दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण से निपटने के लिए पहली बार क्लाउड सीडिंग तकनीक का उपयोग करके कृत्रिम वर्षा कराने जा रही है। इस वैज्ञानिक पहल का नेतृत्व IIT कानपुर कर रहा है। इस तकनीक के तहत विशेष रूप से तैयार विमानों की मदद से क्लाउड सीडिंग की जाएगी।
कृत्रिम वर्षा क्या है?

- कृत्रिम वर्षा (Artificial rain) को क्लाउड सीडिंग भी कहा जाता है। यह वास्तव में प्राकृतिक मौसम में वैज्ञानिक तकनीकों के उपयोग से कृत्रिम संशोधन है। इस संशोधन का उद्देश्य बादलों की वर्षा कराने की क्षमता को बढ़ाना यानी कृत्रिम वर्षा उत्पन्न करना है।
- प्रक्रिया: इस तकनीक में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड और शुष्क बर्फ (ड्राई आइस) जैसे रसायनों का हवाई जहाज व हेलीकॉप्टर की मदद से आकाश में छिड़काव किया जाता है।
- ये रसायन जलवाष्प को आकर्षित करते हैं और वर्षा के लिए केन्द्रक (nuclei) का कार्य करते हैं। इससे वर्षा वाले बादलों के निर्माण में मदद मिलती है।
- क्लाउड सीडिंग के प्रकार:
- हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग: यह तकनीक तरल बादलों में जल की बूंदों के आपस में जुड़ने की प्रक्रिया को तेज करती है। इससे जल की बूंदे भारी होकर जमीन पर वर्षा के रूप में गिरती हैं।
- ग्लेशियोजेनिक क्लाउड सीडिंग: यह तकनीक सुपरकूल्ड (अत्यधिक ठंडे) बादलों में बर्फ के कण बनाने को उत्प्रेरित करती है।

आगे की राह
क्लाउड सीडिंग जल की कमी और कृषि कार्य में सहायता का एक पूरक समाधान है। हालांकि, इसका उपयोग पर्याप्त वैज्ञानिक अनुसंधान के बाद तथा पर्यावरण को सुरक्षित रखने के उपायों और स्पष्ट दिशा-निर्देशों के तहत किया चाहिए।