंध (India-Kuwait Relations) | Current Affairs | Vision IAS
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भारत-कुवैत संबंध (India-Kuwait Relations)

Posted 04 Feb 2025

Updated 10 Feb 2025

34 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में भारत के प्रधान मंत्री ने कुवैत की यात्रा की। यह 43 वर्षों में किसी भारतीय प्रधान मंत्री की पहली यात्रा थी।

यात्रा के मुख्य परिणाम

  • पुरस्कार वितरण: भारतीय प्रधान मंत्री को कुवैत के सर्वोच्च पुरस्कार 'द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर' से सम्मानित किया गया।
  • रणनीतिक साझेदारी: भारत और कुवैत ने अपने संबंधों को रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाने का निर्णय लिया।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA): भारत ने सतत ऊर्जा सहयोग के लिए कुवैत के ISA में शामिल होने के फैसले का स्वागत किया।
  • एशियन कोऑपरेशन डायलॉग (ACD): क्षेत्रीय सहयोग में ACD के महत्त्व पर बल दिया गया।
    • गौरतलब है कि ACD का उद्घाटन 2001 में एशिया की सामूहिक शक्तियों का लाभ उठाने के उद्देश्य से किया गया था। इसमें 35 देश शामिल हैं। भारत इसका संस्थापक सदस्य है।
  • भारत-GCC सहयोग: कुवैत ने भारत और GCC (खाड़ी सहयोग परिषद) के सदस्य देशों के बीच मजबूत संबंधों का समर्थन करने की बात कही। वर्तमान में GCC की अध्यक्षता कुवैत के पास है।
  • रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर: सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों में प्रशिक्षण, कर्मियों एवं विशेषज्ञों का आदान-प्रदान, संयुक्त अभ्यास, रक्षा उद्योग में सहयोग, रक्षा उपकरणों की आपूर्ति आदि शामिल हैं।
  • अन्य विकास
    • नवीनीकृत सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम (2025-2029) पर हस्ताक्षर किए गए। यह कार्यक्रम कला, साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा देगा।
    • भारत ने आतंकवाद से निपटने और सीमा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए चौथे दुशांबे प्रक्रिया चरण की मेजबानी के लिए कुवैत की सराहना की।

भारत-कुवैत संबंधों में भारत का हित 

  • कुवैत की सामरिक अवस्थिति और भारत के हित: क्षेत्र में महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने में दोनों देशों की आपसी रुचि है। इनमें लाल सागर, अदन की खाड़ी, ओमान की खाड़ी और अरब सागर के समुद्री मार्ग शामिल हैं, जो विश्व के सबसे व्यस्ततम समुद्री मार्गों में से हैं। 
    • इसके अलावा, कुवैत की सामरिक अवस्थिति भारत की कनेक्टिविटी परियोजनाओं, जैसे कि भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC) को बढ़ावा देगी।
  • कुवैत की पेट्रोलियम आधारित अर्थव्यवस्था भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है: कुवैत के पास विश्व के 6% तेल भंडार और पर्याप्त प्राकृतिक गैस भंडार हैं। कुवैत को तेल से जो राजस्व प्राप्त होता है, वह उसकी कुल आय का 94% है।
    • कुवैत भारत की कुल ऊर्जा आवश्यकताओं का 3.5% तक पूरा करता है। साथ ही, उसने भारत के रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व कार्यक्रम में भी रुचि दिखाई है।
    • इसके अलावा, पेट्रोकेमिकल क्षेत्रक सहयोग के लिए एक और आशाजनक अवसर प्रस्तुत करता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत का तेजी से बढ़ता पेट्रोकेमिकल उद्योग 2025 तक 300 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
  • भारत एक प्रमुख निवेश गंतव्य है: कुवैत इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी (KIA) दुनिया के सबसे बड़े सॉवरेन वेल्थ फंड (लगभग 1 बिलियन डॉलर) में से एक का प्रबंधन करती है। यह फंड नॉर्वे, चीन और संयुक्त अरब अमीरात के फंड के बाद चौथा सबसे बड़ा फंड है।
  • GCC के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने में भारत की रुचि (बॉक्स देखें): कुवैत वर्तमान में खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) की अध्यक्षता कर रहा है।
  • भारत और कुवैत के भू-राजनीतिक हित: भारत और कुवैत के बीच बढ़ते राजनीतिक संबंध (जो भारत के विस्तारित पड़ोस का हिस्सा है), तेल व्यापार से आगे बढ़ते हुए, विकसित होते भारत-खाड़ी संबंधों को दर्शाते हैं।
    • यह रणनीतिक नई दिशा भारत को खाड़ी क्षेत्र में एक समग्र सुरक्षा प्रदाता के रूप में अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने के अवसर प्रदान करती है।

