ये दोषी एक ऐसे गिरोह का हिस्सा थे जिसने 'डिजिटल अरेस्ट' धोखाधड़ी के माध्यम से 100 से अधिक लोगों से 100 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी की थी।
डिजिटल अरेस्ट क्या है?
- यह एक धोखाधड़ी है जिसमें भय, छल और धमकी का उपयोग करके पीड़ितों से धन की मांग की जाती है।
- तरीका: पीड़ितों को एक फोन कॉल, ईमेल या मेसेज प्राप्त होता है, जिसमें उनसे कहा जाता है कि वे किसी गैर-कानूनी गतिविधि, जैसे कि पहचान की चोरी या मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल हैं।
- धमकी और दबाव: इसमें धोखाधड़ी करने वाले भय के जरिए और पीड़ितों को तर्कसंगत ढंग से सोचने से रोकने के लिए गिरफ्तारी की धमकी देते हैं।
- धन की मांग: पीड़ितों को "अपना नाम जांच से हटाने" या "रिफंडेबल सिक्योरिटी डिपॉजिट" प्रदान करने जैसे बहाने के तहत बड़ी रकम को फर्जी खातों में स्थानांतरित करने को कहा जाता है।
- प्रशासनिक पहलू:-
- राज्य की भूमिका: भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार 'पुलिस' और 'लोक व्यवस्था' राज्य सूची के विषय हैं।
- केंद्र की भूमिका: यह क्षमता निर्माण के लिए विविध योजनाओं के तहत परामर्श और वित्तीय सहायता के माध्यम से राज्यों/ संघ राज्य क्षेत्रों की पहलों को सहायता प्रदान करता है ।
डिजिटल अरेस्ट से निपटने के लिए उठाए गए कदम
- भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C): इसे गृह मंत्रालय ने सभी साइबर अपराधों के लिए केंद्रीय समन्वय निकाय के रूप में स्थापित किया है।
- साइबर धोखाधड़ी शमन केंद्र (CFMC): इसे I4C में स्थापित किया गया है, जहां बैंक, दूरसंचार प्रदाता और कानून प्रवर्तन विभाग एक साथ मिलकर काम करते हैं।
- समन्वय प्लेटफॉर्म: यह अंतर्राज्यीय अपराध लिंकेज के लिए डेटा संग्रह और समन्वय प्रणाली के रूप में कार्य करता है।
- संदिग्ध रजिस्ट्री: इसे साइबर अपराधियों की पहचान करने के लिए बैंकों के सहयोग से शुरू किया गया है।
- रिपोर्ट एंड चेक सस्पेक्ट: यह cybercrime.gov.in पर एक नया फीचर है, जहां नागरिक आपराधिक डेटाबेस सर्च कर सकते हैं।
- CERT-IN के दिशा-निर्देश:
- कॉल करने वाले की पहचान की जांच करें,
- घबराएं नहीं या दबाव में आकर पैसे ट्रांसफर न करें (स्थिति का शांति से आकलन करने के लिए कुछ समय लें),
- व्यक्तिगत जानकारी साझा करने से बचें,
- अपने डिवाइस को अनजानों के साथ साझा न करें आदि।