ये नियम पुराने पेट्रोलियम रियायत नियम, 1949 तथा पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियम, 1959 का स्थान लेंगे। साथ ही, ये नियम ऑयल फील्ड्स (विनियमन और विकास) अधिनियम, 1948 के हालिया संशोधन के भी अनुरूप हैं।
मुख्य मसौदा नियमों पर एक नजर:

- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की निगरानी और रिपोर्टिंग के लिए विस्तृत आवश्यकताओं को पूरा करने की शुरुआत; कार्बन कैप्चर और भंडारण (CCS) के लिए एक विनियामक फ्रेमवर्क स्थापित करना; और न्यूनतम पांच वर्षों के लिए पोस्ट-क्लोजर निगरानी के साथ साइट बहाली कोष को अनिवार्य बनाना।
- एकीकृत नवीकरणीय और कम कार्बन उत्सर्जन करने वाली परियोजनाएं शुरू करना: ये नियम ऑपरेटर्स को तेल क्षेत्र ब्लॉक्स के भीतर सौर, पवन, हाइड्रोजन और भूतापीय ऊर्जा परियोजनाएं शुरू करने की अनुमति देते हैं।
- स्थिरीकरण खंड: इसे निवेशकों को भविष्य के कानूनी या वित्तीय परिवर्तनों (जैसे- करों में वृद्धि) के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिसमें मुआवजे या कटौती की अनुमति दी गई है।
- घोषणा: अवसंरचना के दोहराव को कम करने और लघु फर्मों को प्रोत्साहित करने के लिए पाइपलाइनों एवं अन्य सुविधाओं में कम उपयोग की गई क्षमता की घोषणा करना अनिवार्य है।
- एक समर्पित निर्णायक प्राधिकरण का निर्माण: यह अनुपालन संबंधी प्रावधानों को लागू करने, विवादों को हल करने और दंड लगाने के लिए अधिकृत होगा।
- डेटा गवर्नेंस: अन्वेषण और उत्पादन के दौरान उत्पन्न सभी परिचालन आंकड़े और भौतिक नमूने केंद्र सरकार के स्वामित्व में होंगे। पट्टेदार इस डेटा का आंतरिक रूप से उपयोग कर सकते हैं, लेकिन किसी भी निर्यात या बाहरी उपयोग के लिए सरकार की मंजूरी आवश्यक है।