इसके अलावा, भारत और नेपाल ने 1953 की प्रत्यर्पण संधि में संशोधन में तेजी लाने का भी निर्णय लिया है। यह निर्णय इसलिए लिया गया है, क्योंकि यह संधि अब पुरानी हो चुकी है।
- नई आवश्यकताओं के अनुरूप एक अपडेटेड प्रत्यर्पण संधि के अभाव में कानूनी और प्रशासनिक चुनौतियों के कारण भारत एवं नेपाल के बीच अपराधियों के सुगमतापूर्वक प्रत्यर्पण में बाधा उत्पन्न होती है।
प्रत्यर्पण (Extradition) के बारे में
- परिभाषा: प्रत्यर्पण एक देश द्वारा दूसरे देश को उन व्यक्तियों को सौंपना है, जो उन आपराधिक मामलों में वांछित हैं, जिनके लिए वे आरोपी या दोषी ठहराए गए हैं। साथ ही, ऐसे आरोपी या दोषी दूसरे देश के न्यायालयों में मुकदमा चलाने की शर्तों को पूरा करते हों।
- प्रत्यर्पण के मामले में विदेश मंत्रालय (MEA) केंद्रीय प्राधिकरण है ।
भारत-नेपाल पारस्परिक कानूनी सहायता समझौते के बारे में
- आपराधिक मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता: यह समझौता दोनों देशों को साक्ष्य प्राप्त करने, खुफिया जानकारी साझा करने और जांच में सहायता करने की सुविधा प्रदान करेगा। भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका (2005), इजरायल (2015) आदि सहित 42 देशों के साथ ऐसी संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं ।
- गृह मंत्रालय इसका केंद्रीय प्राधिकरण है।
- समझौते का लाभ: यह आपराधिक मामलों में सहयोग के लिए प्रक्रियाओं को औपचारिक और मानकीकृत करेगा।
- अधिकारियों को साक्ष्य और जानकारी साझा करने का स्पष्ट कानूनी अधिकार होगा। इससे जांच एवं अभियोजन की प्रक्रिया में तेजी आएगी।
पारस्परिक कानूनी सहायता समझौते के अभाव में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा है?
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