यह बांध हिमालय में एक विशाल गॉर्ज के दूसरी तरफ बनाया जा रहा है, जहां नदी भारत की सीमा (अरुणाचल प्रदेश) के पास यू-टर्न लेती है।
- इसके बनने के बाद यह आकार में चीन की यांग्त्ज़ी नदी पर बने ‘थ्री गॉर्जेस डैम’ से भी बड़ा हो सकता है।
- ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत के पठार से होकर बहती है और पृथ्वी का सबसे गहरा कैनियन बनाती है।
बांध से जुड़ी प्रमुख चिंताएं

- आपदा जोखिम: इसके बनने से भूकंप से संबंधित खतरे बढ़ सकते हैं। गौरतलब है कि तिब्बती पठार पर अक्सर भूकंप आते रहते हैं, क्योंकि यह क्षेत्र टेक्टोनिक प्लेट्स पर स्थित है।
- उदाहरण: 1950 का असम-तिब्बत भूकंप।
- पर्यावरणीय चुनौतियां: बांध से स्थानीय पारिस्थितिकी-तंत्र प्रभावित हो सकता है और नदी के निचले बहाव में भी रुकावट आ सकती है।
- इसका असर जैव विविधता और कृषि पर भी पड़ेगा।
- भू-राजनीतिक चुनौतियां: संभावना है कि चीन इस बांध को संघर्ष के समय ‘वाटर बम’ की तरह हथियार बनाकर बाढ़ लाने के लिए इस्तेमाल कर सकता है।
- सांस्कृतिक चुनौतियां: उदाहरण के लिए- इस परियोजना से अरुणाचल प्रदेश की सियांग घाटी में रहने वाली अदि (Adi) जनजाति जैसे समुदायों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।
वर्ष 2006 में चीन और भारत ने सीमा-पार नदियों से जुड़े मुद्दों को सुलझाने के लिए विशेषज्ञ स्तर की व्यवस्था (ELM) शुरू की थी। इसके तहत बाढ़ के मौसम में ब्रह्मपुत्र और सतलज नदियों के हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा किए जाते हैं। भारत भी अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र पर अपना जलविद्युत बांध बना रहा है।
- उल्लेखनीय है कि दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों के गैर-नौगम्य उपयोग के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, 1997 के हस्ताक्षरकर्ता नहीं हैं।