सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति (Cabinet Committee on Security: CCS) ने असैन्य (Civilian) और सैन्य उपयोगों के लिए स्थलीय एवं समुद्री क्षेत्र संबंधी जागरूकता हेतु अंतरिक्ष आधारित निगरानी (SBS) परियोजना के तीसरे चरण को मंजूरी दी है।
अन्य संबंधित तथ्य
- अंतरिक्ष आधारित निगरानी परियोजना के तीसरे चरण (SBS-3) के तहत निगरानी के लिए निम्न भू-कक्षा (Low Earth Orbit: LEO) और भू-स्थिर कक्षा (Geostationary Orbit: GEO) में 52 उपग्रहों को स्थापित किया जाएगा।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से लैस उपग्रहों का यह नया समूह पृथ्वी की अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित किया जाएगा। साथ ही, ये उपग्रह जियो-इंटेलिजेंस एकत्रित करने के लिए अंतरिक्ष में एक-दूसरे के साथ इंटरैक्ट करने में भी सक्षम होंगे।
- जब पृथ्वी से 36,000 कि.मी. की ऊंचाई पर GEO में स्थित उपग्रह किसी ऑब्जेक्ट को डिटेक्ट करता है, तो वह पृथ्वी से 400-600 कि.मी. की ऊंचाई पर LEO में स्थित उपग्रह से उस ऑब्जेक्ट को नजदीक से अवलोकन करने का निर्देश दे सकता है। इससे उस ऑब्जेक्ट के बारे में अधिक विस्तृत और सटीक जानकारी मिल सकती है।
- इससे पहले, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने SBS-3 मिशन की निगरानी क्षमता बढ़ाने के लिए अमेरिका स्थित जनरल एटॉमिक्स से 31 हथियारों से लैस प्रीडेटर ड्रोन खरीदने को भी मंजूरी दी थी।
भारत की SBS परियोजनाएं | ||
SBS-1 (2001 में स्वीकृत) | SBS-2 (2013 में स्वीकृत) | SBS-3 |
बुनियादी निगरानी क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया। | विशेष रूप से समुद्री क्षेत्र के संबंध में और बेहतर जागरूकता के लिए उन्नत निगरानी क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया। | व्यापक कवरेज के लिए LEO और GEO दोनों कक्षाओं में मौजूद उपग्रहों का उपयोग करने का प्रस्ताव। |
इसमें 4 निगरानी उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया था: कार्टोसैट (Cartosat)-2A, कार्टोसैट (Cartosat)-2B, रिसैट (RISAT)-2, और इरोस (Eros)-B | इसमें 6 अतिरिक्त निगरानी उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया था: कार्टोसैट-2C, कार्टोसैट-2D, माइक्रोसैट-1, रिसैट-2A, आदि | तीनों सेनाओं के पास स्थल, समुद्र और हवाई मिशनों के लिए समर्पित उपग्रह होंगे। |
अंतरिक्ष-आधारित निगरानी (SBS) के बारे में
- इसके तहत अंतरिक्ष में और पृथ्वी पर अलग-अलग ऑब्जेक्ट्स एवं गतिविधियों पर निगरानी रखने तथा डेटा को एकत्रित करने के लिए उपग्रहों और अंतरिक्ष आधारित अन्य परिसंपत्तियों का उपयोग करना शामिल है।
- SBS सिस्टम का उपयोग मुख्य रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता, पर्यावरण संबंधी निगरानी और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए डेटा एकत्र करने के लिए किया जाता है।
- अमेरिका, रूस, चीन और भारत सहित अंतरिक्ष में पहुँचने वाले प्रमुख देश अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए SBS में सक्रिय रूप से निवेश कर रहे हैं।
- अमेरिका के पास दुनिया का सबसे बड़ा अंतरिक्ष-आधारित निगरानी तंत्र है। इसमें स्पेस-बेस्ड इंफ्रारेड सिस्टम (SBIRS) और नेक्स्ट-जेनरेशन ओवरहेड पर्सिस्टेंट इन्फ्रारेड (Next-Gen OPIR) जैसे अत्याधुनिक उपग्रह शामिल हैं। ये उपग्रह मिसाइलों की पहचान करने और उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।
अंतरिक्ष आधारित निगरानी (SBS) का महत्त्व
- राष्ट्रीय सुरक्षा और डिफेंस: इससे मिसाइल के प्रक्षेपण, सैन्य गतिविधियों और उपग्रह की कक्षा में अनधिकृत बदलाव जैसे संभावित खतरों का पता लगाने, उनकी ट्रैकिंग और निगरानी करने में मदद मिलती है।
- उदाहरण के लिए- भारत का EMISAT उपग्रह सिग्नलों को इंटरसेप्ट कर इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस प्रदान करता है।
