सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, केरल में बाढ़-प्रवण पेरियार और चालाकुडी नदी घाटियों में बाढ़ के पूर्वानुमान के लिए हाइपरलोकल डेटा एकत्र करने वाली एक नई प्रणाली CoS-it-FloWS का शुभारंभ किया गया।
CoS-it-FloWS के बारे में
- कम्युनिटी-सोर्सड इम्पैक्ट-बेस्ड फ्लड फोरकास्ट एंड अर्ली वार्निंग सिस्टम (CoS-it-FloWS) नामक यह परियोजना कोच्चि स्थित इक्विनोक्ट द्वारा संचालित है। इक्विनोक्ट एक कम्युनिटी-सोर्सड मॉडलिंग सॉल्यूशन प्रोवाइडर है, जो बाढ़ पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी के लिए एक समुदाय-आधारित मॉडलिंग समाधान प्रदान करता है।
- इसे यूनिसेफ के क्लाइमेट टेक कोहॉर्ट द्वारा मान्यता प्राप्त है। इसके तहत एर्नाकुलम, इडुक्की और त्रिशूर में स्थापित 100 वर्षामापी यंत्रों का उपयोग किया जाता है।
- इसमें मुख्य रूप से स्टूडेंट्स, महिलाओं और युवाओं द्वारा घरेलू स्तर पर वर्षा, नदी, ज्वारीय और भूजल स्तरों के आंकड़े एकत्र किए जाते हैं। इसके बाद उन आंकड़ों को इनसाइट गैदर (Insight Gather) नामक एक वेब पोर्टल के माध्यम से विश्लेषित और प्रदर्शित किया जाता है। इस पोर्टल को पायलट बेसिन क्षेत्रों में प्रभाव-आधारित पूर्वानुमान प्रस्तुत करने के लिए बनाया गया है।
- इसका उद्देश्य सरकारी आंकड़ों में मौजूद खामियों को दूर करना तथा प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए अति-स्थानीय या हाइपरलोकल आंकड़े एकत्र करके अधिक सामुदायिक भागीदारी के साथ परियोजना को आगे बढ़ाना है।
हाइपरलोकल (अति-स्थानीय यानी बहुत छोटा भौगोलिक क्षेत्र) मौसम पूर्वानुमान के बारे में
- परिभाषा: हाइपरलोकल मौसम पूर्वानुमान के तहत बहुत छोटे क्षेत्रों के मौसम की स्थिति का पूर्वानुमान किया जाता है।
- वर्तमान पूर्वानुमान स्तर: वर्तमान में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) जिला स्तर के लिए मौसम पूर्वानुमान जारी करता है ।
- राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान केंद्र (National Weather Forecasting Centre: NWFC) देश भर में सबडिविजनल स्तर पर मौसम का पूर्वानुमान और चेतावनी जारी करता है।
- राज्य मौसम पूर्वानुमान केंद्र (State Weather Forecasting Centre: SWFC) संबंधित राज्य के लिए जिला स्तर पर पूर्वानुमान और चेतावनी जारी करता है।
- हाइपरलोकल पूर्वानुमान की आवश्यकता क्यों है: भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में मौसम बहुत तेजी से बदलता रहता है। इसलिए, सही और उपयोगी जानकारी के लिए हाइपरलोकल मौसम पूर्वानुमान जरूरी है।

हाइपरलोकल मौसम पूर्वानुमान के समक्ष प्रमुख चुनौतियां
- पुराने पूर्वानुमान मॉडल: वर्तमान में, इस्तेमाल होने वाले अधिकांश पूर्वानुमान संबंधी सॉफ्टवेयर वैश्विक पूर्वानुमान प्रणाली (Global Forecasting System: GFS) और मौसम अनुसंधान एवं पूर्वानुमान (Weather Research and Forecasting: WRF) मॉडल पर आधारित हैं। ये दोनों सबसे आधुनिक मॉडल नहीं हैं।
- मौसम निगरानी ग्राउंड स्टेशनों की कमी: वर्तमान में, IMD द्वारा लगभग 800 स्वचालित मौसम स्टेशन (Automatic Weather Stations: AWS), 1,500 स्वचालित वर्षा गेज (Automatic Rain Gauges: ARG) और 37 डॉपलर मौसम रडार (Doppler Weather Radars: DWR) संचालित किए जाते हैं।
- यह 3,00,000 से अधिक ग्राउंड स्टेशनों (AWS/ARG) और लगभग 70 DWRs की कुल आवश्यकताओं से काफी कम है।
- ग्राउंड स्टेशनों से प्राप्त डेटा का अकुशल उपयोग: राज्य सरकारें और निजी कंपनियां 20,000 से अधिक ग्राउंड स्टेशनों का संचालन करती हैं। हालांकि, डेटा-साझाकरण और विश्वसनीयता संबंधी समस्याओं के कारण इनमें से अधिकांश डेटा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के लिए उपलब्ध नहीं हैं।
- छोटे पैमाने की घटनाओं का पूर्वानुमान करना कठिन: मानसून या चक्रवात जैसी बड़ी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना आसान है। हालांकि, बादल फटने जैसी अकस्मात, स्थानीयकृत या छोटे क्षेत्र में घटित होने वाली घटनाओं की अनिश्चित और डायनेमिक प्रकृति के कारण पूर्वानुमान करना चुनौतीपूर्ण होता है।
- जलवायु की बढ़ती अस्थिरता के चलते मौसम प्रणाली में तेज और लगातार बदलाव हो रहे हैं। इस वजह से पूर्वानुमान करना और ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है।
हाइपरलोकल मौसम पूर्वानुमान को सुगम बनाने के लिए उठाए गए प्रमुख कदम
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निष्कर्ष
हाइपरलोकल मौसम पूर्वानुमान को बढ़ाने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसमें एडवांस्ड मॉडल से लेकर वर्तमान तकनीक को अपग्रेड करना, निगरानी नेटवर्क का विस्तार करना, डेटा-शेयरिंग को बढ़ावा देना और बेहतर रियल टाइम डेटा सिस्टम विकसित करना शामिल है। इन समस्याओं का हल करके, भारत स्थानीय घटनाओं के पूर्वानुमान के लिए सटीकता में सुधार कर सकता है और चरम मौसम से निपटने के लिए बेहतर तरीके से तैयारी कर सकता है।