भारत में दवा की गुणवत्ता (Drug Quality in India) | Current Affairs | Vision IAS
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भारत में दवा की गुणवत्ता (Drug Quality in India)

Posted 30 Nov 2024

33 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation: CDSCO) ने 49 दवाओं के नमूने 'मानक गुणवत्ता के अनुरूप नहीं' पाए जाने के बाद विनिर्माताओं को अपने उत्पाद बाजार से वापस लेने का निर्देश दिया है।

अन्य संबंधित तथ्य

  • गुणवत्ता परीक्षण में असफल रहे दवाओं के नमूनों में मेट्रोनिडाजोल टैबलेट (संक्रमण के उपचार के लिए), ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन, मेटफॉर्मिन हाइड्रोक्लोराइड (रक्त शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए), डिक्लोफेनाक सोडियम टैबलेट (दर्द निवारक) आदि शामिल हैं।
  • हर महीने, बिक्री/ डिस्ट्रीब्यूशन लोकेशन से दवाओं के नमूने लिए जाते हैं, उनका विश्लेषण किया जाता है और ऐसी दवाइयों की सूची बनाई जाती है जो नकली तथा 'मानक गुणवत्ता के अनुरूप नहीं' (Not of Standard Quality: NSQ) हैं। इसके पश्चात इन दवाइयों की सूची को CDSCO पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाता है।

भारत में दवाओं या औषधियों का विनियमन

  • CDSCO: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन फार्मास्युटिकल क्षेत्रक के लिए प्राथमिक विनियामक निकाय है।
    • यह औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम (Drugs and Cosmetics Act), 1940 और औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम (Drugs and Cosmetics Rules), 1945 के प्रावधानों के तहत देश में औषधियों, चिकित्सा उपकरणों और प्रसाधन सामग्री की गुणवत्ता, सुरक्षा एवं प्रभावकारिता को विनियमित करता है।
  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम (DCA), 1940: यह औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के साथ भारत में औषधियों के आयात, विनिर्माण, बिक्री एवं वितरण को विनियमित करता है।
    • विनियामक नियंत्रण राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरणों द्वारा लाइसेंसिंग और निरीक्षण की प्रणाली के माध्यम से किया जाता है। 
  • राज्य औषधि विनियामक प्राधिकरण (State Drug Regulatory Authorities: SDRAs): यह दवा विनिर्माण प्रतिष्ठानों को लाइसेंस देने, नकली दवाओं की बिक्री पर निगरानी रखने, मुकदमा चलाने और आपत्तिजनक विज्ञापनों की निगरानी के लिए जिम्मेदार है।
  • सांविधिक निकाय: DCA, 1940 में निम्नलिखित की स्थापना का प्रावधान है:
    • औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड (Drugs Technical Advisory Board: DTAB): यह विनियमन के कार्यान्वयन से उत्पन्न तकनीकी मुद्दों पर केंद्र सरकार को मार्गदर्शन और सलाह देता है।
    • औषधि परामर्शदात्री समिति (Drugs Consultative Committee: DCC): यह एक सलाहकार समिति है, जो DCA के प्रशासन में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए किसी भी मामले पर केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और DTAB को सलाह देती है।
    • केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला (Central Drugs Laboratory: CDL): यह औषधि और प्रसाधन सामग्री के गुणवत्ता नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय वैधानिक प्रयोगशाला है।

