सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में लोक सभा में जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक, 2025 पेश किया गया। इस विधेयक का उद्देश्य कानूनों के अनुपालन को सरल बनाकर, कानूनों को उपडेट करके, कुछ कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर करके और विश्वास-आधारित शासन व्यवस्था को बढ़वा देते हुए ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस (EoDB) और ईज़ ऑफ लिविंग संबंधी सुधारों को आगे बढ़ाना है।
अन्य संबंधित तथ्य
- यह विधेयक जन विश्वास अधिनियम, 2023 की सफलता पर आधारित है। इसके तहत 19 मंत्रालयों व विभागों से संबंधित 42 केंद्रीय अधिनियमों के 183 प्रावधानों के तहत वर्णित कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया था।
- 2025 का विधेयक इन सुधारों का विस्तार करता है और 10 मंत्रालयों /विभागों से संबंधित 16 केंद्रीय अधिनियमों को शामिल करता है।
- यह विधेयक प्रक्रियागत सुधार का एक उदाहरण है, जिसमें कठोर और दंडात्मक अनुपालन की जगह सरल व भरोसे पर आधारित व्यवस्थाएं लाई गई हैं। इसका उद्देश्य प्रक्रियाओं को आसान बनाना, न्यायपालिका पर से बोझ घटाना और नागरिकों व व्यवसायों के लिए एक अनुकूल परिवेश तैयार करना है।
विधेयक की मुख्य विशेषताएं
- पहली बार उल्लंघन: 10 अधिनियमों के अंतर्गत उल्लेखित 76 अपराधों के मामले में पहली बार अपराध करने पर सजा नहीं दी जाएगी बल्कि परामर्श या चेतावनी दी जाएगी।
- कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर करना: यह 288 प्रावधानों के तहत वर्णित कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है तथा मामूली गलती के लिए जेल की सजा के स्थान पर जुर्माने या चेतावनी का प्रावधान करता है।
- उदाहरण: चाय अधिनियम, 1953 तथा विधिक मापविज्ञान अधिनियम, 2009 (जिन्हें पहले 2023 में संशोधित किया गया था) को और भी उदार बनाया गया है।
- जुर्माने का सरलीकरण: जुर्मानों को तार्किक और अनुपातिक बनाया गया है। साथ ही बार-बार अपराध करने पर दंड में क्रमिक वृद्धि की जाएगी।
- निर्णय तंत्र: मामलों का त्वरित समाधान सुनिश्चित करने और न्यायपालिका पर बोझ कम करने के लिए नामित अधिकारियों को यह प्राधिकार दिया गया है कि वे प्रशासनिक प्रक्रिया के जरिए जुर्माना लगा सकते हैं।
- जुर्माने की स्वतः वृद्धि: हर 3 साल में दंड और जुर्माना 10% बढ़ जाएंगे। इससे यह सुनिश्चित होगा कि दंड प्रभावी बने रहें और बार-बार कानून में संशोधन करने की ज़रूरत न पड़े।
प्रक्रियात्मक सुधार क्या हैं?
- प्रक्रियात्मक सुधारों को "नट्स एंड बोल्ट्स रिफॉर्म (बुनियादी सुधार)" कहा जाता है। इसका अर्थ है, किसी नियम या प्रक्रिया में छोटे-छोटे बदलाव करना, जैसे किसी नियम की उपधारा में संशोधन करना।
- ये संरचनात्मक सुधारों से अलग होते हैं। संरचनात्मक सुधार (जैसे GST, दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता, मौद्रिक नीति समिति आदि) आर्थिक ढांचे की पूरी संरचना को बदल देते हैं, जबकि प्रक्रियात्मक सुधार मौजूदा संरचना के संचालन को और बेहतर बनाते हैं।
- ये छोटे स्तर के लक्षित बदलाव होते हैं, जिनका उद्देश्य सार्वजनिक नीतियों के भीतर किसी विशेष क्षेत्रक या गतिविधि में कामकाज की दक्षता बढ़ाना होता है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में भी यह सुझाव दिया गया था कि भारत की प्रशासनिक और कानूनी प्रक्रियाओं में अत्यधिक नियम-कानून और अस्पष्टता की बजाय, सरल नियम एवं आसान प्रक्रियाएं ज्यादा लाभकारी सिद्ध होंगे।
प्रक्रियात्मक सुधारों का महत्त्व
- आर्थिक संवृद्धि को बनाए रखना: दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने के नाते, भारत को अपनी आर्थिक गति बनाए रखने के लिए निरंतर सुधारों की आवश्यकता है।
- प्रक्रियात्मक सुधार प्रमुख संरचनात्मक परिवर्तनों के बीच के अंतराल को समाप्त करते हैं और प्रगति के पहिये को गतिमान बनाए रखते हैं।
- व्यापार, जीवन और विज्ञान में सुगमता: ये सुधार प्रत्यक्ष रूप से नागरिकों, व्यवसायों और शोधकर्ताओं की रोजमर्रा की परेशानियों को दूर करते हैं। उदाहरण: वैज्ञानिक संस्थाओं के लिए नए खरीद नियमों ने वैज्ञानिकों का काम आसान और प्रभावी बना दिया है।
- बाधाओं और देरी को दूर करना: भारत की कई सरकारी प्रक्रियाओं में पुराने नियम, बोझिल कागजी कार्रवाई, अनावश्यक अनुमोदन और सेवाओं की धीमी डिलीवरी जैसी विरासत में मिली समस्याएं देखने को मिलती हैं। ये लोगों और व्यवसायों दोनों के लिए बाधा बनती हैं। प्रक्रियात्मक सुधार इन अवरोधों को कम करते हैं।
- क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा बढ़ाना: उदाहरण के लिए– अन्य सेवा प्रदाताओं (OSP) के लिए दूरसंचार नियमों को उदार बनाने से आईटी और BPO सेक्टर में तेजी से विकास हुआ है।
- भ्रष्टाचार और अनुचित लाभ कम करना: जब प्रणालियां पारदर्शी बनती हैं और अनावश्यक नियम हटाए जाते हैं, तो भ्रष्टाचार एवं मनमानी के अवसर कम हो जाते हैं।
- समस्या-समाधान की मानसिकता विकसित करना: व्यवस्थित प्रक्रियात्मक सुधारों से सरकार के भीतर लगातार समस्याओं का समाधान करने की संस्कृति निर्मित होती है। इससे संस्थाएं लचीली और संवेदनशील बनती हैं, वे इस मानसिकता से बाहर निकलती हैं कि प्रणालियां "ईश्वर-प्रदत्त" हैं और बदली नहीं जा सकतीं।

सफल प्रक्रियात्मक सुधारों से संबंधित केस स्टडीज़
|
निष्कर्ष
जैसे-जैसे भारत एक गतिशील और नवाचार-प्रधान अर्थव्यवस्था में विकसित हो रहा है, जन विश्वास विधेयक जैसे सुधारों को अंतिम लक्ष्य के रूप में नहीं, बल्कि शासन परिवर्तन की लंबी यात्रा में महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में देखा जाना चाहिए। तकनीक को अपनाकर, प्रक्रियाओं को लगातार सरल बनाकर और नागरिक-केंद्रित शासन लागू करके, ये सुधार संस्थाओं के भीतर उत्तरदायित्व, पारदर्शिता एवं अनुकूलनशीलता की संस्कृति विकसित कर सकते हैं।