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निःशुल्क विधिक सहायता (Free Legal Aid)

Posted 30 Nov 2024

45 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद कैदियों को "निःशुल्क और समय पर कानूनी सहायता" सुनिश्चित करने के लिए विधिक सेवा प्राधिकरणों को निर्देश जारी किए। 

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जारी किए गए मुख्य निर्देशों पर एक नज़र

  • विधिक सेवा प्राधिकरणों को मजबूत करना: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority: NALSA) राज्य और जिला स्तर के विधिक प्राधिकरणों के साथ सहयोग करके 2022 की मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करेगा। साथ ही, मानक संचालन प्रक्रिया को समय-समय पर अपग्रेड भी किया जाएगा।
  • कैदी विधिक सहायता क्लीनिकों (Prisoner Legal Aid Clinics: PLACs) की निगरानी संबंधी अधिकारों में वृद्धि करना: विधिक सेवा प्राधिकरण PLACs के कार्यों की समय-समय पर समीक्षा करेंगे।
  • डेटा-आधारित सुधार: विधिक सेवा प्राधिकरणों को कानूनी सहायता सेवाओं से संबंधित सांख्यिकीय डेटा को नियमित रूप से अपडेट करना होगा और डेटा विश्लेषण के आधार पर पहचानी गई कमियों को दूर करना होगा।
  • लीगल एड डिफ़ेंस काउंसिल यानी विधिक सहायता बचाव वकील: लीगल एड डिफ़ेंस काउंसिल के द्वारा किए गए कार्यों का नियमित निरीक्षण और ऑडिट किया जाएगा।
  • जागरूकता पैदा करना: उपलब्ध विधिक सहायता योजनाओं के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए स्थानीय भाषाओं में प्रचार सामग्रियों और प्रचार के प्रभावी तरीकों का उपयोग किया जाएगा।
  • प्रभावी संचार: विधिक सेवा प्राधिकरणों को कैदियों, जेल का दौरा करने वाले वकीलों (Jail Visiting Lawyers: JVLs) और पैरालीगल वालंटियर्स (PLVs) के साथ नियमित रूप से संवाद करना होगा।
    • सभी हाई कोर्ट को संबंधित राज्य में उपलब्ध विधिक सहायता सुविधाओं के बारे में अपनी वेबसाइट पर जानकारी प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया है।
  • नियमित रिपोर्टिंग: जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों (DLSAs) को राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों (SLSAs) के समक्ष और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के समक्ष नियमित तौर पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। इस प्रक्रिया को डिजिटल रूप में किया जा सकता है, ताकि इसे सुलभ बनाया जा सके।

भारत में निःशुल्क कानूनी या विधिक सहायता के बारे में

  • भारत में विधिक सहायता से तात्पर्य ऐसे व्यक्तियों को निःशुल्क कानूनी सेवाएं प्रदान करने से है, जो कानूनी प्रतिनिधित्व या न्याय प्रणाली तक पहुंच का खर्च वहन करने में असमर्थ हैं।
  • विधिक सहायता में कानूनी सलाह, अदालती कार्यवाही में प्रतिनिधित्व, मध्यस्थता, वार्ता और वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र आदि शामिल होते हैं।
  • विधिक सहायता के लिए संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 21: इसमें प्रावधान किया गया है कि विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है अन्यथा नहीं।
    • अनुच्छेद 39-A: यह अनुच्छेद राज्य को नि:शुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराने का निर्देश देता है, ताकि कोई भी नागरिक आर्थिक या अन्य अभाव के कारण न्याय प्राप्त करने से वंचित न रहे। इसे 42वें संविधान संशोधन अधिनियम (1976) के द्वारा संविधान में जोड़ा गया था।
  • वैधानिक प्रावधान:
    • विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987: यह अधिनियम 1995 में लागू हुआ था। इसका उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को नि:शुल्क और उचित कानूनी सेवाएं प्रदान करने के लिए विधिक सेवा प्राधिकरणों की स्थापना करना है। इस अधिनियम में निम्नलिखित संस्थाओं के गठन का प्रावधान किया गया है:
      • राष्ट्रीय, राज्य, जिला और तालुका स्तर पर विधिक सेवा प्राधिकरण; तथा 
      • सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, जिला न्यायालयों और तालुका न्यायालयों में विधिक सेवा समितियां।
    • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 341: इसमें कुछ मामलों में जहां अभियुक्त के पास विधिक सहायता के लिए साधन नहीं हैं, वहां राज्य के खर्च पर अभियुक्त को कानूनी सहायता प्रदान करने का प्रावधान है।

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के बारे में 

  • यह विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है। इसका उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को निःशुल्क और उचित विधिक सेवाएं प्रदान करना है।
  • कार्य:
    • राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों के लिए नीतियां, सिद्धांत व दिशा-निर्देश तैयार करना और प्रभावी योजनाएं बनाना, ताकि वे पूरे देश में विधिक सेवा कार्यक्रमों को लागू कर सकें;
    • कानूनी सहायता कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की निगरानी और मूल्यांकन करना;
    • विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए लोक अदालतों का आयोजन करना; आदि।
  • विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत कानूनी सहायता के लिए पात्र व्यक्ति:
    • महिलाएं एवं बच्चे;
    • अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्य;
    • औद्योगिक कामगार;
    • सामूहिक आपदा, नृजातीय हिंसा, जातिगत उत्पीड़न, बाढ़, सूखा, भूकंप या औद्योगिक आपदा के शिकार लोग;
    • दिव्यांगजन;
    • संरक्षण गृह या किशोर गृह में हिरासत में रखे गए व्यक्ति, मनोरोग अस्पताल में भर्ती व्यक्ति।
    • वे व्यक्ति जिनकी वार्षिक आय 1 लाख रुपये से अधिक नहीं है (विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत राज्य सरकार उच्चतर सीमा निर्धारित कर सकती है।) 
      • सुप्रीम कोर्ट विधिक सेवा समिति में यह सीमा 5,00,000 रुपये है।
    • मानव तस्करी या भिक्षावृत्ति के शिकार व्यक्ति। 