भारत में दवा की गुणवत्ता से संबंधित मुद्दे

  • अकुशल प्रवर्तन: किसी एकल एजेंसी के अभाव में केंद्र और राज्यों के बीच विनियामक जिम्मेदारियों के विभाजन ने समन्वय की कमी पैदा की है, जिससे प्रभावशीलता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
  • राज्य स्तरीय प्राधिकरणों (SLAs) के समक्ष चुनौतियां: SLAs को अपर्याप्त परीक्षण प्रयोगशालाओं, औषधि निरीक्षकों की कमी, नियमों की खराब समझ, अपर्याप्त निगरानी और उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कानूनी विशेषज्ञता की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • मानकों का पालन न करना: 2023 में, 10,500 विनिर्माण इकाइयों में से केवल 2,000 ही विश्व स्वास्थ्य संगठन- गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेस (GMP) मानकों के अनुरूप पाई गईं।
    • एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इंग्रीडिएंट (API) का बड़ा हिस्सा चीन, ताइवान तथा अन्य देशों से आयात किया जाता है, जिसके लिए प्रभावी गुणवत्ता निगरानी की आवश्यकता होती है।
  • वित्तीय आवंटन: SDRAs और CDSCO वित्तीय रूप से सरकारी वित्त-पोषण पर निर्भर हैं, और उन्हें वित्तीय आवंटन के लिए अनुमोदन की जटिल प्रणाली से गुजरना पड़ता है। 
  • सूचना संबंधी विषमता: इस समस्या का प्रमुख कारण विनियमन चरणों के पूरा होने के लिए समय-सीमा का उल्लेख न होना, केंद्रीकृत रिकॉर्ड रखने का अभाव, विनिर्माताओं के राष्ट्रीय डेटाबेस का अभाव तथा कानून के कार्यान्वयन में असमानता आदि है। 
  • फार्माकोविजिलेंस की सीमित पहुंच: मरीजों के साथ-साथ चिकित्सा संबंधी पेशेवरों के बीच भारतीय फार्माकोविजिलेंस कार्यक्रम की पहुंच सीमित है। साथ ही, प्रतिकूल दवा रिपोर्ट के बाद उठाए गए कदमों के बारे में भी बहुत कम या कोई जानकारी नहीं है।
  • डेटा की विश्वसनीयता: भारत में बायोअवेलेबिलिटी (नई दवा के शरीर में प्रभाव को समझने के लिए) और बायोइक्विवलेंस (मूल दवा और बाजार में लाई जाने वाली दवा के प्रदर्शन की तुलना के लिए) अध्ययनों में भारतीय  विनिर्माताओं में डेटा की विश्वसनीयता से जुड़ी समस्याएं पाई गई हैं।

दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदम

  • 'राज्यों की औषधि विनियामक प्रणाली को मजबूत बनाना (SSDRS): यह एक केन्द्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य राज्यों में प्रयोगशाला अवसंरचना को सक्षम बनाना तथा मौजूदा राज्य औषधि नियंत्रक कार्यालयों को उन्नत बनाना है।
  • DCA 1940 में संशोधन: औषधि एवं प्रसाधन सामग्री (संशोधन) अधिनियम, 2008 में नकली और मिलावटी दवाओं के विनिर्माण के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया है तथा कुछ अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती बनाया गया है।
  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 में संशोधन: इसके तहत विनिर्माण लाइसेंस प्रदान करने से पहले केन्द्रीय एवं राज्य औषधि निरीक्षकों द्वारा दवा विनिर्माण प्रतिष्ठान का निरीक्षण अनिवार्य बनाया गया है।
    • WHO- GMP मानकों को एकीकृत करने के लिए नियमों की अनुसूची M को संशोधित किया गया है।
  • संशोधित औषधि प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना पुनर्गठन (Revamping Pharmaceuticals Technology Upgradation Assistance Scheme: PTUAS): पहले यह योजना केवल MSMEs के लिए थी, लेकिन अब 500 करोड़ रुपये से कम टर्नओवर वाली किसी भी औषधि विनिर्माण इकाई को इस योजना का लाभ उठाने का अवसर मिलेगा। इसका उद्देश्य छोटे और मध्यम स्तर की औषधि कंपनियों को प्रौद्योगिकी और गुणवत्ता सुधार के लिए प्रोत्साहित करना है।
  • विशेष न्यायालय: राज्यों/ संघ राज्य क्षेत्रों ने DCA के अंतर्गत अपराधों के त्वरित निपटान के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की है। 

आगे की राह 

  • एकरूपता: CDSCO में शक्तियों के अधिक केंद्रीकरण से देश भर में एक समान औषधि विनियामक मानकों को सुनिश्चित करना तथा DCC की विस्तारित भूमिका के माध्यम से CDSCO के साथ प्रभावी रूप से साझेदारी करने के लिए SDRAs को सशक्त बनाना चाहिए। 
  • विनियमन को मजबूत बनाना: विनिर्माण लाइसेंस प्रदान करने, निरीक्षण, सैंपलिंग और परीक्षण (समग्र दवा गुणवत्ता) जैसे पहलुओं पर प्राथमिकताएं तय करने और विनियामक संसाधनों में निवेश करने की आवश्यकता है।
  • वित्त-पोषण: औषधि विनियामक प्राधिकरणों के प्रभावी कामकाज के लिए राजस्व उत्पन्न करने और संवितरण  में वित्तीय स्वायत्तता से वित्तीय आवंटन की जटिल और लंबी स्वीकृति प्रक्रिया से होने वाली देरी को दूर किया जा जाना चाहिए। 
  • डिजिटल तकनीकों का उपयोग करके मरीजों की सुरक्षा निगरानी और फार्माकोविजिलेंस को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण सुधार किया जा सकता है।
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