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ब्लू इकोनॉमी (BLUE ECONOMY)

04 Sep 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने "भारत की ब्लू इकोनॉमी का रूपांतरण: नवाचार और सतत विकास (Transforming India's Blue Economy: Innovation and Sustainable Growth)" शीर्षक से एक श्वेत पत्र जारी किया है, जिसमें 2035 तक के लिए एक रोडमैप की रूपरेखा दी गई है।

भारत में ब्लू इकोनॉमी

  • परिभाषा: द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) के अनुसार, ब्लू इकोनॉमी से तात्पर्य सामाजिक-आर्थिक विकास, पर्यावरणीय संधारणीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भारत के कानूनी अधिकार- क्षेत्र में आने वाले महासागरों और समुद्री संसाधन क्षमता का पता लगाना और उसे उपयोग अनुकूल बनाना है।
    • ब्लू इकोनॉमी की अवधारणा का उल्लेख पहली बार 1994 में यूनाइटेड नेशन यूनिवर्सिटी (UNU) के प्रोफेसर गुंटर पाउली ने किया था।
  • क्षमता: भारत का समुद्री तट 11,098 किलोमीटर लंबा है और इसका अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) 2.4 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला है। यह क्षेत्र दुनिया के महत्त्वपूर्ण शिपिंग मार्गों पर स्थित है, जिससे इस क्षेत्र के विकास की अपार संभावनाएं मौजूद हैं।

वर्तमान स्थिति

  • भारत की ब्लू इकोनॉमी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 4% का योगदान देती है।
    • मात्रा के हिसाब से भारत का 95% व्यापार समुद्री मार्ग के जरिए होता है।
  • इसकी तट-रेखा पर 12 प्रमुख (महाराष्ट्र में वधावन पोर्ट 13वां प्रमुख बंदरगाह होगा) और 200 लघु बंदरगाह हैं।
  • 2035 तक भारत के कुल परिवहन में कोस्टल शिपिंग मॉडल की हिस्सेदारी मौजूदा 6% से बढ़कर 33% होने का अनुमान है। यह आर्थिक विस्तार के लिए अधिक संभावनाओं को दर्शाता है।

भारत में ब्लू इकोनॉमी से संबंधित चुनौतियां

पर्यावरण संबंधी चुनौतियां

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: समुद्री जल का गर्म होना, प्रबल चक्रवात, समुद्री जल स्तर में वृद्धि, तटों और विरासत स्थलों का क्षरण। 
  • अत्यधिक मत्स्यन और फिश स्टॉक का कम होना।
  • समुद्री और बंदरगाह प्रदूषण से पारिस्थितिकी तंत्र; जैसे प्रवाल भित्तियों, मैंग्रोव, जीव-जंतुओं के समुद्री पर्यावास को नुकसान पहुंच रहा है।
  • अत्यधिक पर्यटन और अनियोजित विकास से नाजुक तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण हो सकता है। 
  • सीमित और अपूर्ण पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIAs)
    • उदाहरण के लिए- 2022 की एक रिपोर्ट में CAG ने कहा कि देश में कई परियोजनाएं तटीय क्षेत्र विनियमन और EIA मानदंडों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन कर रही हैं।

नीति और गवर्नेंस संबंधी चुनौतियां

  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं और IMO नियमों को पूरी तरह लागू नहीं किया जा रहा है।
  • उभरते क्षेत्रों (जैसे- डीप-सी माइनिंग, मरीन बायोटेक्नोलॉजी, नवीकरणीय ऊर्जा) के लिए आधुनिक विनियामक फ्रेमवर्क्स को अपनाने में देरी हो रही है।
  • मंत्रालयों और एजेंसियों के बीच मजबूत समन्वय, तथा अधिक सामंजस्यपूर्ण नीतिगत फ्रेमवर्क्स (ऊर्जा, विरासत, पर्यटन) की आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिए- ब्लू इकॉनमी से जुड़े कार्यों में कई मंत्रालय और एजेंसियां (मत्स्य, शिपिंग, पर्यावरण, पृथ्वी विज्ञान आदि) शामिल हैं, परन्तु एकीकृत और समन्वित रणनीति का अभाव है।

तकनीकी और अवसंरचनात्मक चुनौतियां

  • मात्स्यिकी क्षेत्रक में कोल्ड चेन, स्टोरेज और पोस्ट-हार्वेस्ट सुविधाएं काफी कम हैं।
  • विशेष उपकरणों (नवीकरणीय ऊर्जा, गहरे समुद्र में खनन, जैव प्रौद्योगिकी) के लिए आयात पर निर्भरता अत्यधिक है।
  • भारत की जहाज निर्माण और जहाज मरम्मत क्षमता सीमित है।
  • अपतटीय ऊर्जा के लिए विद्युत ग्रिड और ट्रांसमिशन सिस्टम पर्याप्त नहीं हैं।
  • जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान के परिणामों का व्यावसायिक उपयोग बहुत कम है।
  • गहरे समुद्र में खनिजों की खोज के लिए नई तकनीक भारत के पास नहीं है
    • उदाहरण के लिए-  भारत ने अटलांटिक महासागर में परीक्षण अभियानों के लिए फ्रांस के IFREMER की सबमर्सिबल 'नॉटिलस' का उपयोग किया।

