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भारत में बाल विवाह (Child Marriage in India)

30 Nov 2024
33 min

सुर्ख़ियों में क्यों? 

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने गैर-सरकारी संगठन 'सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन' द्वारा दायर एक याचिका में बाल विवाह पर रोक के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए। 

भारत में बाल विवाह की स्थिति (NFHS-5)

  • 20-24 वर्ष की आयु की 23.3% महिलाओं की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हुई है।
  • 25-29 वर्ष की आयु के 17.7% पुरुषों की शादी 21 वर्ष की आयु से पहले हुई है। 
  • 2006 में बाल विवाह का प्रचलन 47% था, जो 2019-21 में लगभग आधा होकर 23.3% हो गया है।
  • आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, झारखंड, राजस्थान, तेलंगाना, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में बाल विवाह का प्रचलन राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत दर्ज मामलों की संख्या 2017 के 395 से बढ़कर 2021 में 1050 हो गई थी। 

 

भारत में बाल विवाह के प्रचलन के लिए जिम्मेदार कारक

  • गरीबी और संसाधनों की कमी: वित्तीय बोझ, विशेषकर दहेज को कम करने के लिए परिवार अक्सर बेटियों की शादी जल्दी कर देते हैं और लड़कियों को आर्थिक देनदारी के रूप में देखते हैं। 
  • गहरी जड़ें जमा चुकी सांस्कृतिक और पारंपरिक मान्यताएं: रूढ़िवादी समाजों में, बाल विवाह को पारिवारिक सम्मान को बनाए रखने, कौमार्य सुनिश्चित करने और लड़कियों को विवाह पूर्व यौन संबंधों से बचाने के एक तरीके के रूप में देखा जाता है। 
    • पारंपरिक, धार्मिक, जड़े जमा चुके रीति-रिवाज और बाल विवाह की सामाजिक स्वीकृति बाल विवाह की व्यापकता के मुख्य कारण हैं। 
  • पितृसत्तात्मकता और लैंगिक असमानता: लड़कियों को परिवार पर बोझ के रूप में देखा जाता है और कम उम्र में अपनी बेटी की शादी करना इस 'बोझ' को उसके पति के परिवार पर स्थानांतरित करके आर्थिक कठिनाई को कम करने के एक तरीके के रूप में देखा जाता है। 
  • लड़कियों की शिक्षा को कम महत्त्व देना: लड़कियों की शिक्षा में निवेश को कमतर आंका जाता है। खराब शैक्षिक अवसर के कारण बच्चे विवाह का विरोध नहीं कर पाते हैं, क्योंकि वैकल्पिक आकांक्षाएं कम हो जाती हैं। 
  • सुरक्षा और संरक्षा का भय: कई माता-पिता महसूस करते हैं कि लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उनकी जल्दी शादी करना उनके हित में है। ऐसा विशेषकर उन स्थितियों में किया जाता है, जहां लड़कियों को उत्पीड़न और शारीरिक या यौन उत्पीड़न का अधिक खतरा होता है। 
  • कानूनी और प्रवर्तन अंतराल: कमजोर कानून प्रवर्तन, जागरूकता की कमी और विशेष रूप से ग्रामीण तथा दूरदराज के क्षेत्रों में अपर्याप्त निगरानी के कारण बाल विवाह का जोखिम बना रहता है। जैसे- बाल विवाह के मामलों में दोषसिद्धि और रिपोर्टिंग बेहद कम होती है। 

