हाल ही में भारत के प्रधान मंत्री ने रेखांकित किया कि द्वितीय विश्व युद्ध (WWII) के बाद की विश्व-व्यवस्था तेजी से बदल रही है, जिसका मुख्य कारण ग्लोबल साउथ का उदय है।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक शक्ति संतुलन द्विध्रुवीय हो गया था, जिसमें शक्ति के प्रमुख केंद्र संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और पूर्व सोवियत संघ (USSR) थे।
- हालांकि, 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बना रहा। इससे एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था की शुरुआत हुई।
'ग्लोबल साउथ' क्या है?

- ‘ग्लोबल साउथ’ शब्दावली उन देशों के लिए प्रयुक्त की जाती है, जो प्रौद्योगिकी और सामाजिक विकास के मामले में कम विकसित माने जाते हैं। ये देश मुख्यतः दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित हैं। इसमें अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के देश शामिल हैं।
- ब्रांट रिपोर्ट (Brandt Report) में विश्व के देशों को ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इस वर्गीकरण के लिए देशों में प्रौद्योगिकी की प्रगति, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) जैसे मापदंडों को आधार बनाया गया था।
'ग्लोबल साउथ' का उदय विश्व व्यवस्था को कैसे नया आकार दे रहा है?
- आर्थिक संवृद्धि: संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास (पूर्ववर्ती UNCTAD) की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक व्यापार में 40% हिस्सेदारी ग्लोबल साउथ के देशों की है।
- चीन, भारत जैसे देशों की तीव्र आर्थिक संवृद्धि ने वैश्विक आर्थिक संरचना को बदल दिया है।
- वैकल्पिक संस्थानों को मजबूत करना: जैसे-न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) और ब्रिक्स आकस्मिक आरक्षित व्यवस्था (CRA) मजबूत बहुपक्षीय संस्था के रूप में उभर रही हैं।
- मुखर कूटनीति: जैसे- ग्लोबल साउथ के देशों के प्रयास से जलवायु परिवर्तन पर COP-27 सम्मेलन में ‘लॉस एंड डैमेज फंड’ की स्थापना की गई।
- ग्लोबल साउथ के देश संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संगठनों में सुधारों के लिए भी दबाव डाल रहे हैं। इसमें G77 समूह प्रमुख भूमिका निभा रहा है।
- जनसांख्यिकीय बल: ग्लोबल साउथ में दुनिया की अधिकांश आबादी रहती है, जिनमें कई राष्ट्र जनसांख्यिकीय लाभांश की स्थिति में हैं।
- अन्य: वाइब्रेंट साउथ-साउथ कोऑपरेशन जैसी पहलों के माध्यम से सहयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है, आदि।