इस नीति का उद्देश्य आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से व्यवहार्य भूतापीय संसाधनों का पता लगाने एवं विकास करने के लिए वैज्ञानिक व तकनीकी अनुसंधान को बढ़ावा देना है।
भू-तापीय ऊर्जा (Geothermal Energy)
- यह पृथ्वी की सतह के नीचे से प्राप्त ऊष्मीय (गर्मी) ऊर्जा होती है।
- यह ऊर्जा आंशिक रूप से पृथ्वी के निर्माण के दौरान उत्पन्न हुई अवशिष्ट (residual) ऊष्मा से और आंशिक रूप से ही पृथ्वी के कोर और मेंटल के भीतर प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले समस्थानिकों के निरंतर एवं स्वाभाविक रेडियोधर्मी विघटन/ क्षय से उत्पन्न होती है।

- इस ऊर्जा को भू-तापीय तकनीक का उपयोग करके हीटिंग और कूलिंग, विद्युत उत्पादन एवं ऊर्जा भंडारण के लिए निकाला जाता है।
- परंपरागत भू-तापीय तकनीकें उन जल-तापीय भंडारों का उपयोग करती हैं, जहां ‘भू-तापीय ऊष्मा’ प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले भूमिगत तरल पदार्थों के माध्यम से सतह तक पहुंचती है।
- अलगी पीढ़ी की भू-तापीय तकनीक में गहराई से ऊष्मा को प्राप्त किया जाता है। इसमें इंजीनियर प्रणालियों के माध्यम से सतह से तरल पदार्थ को प्रसारित किया जाता है। ये तकनीकें जल-तापीय भंडारों पर निर्भर नहीं होती।
- इनमें एन्हांस्ड जियोथर्मल सिस्टम्स (EGSs) और क्लोज्ड-लूप जियोथर्मल सिस्टम्स (CLGSs) तकनीकें शामिल हैं।
- भारत में संभावनाएं: जियोथर्मल एटलस ऑफ इंडिया, 2022 के अनुसार भारत में लगभग 10,600 मेगावाट भू-तापीय ऊर्जा की संभावना है।
- पुगा और चुमाथांग (लद्दाख) भारत के सबसे संभावनाशील भू-तापीय क्षेत्र हैं।
- लाभ:
- 24x7 बिजली उत्पादन की क्षमता;
- उच्च उपयोग दर (2023 में 75% से अधिक);
- न्यूनतम उत्सर्जन आदि।
- चुनौतियां:
- तुलनात्मक रूप से तकनीक की उच्च लागत;
- सीमित अनुसंधान एवं विकास (R&D);
- पर्यावरणीय चिंताएं;
- लाइसेंस प्राप्त करने की जटिल प्रक्रिया आदि।
भारत सरकार द्वारा शुरू की गई पहलें:
|