 

 

निःशुल्क विधिक सहायता का महत्त्व

  • सामाजिक कल्याण और न्याय को सुनिश्चित करना: यह समाज में व्याप्त असमानताओं को दूर करके और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को भेदभावपूर्ण व्यवहार का विरोध करने के लिए सशक्त बनाकर सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है।
    • यह कानून द्वारा गारंटी स्वरुप दिए गए अधिकारों और लोगों के इन अधिकारों का उपयोग करने की क्षमता के बीच मौजूद अंतर को कम करने में मदद करता है।
  • अधिकारों की सुरक्षा करना: निःशुल्क विधिक सहायता, मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करने व उन्हें बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसमें निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, कानून के समक्ष समानता का अधिकार, कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार और अदालतों तक पहुंच का अधिकार शामिल है।
  • कानून के शासन को मजबूत करना: विधिक सहायता कानूनी मानदंडों और प्रक्रियाओं के पालन को बढ़ावा देती है। इससे न्याय प्रणाली में जनता का विश्वास बढ़ता है।
  • कानून संबंधी जागरूकता को बढ़ाना: विधिक सहायता न केवल लोगों को कानूनी प्रतिनिधित्व प्रदान करती है बल्कि उन्हें उनके कानूनी अधिकारों के बारे में भी जागरूक करती है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • "दिशा/ DISHA (Design Innovative Solutions for Holistic Accsee/ भारत में न्याय तक समग्र पहुंच के लिए नवीन समाधान डिजाइन करना)": इस योजना का उद्देश्य क़ानूनी मुकदमे से पहले विवाद निवारण तंत्र को मजबूत करना है।
  • टेली-लॉ: यह योजना विशेषज्ञ वकीलों के पैनल के माध्यम से कानूनी सलाह की उपलब्धता को सुगम बनाती है। यह पैनल राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) के अंतर्गत होता है।
  • न्याय बंधु (प्रो बोनो कानूनी सेवाएं) कार्यक्रम: यह प्रो बोनो एडवोकेट्स (जनता के कल्याण से जुड़े वकील) और पंजीकृत लाभार्थियों के बीच जुड़ाव की सुविधा प्रदान करता है। इस कार्यक्रम के माध्यम से इच्छुक वकील स्वयं का पंजीकरण करा सकते हैं, ताकि वे समाज के कमजोर वर्गों को नि:शुल्क विधिक सेवाएं प्रदान कर सकें।
  • न्याय मित्र कार्यक्रम: यह कार्यक्रम हाई कोर्ट और अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित 10 से 15 वर्ष पुराने मामलों (सिविल व क्रिमिनल, दोनों प्रकार के मामलों) के निपटान को सुगम बनाता है।
  • लोक अदालत: यह वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्रों में से एक है। इसमें न्यायालयों में लंबित या मुकदमा-पूर्व मामलों को सौहार्दपूर्ण तरीके से निपटाया/ समझौता किया जाता है।
    • लोक अदालत में मामला दायर करने पर कोई न्यायालय शुल्क नहीं लिया जाता है।

आगे की राह

  • नीतिगत कार्यान्वयन: निःशुल्क विधिक सहायता को प्रभावी बनाने के लिए सरकार को वित्तीय संसाधन बढ़ाने, पात्रता मानदंडों को आसान बनाने और अलग-अलग हितधारकों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • संस्थागत क्षमता को मजबूत करना: विधिक सेवा प्राधिकरणों की क्षमताओं का निर्माण करना, बुनियादी ढांचे और संसाधनों को बढ़ाना तथा निगरानी एवं मूल्यांकन तंत्र को मजबूत करना आवश्यक है।
  • जागरूकता पैदा करना: उदाहरण के लिए- 2022 में "हक हमारा भी तो है@75" अभियान का आयोजन किया गया था। इसका उद्देश्य जेलों में बंद कैदियों और बाल देखभाल संस्थानों में बच्चों को बुनियादी विधिक सहायता प्रदान करना था।
  • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: विधिक सहायता सेवाओं की पहुंच और दक्षता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी आधारित समाधान विकसित किया जाना चाहिए।
    • जेल रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण: जेल के रिकॉर्ड को डिजिटल रूप में उपलब्ध कराया जा सकता है, ताकि न्यायालयों द्वारा प्रभावी तरीके से कानूनी सहायता प्रदान करने में आसानी हो।
  • गुणवत्तापूर्ण कानूनी सहायता: बचाव पक्ष के वकीलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपने मुवक्किलों के हित में पूरी मेहनत और लगन से काम करें {रामानंद @ नंदलाल भारती बनाम उत्तर प्रदेश राज्य वाद (2022)}।

संबंधित सुर्ख़ियां: सारथी 1.0 (SARTHIE 1.0)

सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग (DoSJE) तथा राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) ने सारथी 1.0 लॉन्च किया है।

  • उद्देश्य: जागरूकता सृजन, कानूनी सहायता तथा कल्याणकारी योजनाओं तक प्रभावी पहुंच को बढ़ावा देकर वंचित समुदायों (जैसे कि अनुसूचित जाति, ट्रांसजेंडर, विमुक्त व घुमंतू जनजातियां आदि) को सशक्त बनाना।
    • सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने के लिए कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच तालमेल बनाना। 
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