यह निर्णय राम चरण एवं अन्य बनाम सुखराम एवं अन्य वाद में आया है। कोर्ट ने जनजातीय रीति-रिवाजों के आधार पर महिलाओं को उत्तराधिकार से वंचित करने के खिलाफ अपील की सुनवाई पर यह निर्णय सुनाया है।
इस निर्णय के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- जनजातीय महिलाओं को उत्तराधिकार से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है।
- अनुच्छेद 38 और 46 मिलकर संविधान के सामूहिक लोकाचार को दर्शाते हैं, जो यह सुनिश्चित करता है कि महिलाओं के खिलाफ कोई भी भेदभाव न हो।
- हालांकि, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होता है, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि जनजातीय महिलाओं को उत्तराधिकार से स्वतः ही बाहर कर दिया जाएगा।
- इस संबंध में संहिताबद्ध प्रथा या रीति रिवाज के तहत प्रतिबंध के अभाव में, कोर्ट को न्याय, समता और सद्भाव के सिद्धांतों को लागू करना चाहिए।
- इससे संबंधित कुछ उदाहरण:
- श्रीमान सरवांगो बनाम श्रीमान उर्चामहिन वाद (2013): इसमें समानता के आधार पर बेटियों को उत्तराधिकार का हक देने का आदेश दिया गया था।
- तिरिथ कुमार बनाम दादूराम वाद (2024): इसके तहत जनजातीय संपत्ति में महिला उत्तराधिकार की हक़दारी को बरकरार रखा गया था।
महत्त्व: यह निर्णय जनजातीय समुदायों में लैंगिक न्याय को आगे बढ़ाता है तथा जनजातीय महिलाओं के उत्तराधिकार संबंधी अधिकारों पर कोर्ट के पूर्ववर्ती सतर्क रुख में बदलाव को दर्शाता है।
कानून के स्रोत के रूप में रीति-रिवाज
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