हाल ही में, राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने आगामी जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने को मंजूरी दी।
भारत में जनगणना

- संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत जनगणना एक संघीय विषय है। यह अनुसूची VII के तहत संघ सूची की प्रविष्टि 69 में शामिल है।
- जनगणना अधिनियम, 1948 जनसंख्या की गणना आयोजित करने की योजना और जनगणना अधिकारियों के कर्तव्यों एवं जिम्मेदारियों को निर्धारित करता है।
जनगणना में जातिगत गणना का महत्त्व
- न्यायिक आवश्यकता: सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी और अन्य बनाम भारत संघ (UOI) वाद, 1992 में निर्णय दिया था कि राज्यों को किसी वर्ग की 'पिछड़ेपन' की स्थिति का निर्धारण उचित मूल्यांकन और वस्तुनिष्ठ तरीके से करना चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि इस तरह के निष्कर्ष विशेषज्ञों के एक स्थायी निकाय द्वारा समय-समय पर समीक्षा के अधीन होने चाहिए।
- सामाजिक न्याय: जातिगत जनगणना के साथ-साथ अन्य डेटा से समाज के सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की नई सूची तैयार करने में मदद मिल सकती है।
- जनगणना के जातिगत आंकड़ों की मदद से ‘कोटा के भीतर कोटा’ (उप-वर्गीकरण) व्यवस्था तैयार करना आसान हो सकता है। इससे आरक्षण के लाभों के अधिक न्यायसंगत वितरण को सक्षम बनाया जा सकता है।
- नीति निर्माण: जातिगत जनगणना के आंकड़े वंचितों और दलितों की जरूरतों एवं मांगों को पूरा करने के लिए अधिक सूचित व साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण में सहायता प्रदान कर सकते हैं।