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • 'बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006' का प्रवर्तन: यह 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों और 21 वर्ष से कम उम्र के लड़कों के विवाह पर प्रतिबंध लगाता है। इस अधिनियम की धारा 16 राज्य सरकार को बाल विवाह निषेध अधिकारी (CMPO) नियुक्त करने के लिए अधिकृत करती है। 
  • किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: इसमें उन बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के प्रावधान किए गए हैं, जिनकी विवाह की उम्र होने से पहले ही विवाह करा दिए जाने का खतरा है।
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना (2015): यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित एक योजना है। इस योजना का उद्देश्य लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ना और पुत्र-प्रधान रीति-रिवाजों को चुनौती देना है। इसमें बालिकाओं के जन्म पर उत्सव मनाने, सुकन्या समृद्धि खातों को बालिकाओं के जन्म से जोड़ने और बाल विवाह को रोकने के घटक शामिल हैं। 
  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR): यह आयोग बाल विवाह के मुद्दे पर बाल कल्याण समितियों (CWC), पुलिस, महिला एवं बाल विकास विभाग और नागरिक समाज संगठनों के प्रतिनिधियों जैसे हितधारकों के साथ विविध गतिविधियां संचालित करता है। 
  • बाल विवाह को रोकने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना: यह एक व्यापक रूपरेखा है, जिसका उद्देश्य उन लड़कियों को सहायता प्रदान करना है, जिनका कम उम्र में विवाह होने का खतरा है। इसमें बेहतर डेटा संग्रह, जागरूकता कार्यक्रम और राज्य एवं स्थानीय सरकारों के बीच मजबूत समन्वय शामिल है। 
  • आपातकालीन आउटरीच सेवाएं: भारत सरकार ने शॉर्ट कोड 1098 के साथ चाइल्डलाइन की शुरुआत की है। यह बाल विवाह की रोकथाम सहित संकटग्रस्त बच्चों के लिए 24x7 टेलीफोन आपातकालीन आउटरीच सेवा है।
  • यूनिसेफ और अन्य गैर-सरकारी संगठनों के साथ राज्य सरकारों की साझेदारी: उदाहरण के लिए, यूनिसेफ द्वारा बिहार में बाल विवाह पर स्थानीय धार्मिक गुरुओं तथा कथावाचकों का क्षमता निर्माण किया जा रहा है। साथ ही, ग्रामीण स्तर पर द्वार दूत के रूप में कार्य करने के लिए युवाचार्यों का एक समूह तैयार किया जा रहा है।

आगे की राह 

सुप्रीम कोर्ट ने भारत में बाल विवाह को रोकने के लिए विविध घटकों को शामिल करते हुए व्यापक दिशा निर्देश जारी किए हैं:

  • कानून प्रवर्तन: जिला स्तर पर राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) द्वारा CMPOs की नियुक्ति और जवाबदेही सुनिश्चित करना। इन अधिकारियों पर ऐसे अतिरिक्त कार्यभार का बोझ नहीं डाला जाना चाहिए, जो बाल विवाह को रोकने हेतु उनके ध्यान को बाधित करे।
    • बाल विवाह की रोकथाम के लिए जिला स्तर पर कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों को जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए। 
    • एक विशेष पुलिस इकाई और विशेष बाल विवाह निषेध इकाई की स्थापना की जानी चाहिए। 
  • न्यायिक उपाय: बाल विवाह को रोकने के लिए मजिस्ट्रेटों को स्वतः संज्ञान लेने का अधिकार देना चाहिए। 
    • बाल विवाह के मामलों के लिए विशेष फास्ट-ट्रैक अदालतों के गठन पर विचार करना चाहिए।
    • लापरवाही करने वाले लोक सेवकों के खिलाफ अनिवार्य कार्रवाई करनी चाहिए। 
  • सामुदायिक भागीदारी: स्वच्छ भारत मिशन के तहत "खुले में शौच मुक्त गांव" की तर्ज पर बाल विवाह मुक्त गांव पहल को अपनाना चाहिए। साथ ही, गांवों और ग्राम पंचायतों को "बाल विवाह मुक्त" प्रमाण-पत्र प्रदान करने चाहिए।  
  • जागरूकता अभियान और क्षमता निर्माण: स्कूल पाठ्यक्रम में व्यापक यौन शिक्षा और अधिकारों को शामिल करना चाहिए।  
    • सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं, शिक्षकों तथा कानून प्रवर्तन और न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: गृह मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और NALSA द्वारा बाल विवाह के लिए एक केंद्रीकृत रिपोर्टिंग पोर्टल की स्थापना करनी चाहिए।  
    • बाल विवाह के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा प्रौद्योगिकी का उपयोग करके सभी मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बाल विवाह के खिलाफ जानकारी प्रसारित करनी चाहिए। 
    • त्वरित हस्तक्षेप के लिए उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों और पैटर्न की पहचान करने के लिए डेटा का विश्लेषण किया जाना चाहिए। 
  • फंडिंग और संसाधन: प्रत्येक राज्य के लिए बाल विवाह रोकने के उद्देश्य के प्रति समर्पित वार्षिक बजट आवंटित किया जाना चाहिए। 
    • किशोर न्याय अधिनियम की धारा 105 के तहत स्थापित किशोर न्याय कोष का संस्थानीकरण किया जाना चाहिए। 

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