यह रिपोर्ट नए पर्यावरणीय मुद्दों पर प्रकाश डालती है, इससे पहले कि वे वैश्विक या क्षेत्रीय संकट में परिवर्तित हो जाएं।
रिपोर्ट में उजागर किए गए मुख्य पर्यावरणीय मुद्दे
- गर्म होते क्रायोस्फीयर (हिमांक मंडल) में सूक्ष्मजीवों का फिर से सक्रिय होना: जलवायु के गर्म होने के कारण निष्क्रिय अवस्था में पड़े सूक्ष्मजीव पुनः सक्रिय हो सकते हैं। इससे ये सूक्ष्मजीव नए पर्यावरण में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे ऐसे क्षेत्रों में पहले से मौजूद सूक्ष्मजीवों के अस्तित्व पर नकारत्मक असर पड़ सकता है। इसके कारण रोगों का प्रसार हो सकता है। साथ ही, इससे जैव विविधता को भी नुकसान पहुंच सकता है, क्योंकि कुछ सूक्ष्मजीव बर्फ पिघलने के बाद जीवित नहीं रह पाएंगे।
- बर्फीले वातावरण में जीवित रहने वाले सूक्ष्मजीवों को साइक्रोफाइल्स कहा जाता है।
- नदियों के प्रवाह में अवरोध: नदियों के प्रवाह में मौजूद सभी अवरोध (जैसे- बांध, वेयर या कम ऊंचाई वाले बांध, बैराज, कलवर्ट, स्लूस आदि) नदी पारिस्थितिकी-तंत्र को प्रभावित करते हैं।
- इन अवरोधों के प्रभाव: इनके कारण जल के प्रवाह एवं तापमान, पर्यावास की गुणवत्ता और दशा, नदी के निचले मार्ग की ओर तलछट के परिवहन तथा मछलियों के प्रवास में बदलाव सहित देशज समुदाय का विस्थापन आदि देखने को मिल सकता है।
- रिपोर्ट में नदी की प्राकृतिक स्थिति को पुनः बहाल करने के लिए इन अवरोधों को हटाना एक बेहतर रणनीति के रूप में माना गया है।
- इन अवरोधों को हटाने से नदी का सतत प्रवाह सुनिश्चित होगा और नदी पारिस्थितिकी-तंत्रों के मध्य परस्पर संपर्क भी पुनः बहाल होगा। इन अवरोधों के कारण वैश्विक स्तर पर नदियों का 89% जल प्रभावित होता है।
- जनसांख्यिकीय चुनौती: जलवायु परिवर्तन के कारण हीट वेव, वायु प्रदूषण और बाढ़ जैसे पर्यावरणीय जोखिम बढ़ रहे हैं। ये जोखिम विशेष रूप से वृद्धजनों की बढ़ती आबादी के लिए खतरनाक हैं।
- बाढ़ की घटनाओं से पहले से मौजूद प्रदूषकों का पुनः फैलना: जल और तलछट में दीर्घकालिक प्रदूषक (भारी धातु, कार्बनिक यौगिक आदि) पादपों एवं प्राणियों में प्रवेश कर संचयित हो सकते हैं (जैव संचयन)। अतः बाद में प्रदूषकों की बढ़ी हुई सांद्रता (जैव आवर्धन) खाद्य श्रृंखलाओं को संदूषित कर सकती हैं।