- अंतरिक्ष में ट्रैफिक प्रबंधन और टकराव से बचाव: इसरो की नेत्र/ NETRA (नेटवर्क फॉर स्पेस ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग एंड एनालिसिस) पहल का उद्देश्य अंतरिक्ष मलबे को ट्रैक करना और अंतरिक्ष में भारत की परिसंपत्तियों की सुरक्षा के लिए अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता प्रदान करना है।
- अंतरिक्ष आधारित परिसंपत्तियों की सुरक्षा: भारत ने 2019 में मिशन शक्ति के तहत अंतरिक्ष में अपने एंटी-सैटेलाइट (ASAT) मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। इससे भारत ने अंतरिक्ष आधारित अपनी परिसंपत्तियों की सुरक्षा और बचाव करने की क्षमता का प्रदर्शन भी किया। साथ ही, इसने अंतरिक्ष आधारित खतरों पर नज़र रखने के लिए निगरानी की आवश्यकता को भी उजागर किया।
- पर्यावरण संबंधी निगरानी और आपदा संबंधी कार्रवाई: प्राकृतिक आपदाओं, जलवायु परिवर्तन और वनों की कटाई, ग्लेशियरों के पिघलने एवं महासागरों की स्थिति जैसे पर्यावरणीय बदलावों की रियल टाइम निगरानी के लिए SBS महत्वपूर्ण है।
- भारत द्वारा उपयोग किए जाने वाले कार्टोसैट उपग्रह इसका प्रमुख उदाहरण है।
- वैज्ञानिक अनुसंधान और डेटा संग्रह: SBS की मदद से ब्रह्मांडीय घटनाओं (जैसे- सोलर फ्लेयर्स, क्षुद्रग्रह और स्पेस वेदर) और पृथ्वी के अवलोकन से संबंधित डेटा का संग्रह संभव हो जाता है।

अंतरिक्ष-आधारित निगरानी (SBS) से जुड़ी चिंताएं
- दोहरे उपयोग वाली तकनीक: इरादों में अस्पष्टता एवं विनियामकीय अनुपालन के सत्यापन से जुड़ी हुई कठिनाइयों के कारण अंतरिक्ष आधारित निगरानी तकनीकों का इस्तेमाल शांतिपूर्ण एवं सैन्य, दोनों उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
- अंतरिक्ष के सैन्यीकरण और हथियारों की दौड़ की संभावना: अंतरिक्ष में बढ़ती सैन्य रुचि ने हथियारों की दौड़ से जुड़ी चिंता को बढ़ा दिया है, क्योंकि अलग-अलग राष्ट्र अंतरिक्ष में रणनीतिक बढ़त हासिल करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिए, वर्ष 2019 में अमेरिका ने स्पेस फोर्स की स्थापना की और रूस ने 2015 में एयरोस्पेस फोर्स का गठन किया था। दोनों देशों का उद्देश्य अंतरिक्ष में अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाना है।
- निजता का उल्लंघन: हाई-रिज़ॉल्यूशन वाले उपग्रह संभावित रूप से पृथ्वी पर आम जन की गतिविधियों की निगरानी कर सकते हैं, जिससे किसी की निजता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में चिंताएं बढ़ जाती हैं।
- कानूनी और विनियामकीय अंतराल: अंतरिक्ष के उपयोग से संबंधित आधारभूत संधियाँ, जैसे- बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967) अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग को अनिवार्य करती हैं। इन संधियों में अंतरिक्ष से निगरानी एवं अंतरिक्ष का आधुनिक सैन्य उपयोगों से संबंधित विषयों का अभाव है।
- अंतर्राष्ट्रीय तनाव: अनधिकृत निगरानी से देशों के बीच कूटनीतिक तनाव बढ़ सकता है और जासूसी के आरोप भी लग सकते हैं।
- उदाहरण के लिए- 2023 में, अमेरिकी क्षेत्र में जासूसी करने वाले चीन के गुब्बारे का पता चलने से दोनों देशों के मध्य कूटनीतिक तनाव पैदा हो गया था, जो अंतर्राष्ट्रीय निगरानी से पैदा होने वाले संघर्षों के जोखिमों को दर्शाता है।
- अंतरिक्ष मलबा और टकराव: पृथ्वी की कक्षा में उपग्रहों की बढ़ती संख्या से अंतरिक्ष मलबे या अन्य कार्यशील उपग्रहों के बीच टकराव का खतरा बढ़ जाता है।

निष्कर्ष
अंतरिक्ष-आधारित निगरानी एक शक्तिशाली साधन है जिसमें पृथ्वी के बारे में हमारी समझ को नया रूप देने, आपदा संबंधी कार्रवाई को और बेहतर बनाने तथा वैज्ञानिक सहयोग को बढ़ावा देने की क्षमता है। जैसे-जैसे हम उपग्रह प्रौद्योगिकी पर बढ़ती निर्भरता के युग में कदम रख रहे हैं, वैसे-वैसे इन तकनीकों के दुरुपयोग को रोकना एवं जिम्मेदार नवाचार को बढ़ावा देना भी आवश्यक हो गया है। अंतरिक्ष को साझा प्रगति और स्थिरता का क्षेत्र सुनिश्चित करने हेतु वैश्विक समुदाय को एक पारदर्शी और न्यायसंगत फ्रेमवर्क तैयार करना चाहिए।