इन कानूनों को लागू करने का उद्देश्य न्याय प्रणाली को न केवल किफायती, सुलभ और पहुंच योग्य बनाना है, बल्कि इसे सरल, सुसंगत तथा पारदर्शी भी बनाना है।
- पुराने ब्रिटिश कालीन कानूनों की जगह नए कानून:
- भारतीय दंड संहिता (IPC, 1860) की जगह भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) ने ली है।
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC, 1973) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) ने ली है।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) ने ली है।
पिछले एक साल में हुए प्रमुख सुधार

- प्रौद्योगिकी-आधारित न्याय प्रणाली:
- ई-साक्ष्य और ई-समन्स: इन्हें 11 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया गया है।
- न्याय श्रुति: यह अदालतों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाही सुनने में सक्षम बनाती है। इसे 6 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया गया है।
- क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम्स (CCTNS) नेटवर्क: इससे 14,000 से अधिक पुलिस स्टेशन जुड़े हैं, तथा 22,000 अदालतें ऑनलाइन हुई हैं।
- क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण: 23 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों ने 100% क्षमता निर्माण कार्य पूरा कर लिया है।
- 12 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों ने सामुदायिक सेवा को दंड के रूप में अपनाया है।
नए आपराधिक कानूनों (BNS, BNSS और BSA) को लागू करने में चुनौतियां
- पर्याप्त अवसंरचना की कमी: उदाहरण के लिए- कई पुलिस थानों, अदालतों और जेलों में इंटरनेट एवं डिजिटल उपकरण नहीं हैं।
- BNSS न्याय के लिए समय-सीमा तय करता है, लेकिन इसका प्रवर्तन कमजोर है: उदाहरण के लिए- पुलिस और जिला न्यायपालिका में 22% पद रिक्त हैं। इससे समय-सीमा पूरी करना मुश्किल हो रहा है।
- BNSS और BSA फोरेंसिक पर जोर देते हैं, लेकिन संसाधनों की कमी है: प्रशासनिक स्टाफ में 47% और वैज्ञानिक स्टाफ में 49% पद रिक्त हैं, जिससे फोरेंसिक परीक्षण प्रभावित होता है।
BNS और BNSS पर सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्णय
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