नियमों का उद्देश्य कृषि वानिकी प्रक्रियाओं को सरल बनाना तथा किसानों को बिना किसी बाधा के खेती के साथ वृक्षारोपण के समेकन के लिए प्रोत्साहित करना है।
मुख्य नियमों पर एक नजर
- राज्य स्तरीय समिति (SLC): ‘काष्ठ आधारित उद्योग (स्थापना एवं विनियमन) दिशा-निर्देश, 2016’ के तहत तहत गठित मौजूदा SLC इन नियमों की देखरेख करेगी।
- यह समिति राज्य को कृषि वानिकी को बढ़ावा देने और वृक्षों की कटाई व परिवहन नियमों को आसान बनाकर लकड़ी के उत्पादन को बढ़ाने का सुझाव देगी।
- वृक्षारोपण क्षेत्र का पंजीकरण: आवेदक (कृषि भूमि के स्वामी) को भू-स्वामित्व विवरण के साथ राष्ट्रीय इमारती लकड़ी प्रबंधन प्रणाली में पंजीकरण कराना होगा।
- कटाई की अनुमति: अगर खेत में 10 से ज्यादा वृक्ष हैं, तो कटाई परमिट (फेलिंग परमिट) जारी किया जाएगा, लेकिन अगर खेत में 10 या उससे कम वृक्ष हैं, तो अनापत्ति प्रमाण-पत्र (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) दिया जाएगा।
कृषि वानिकी (एग्रोफॉरेस्ट्री) क्या है?
- परिभाषा: कृषि वानिकी में वृक्ष और फसलें एक ही जमीन पर साथ-साथ उगाई जाती हैं।
- प्रकार:
- एग्री सिल्वीकल्चर: फसलें + वृक्ष
- सिल्वोपास्चर: वृक्ष + पशुपालन
- एग्रोसिल्वोपास्चरल: वृक्ष + फसलें + चारागाह/ पशु
- भारत में कृषि वानिकी: यह भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 8.65% (28.42 मिलियन हेक्टेयर) क्षेत्र कवर करती है।
- सरकार के अनुसार, यदि किसी कृषि भूमि के 10% से अधिक हिस्से पर वृक्ष हैं, तो उसे कृषि वानिकी के अंतर्गत माना जाएगा।
लाभ
- पर्यावरणीय लाभ: यह वनों के बाहर वृक्षों की संख्या बढ़ाने और जमीन के संधारणीय उपयोग को बढ़ावा देती है। यह पेरिस समझौते के तहत भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (NDCs) के अनुरूप है।
- आर्थिक लाभ: यह फसलों की उत्पादकता बढ़ाकर, मृदा स्वास्थ्य में सुधार कर और जल का संरक्षण करके किसानों की आय दोगुनी करने में मदद करती है।
- सामाजिक लाभ: लगातार रोजगार और अधिक आय से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन स्तर में सुधार होता है।
कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई पहलें:
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