वित्तीय और निवेश संबंधी चुनौतियां

  • मात्स्यिकी, बंदरगाह, नवीकरणीय ऊर्जा और जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रकों में निजी क्षेत्रक का निवेश बहुत कम है।
  • छोटे मछुआरों, स्टार्ट-अप्स और तटीय पर्यटन सहकारी समितियों के लिए वित्त-पोषण की कमी है।
  • लघु उद्यमों और अधिक पूंजी वाली गतिविधियों के लिए बीमा कवरेज का अभाव है। 
  • भारत में समुद्री जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान के लिए अधिकांश वित्त-पोषण निजी वेंचर कैपिटल फर्मों की बजाय जैव प्रौद्योगिकी विभाग जैसी सरकारी संस्थाओं से आता है।

सामाजिक और समानता संबंधी चुनौतियां

  • कौशल की कमी: प्रशिक्षित तकनीशियन तथा पोर्ट्स, बायोटेक व गहरे समुद्री कार्यों के लिए उच्च कौशल वाले लोगों की कमी है।
  • जनजातीय, महिलाएं और लघु मछुआरे जैसे वंचित समूहों का प्रतिनिधित्व कम है और अक्सर आर्थिक लाभ उन तक नहीं पहुंच पाता है। साथ ही विस्थापन का खतरा भी बना रहता है।
    • उदाहरण के लिए- यद्यपि महिलाएं भारत के तटीय मात्स्यिकी कार्यबल का 72% हैं, परंतु उनकी भूमिका अनौपचारिक और कम-भुगतान वाले रोजगार तक ही सीमित हैं।

भारत की ब्लू इकोनॉमी से संबंधित सफल केस स्टडी

  • कोच्चि  पोर्ट का डिजिटल ट्विन इंटीग्रेशन (वर्चुअल पोर्ट) के माध्यम से स्मार्ट पोर्ट में ट्रांसफॉर्मेशन:
    • इस एकीकरण से संचालन दक्षता में सुधार हुआ है, सटीक योजना निर्माण संभव हुआ है और पोर्ट संचालन मजबूत हुआ है। साथ ही, पर्यावरण संरक्षण की निगरानी भी संभव हुई है।
  • अलंग, गुजरात: जहाज तोड़ने को एक चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल में बदलना:
    • अलंग में पुराने जहाजों को तोड़ने की पारंपरिक भारी-भरकम इंडस्ट्री को अब पर्यावरण-अनुकूल रिसाइक्लिंग मॉडल में बदला गया है। यह हांगकांग अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के मानकों के अनुसार काम कर रहा है, जिससे संसाधनों का सुरक्षित और टिकाऊ पुनः उपयोग संभव हुआ है।
  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (ANI): संधारणीय तटीय और समुद्री पर्यटन के लिए एक मॉडल:
    • यहां समुदाय के नेतृत्व वाले कार्यक्रमों और पर्यावरण-अनुकूल अवसंरचना में निवेश से लगभग 5,000 रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं। इससे पर्यटन-क्षेत्र से अपशिष्ट उत्सर्जन में 40% की कमी आयी है।
    • समुद्र तटों के लिए ब्लू फ्लैग प्रमाणन और समुद्री स्थानिक नियोजन (Marine Spatial Planning: MSP) ने समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (Marine Protected Areas: MPAs) में पर्यटन को विनियमित करने में मदद की।
  • ओडिशा में समुदाय के नेतृत्व में सीवीड की खेती: सतत तटीय आजीविका के लिए एक मॉडल:
    • ओडिशा में सालाना लगभग 5,000 टन सीवीड का उत्पादन हो रहा है। इससे 10,000 से अधिक तटीय परिवारों को अतिरिक्त आय का स्रोत मिला है।
    • यह पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है क्योंकि सीवीड खेती घुले हुए कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करती है, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में योगदान देती है, पानी की गुणवत्ता में सुधार करती है और मछलियों पर दबाव कम करती है।

निष्कर्ष

भारत की ब्लू इकोनॉमी की प्रगति के लिए हरित प्रौद्योगिकियों, आपदा-रोधी अवसंरचना और कौशल विकास में लक्षित निवेश आवश्यक हैं। ब्लू बॉण्डकार्बन क्रेडिट बाजार, और सार्वजनिक-निजी भागीदारी जैसे नए वित्तपोषण मॉडल के साथ-साथ संधारणीय संसाधन प्रबंधन और समावेशी भागीदारी से पूंजी जुटाने में मदद मिलेगी। साथ ही, ये उपाय आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन सुनिश्चित करते हुए दीर्घकालिक प्रतिस्पर्धात्मकता और चुनौतियों से निपटने की क्षमता को बढ़ावा देंगे।

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