भारत-कुवैत संबंधों में चिंतनीय मुद्दे

  • प्रवासी कल्याण और श्रम से संबंधित मुद्दे: कुवैत में भारत का बड़ा प्रवासी समुदाय श्रम अधिकारों के उल्लंघन और दुर्व्यवहार जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। 2024 में मंगाफ़ में लगी आग में 40 भारतीयों की मौत हो गई थी, जो काम करने की खराब परिस्थितियों को उजागर करता है।
  • सीमित आर्थिक विविधता: ऊर्जा क्षेत्रक व्यापारिक संबंधों का मुख्य आधार है, लेकिन अन्य क्षेत्रकों में दोनों देशों की आर्थिक भागीदारी सीमित है। इसके अलावा, भारत का कुवैत के साथ व्यापार घाटा भी है।
  • खाड़ी में भू-राजनीतिक तनाव: खाड़ी युद्ध और यमन एवं सीरिया में चल रहे तनाव जैसे क्षेत्रीय संकटों के दौरान कुवैत का राजनयिक रुख कभी-कभी भारत की गैर-हस्तक्षेपवादी नीति से भिन्न हो सकता है।

भारत और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC)

  • GCC की स्थापना: इसकी स्थापना 1981 में की गई थी। 
  • GCC सदस्य: यह एक क्षेत्रीय संगठन है। इसमें 6 सदस्य शामिल हैं: बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात।

भारत और GCC संबंध

  • आर्थिक और व्यापारिक संबंध: GCC भारत के विदेश व्यापार में सबसे बड़े व्यापारिक गुटों में से एक है। 
    • उदाहरण के लिए- 2023-24 में भारत और GCC देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार भारत के कुल विदेशी व्यापार का लगभग 14% था।
    • व्यापार संतुलन मुख्यतः GCC के पक्ष में है, क्योंकि भारत GCC देशों से बड़ी मात्रा में तेल और गैस का आयात करता है।
    • निवेश: 2000 और 2024 के बीच महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो निवेशों को छोड़कर, भारत को GCC देशों से लगभग 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कुल FDI प्राप्त हुआ था।
  • ऊर्जा सुरक्षा: GCC देश भारत की कच्चे तेल आवश्यकता का 50% और प्राकृतिक गैस का 70% आपूर्ति करते हैं। उदाहरण के लिए, कतर भारत के लिए तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।
  • भारतीय प्रवासी और विप्रेषण: GCC देशों में 8 मिलियन से अधिक भारतीय प्रवासी रहते हैं, जो GCC देशों का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है। GCC देश संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत के लिए विप्रेषण का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत भी हैं।

भारत-GCC संबंधों में चुनौतियां

  • क्षेत्र में भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: सऊदी अरब और ईरान के बीच प्रतिद्वंद्विता ने इन दोनों देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रभावित किया है। इससे कूटनीतिक और आर्थिक संबंध जटिल हो गए हैं।
  • श्रम प्रवासन और सामाजिक मुद्दे: भारत ने GCC देशों में कफाला प्रणाली को लेकर चिंता व्यक्त की है। इसमें प्रवासी श्रमिकों के शोषण, मानवाधिकारों के उल्लंघन और दुर्व्यवहार जैसे मुद्दे सामने आए हैं। कफाला एक प्रायोजक (Sponcership) प्रणाली है। इसके तहत श्रमिक, एक अनुबंध के माध्यम से कफील (प्रायोजक) से जुड़े होते हैं, जो उनके प्रवास की स्थिति को नियंत्रित करता है।
    • उदाहरण: द गार्जियन की 2021 की एक रिपोर्ट से पता चला है कि फीफा विश्व कप की मेजबानी मिलने के बाद से कतर में भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के लगभग 6,500 प्रवासी श्रमिकों की मृत्यु हो गई है।
  • मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की वार्ताओं में धीमी प्रगति: वर्तमान में जारी वार्ताओं के बावजूद, भारत-GCC FTA का अभी तक कोई समाधान नहीं हो पाया है। इससे गहन आर्थिक एकीकरण में बाधा उत्पन्न हो रही है।
  • कच्चे तेल के मूल्य निर्धारण पर भेदभावपूर्ण "एशियाई प्रीमियम": ओपेक (OPEC) देशों द्वारा लगाए गए "एशियाई प्रीमियम" के परिणामस्वरूप पश्चिमी खरीदारों की तुलना में भारत सहित एशियाई देशों के लिए कच्चे तेल की कीमतें अधिक हो जाती हैं।

 

निष्कर्ष

भारत की हालिया कुवैत यात्रा द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण कदम है। आगे बढ़ते हुए, नवीनीकृत द्विपक्षीय निवेश संवर्धन समझौते को शीघ्र अंतिम रूप देने, नवीकरणीय ऊर्जा में प्रगति और भर्ती एजेंटों की सख्त निगरानी को प्राथमिकता देना आवश्यक है।

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  • भारत-कुवैत
  • भारत और खाड़ी सहयोग परिषद
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