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ई-मोबिलिटी (E-MOBILITY) | Current Affairs | Vision IAS
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ई-मोबिलिटी (E-MOBILITY)

Posted 04 Sep 2025

Updated 08 Sep 2025

1 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

नीति आयोग ने पहले इंडिया इलेक्ट्रिक मोबिलिटी इंडेक्स के साथ "अनलॉकिंग ए 200 बिलियन डॉलर अपॉर्चुनिटी: इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs)" नामक रिपोर्ट जारी की है।

इंडिया इलेक्ट्रिक मोबिलिटी इंडेक्स के बारे में

  • नीति आयोग ने वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट इंडिया के साथ मिलकर इंडिया इलेक्ट्रिक मोबिलिटी इंडेक्स (IEMI) लॉन्च किया है। यह राज्यों के लिए अपनी तरह का पहला बेंचमार्क टूल, जो उन्हें अन्य राज्यों की तुलना में अपनी प्रगति का आकलन करने की सुविधा प्रदान करता है। 
  • यह इंडेक्स 3 प्रमुख श्रेणियों के तहत 16 प्रदर्शन संकेतकों का आकलन करता है:
  • परिवहन प्रणाली के विद्युतीकरण में प्रगति: इसके तहत मांग पक्ष के मामले में EVs को अपनाने की दर को ट्रैक किया जाता है।
  • चार्जिंग अवसंरचना की मौजूदगी: इसमें चार्जिंग नेटवर्क के विकास का आकलन किया जाता है।
  • EV संबंधी अनुसंधान एवं नवाचार: इसमें आपूर्ति पक्ष के मामले में अनुसंधान एवं विकास संबंधी प्रयासों का मूल्यांकन किया जाता है।
  • यह सूचकांक राज्यों को चार श्रेणियों में वर्गीकृत करता है: अचीवर्स (100), फ्रंट रनर्स (65-99), परफॉर्मर्स (50-64) और एस्पिरेंट्स (0-49)।
    • वर्ष 2024 के लिए, दिल्ली 77 अंकों के साथ इस इंडेक्स में शीर्ष स्थान पर है, उसके बाद महाराष्ट्र (68), चंडीगढ़ और कर्नाटक का स्थान आता है।

इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के बारे में

  • प्रकार: 
    • बैटरी EVs (BEV): ये पूरी तरह बैटरी से चलते हैं।
    • हाइब्रिड EVs (HEV): इनमें इंजन और इलेक्ट्रिक मोटर दोनों होते हैं।
    • फ्यूल सेल EVs (FCEV): इसमें फ्यूल सेल टेक्नोलॉजी से बिजली बनती है, जिसका उपयोग वाहन को चलाने के लिए किया जाता है।
    • प्लग-इन हाइब्रिड EVs (PHEV): इनमें इंजन और रिचार्जेबल बैटरी दोनों का उपयोग किया जाता है।
  • भारत में ई-मोबिलिटी की स्थिति (अनलॉकिंग ए 200 बिलियन डॉलर अपॉर्चुनिटी: इलेक्ट्रिक व्हीकल्स)
  • 2024 में 2.08 मिलियन EVs की बिक्री हुई, जो 2016 में 50,000 की तुलना में काफी अधिक है।
  • 2024 में EVs की पैठ 7.6% थी, जो 2030 तक 30% के लक्ष्य को हासिल करने में धीमी प्रगति को दर्शाता है।

रिपोर्ट में उजागर की गई प्रमुख चुनौतियां

चुनौती वाले क्षेत्र

संबंधित मुद्दे

वित्तीय चुनौतियां (ई-बसें और ई-ट्रक)

  • उच्च पूंजीगत लागत: EV बसों/ट्रकों की लागत ICE वाहनों की लागत से 2-3 गुना अधिक होती है, जिससे छोटी कंपनियों के लिए इन्हें अपनाना मुश्किल हो जाता है।
  • EMI का उच्च बोझ: छोटे ऑपरेटरों की ऋण चुकाने की क्षमता पर वित्तीय संस्थाओं में संदेह रहता है।

वाहन-केंद्रित चुनौतियां

  • महंगी और भारी बैटरियां ट्रक की भार वहन क्षमता को कम कर सकती हैं। 
  • 15-वर्ष बाद वाहन को स्क्रैप करने संबंधी नियम से इनकी रीसेल वैल्यू (पुनर्विक्रय मूल्य) कम हो जाती है।

चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी चुनौतियां

  • सार्वजनिक चार्जिंग, घरेलू चार्जिंग से लगभग 4 गुना महंगी है (18% GST+ ऑपरेटर का मुनाफा)
  • DISCOMs से अपस्ट्रीम पवार सप्लाई कनेक्शन में समस्याएं: उदाहरण के लिए, कनेक्शन प्राप्त करने के लिए शुल्क संरचनाओं में भिन्नताएं और बिजली की आपूर्ति के लिए टैरिफ संरचनाओं में असमानताएं मौजूद हैं।
  • शहरों में और राजमार्गों पर भूमि की उपलब्धता से संबंधित समस्याएं।
  • रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWAs) चार्जिंग स्टेशनों को सुरक्षा संबंधी जोखिम के रूप में देखते हैं।
  • डिस्कॉम, शहरी स्थानीय निकायों, परिवहन विभागों और राज्य नोडल एजेंसियों के बीच सहयोग का अभाव है। 
  • स्थान निर्धारण, बुकिंग और भुगतान के लिए एक एकीकृत ऐप का अभाव है।

जागरूकता और धारणा संबंधी चुनौतियां

  • राज्यों में अलग-अलग प्रोत्साहनों के कारण भ्रम की स्थिति जैसे कि परमिट की छूट या कम कर की दरें।
  • अकुशल/ विखंडित जागरूकता अभियान।
  • गलत धारणाएं: इसमें फायर सेफ्टी, बैटरी क्षरण, वाहन की रेंज और रीसेल वैल्यू से संबंधित चिंताएं शामिल हैं।

अपर्याप्त डेटा और विनियामकीय अंतराल

  • VAHAN डेटाबेस में EV श्रेणियों के बारे में सटीक डेटा का अभाव: इससे नीति बनाने, टार्गेटेड सब्सिडी सुनिश्चित करने और प्रगति की निगरानी करने में कठिनाई आती है।
  • विशिष्ट बैटरी आईडी का अभाव ट्रैकिंग, पुनर्विक्रय और पुनर्चक्रण इकोसिस्टम  को कमजोर करता है।
  • विनिर्माताओं के लिए इनवर्टेड GST के चलते इनपुट GST 18% और आउटपुट GST 5% है, जिससे कार्यशील पूंजी अवरुद्ध हो जाती है और इनपुट टैक्स बढ़ जाता है।

 

भारत द्वारा इलेक्ट्रिक वाहन को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदम

  • पीएम ई-ड्राइव योजना: इस योजना के तहत इलेक्ट्रिक 2-व्हीलर (e-2Ws), इलेक्ट्रिक 3-व्हीलर (e-3Ws), इलेक्ट्रिक ट्रक, इलेक्ट्रिक बस, इलेक्ट्रिक एंबुलेंस और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है। साथ ही, उपभोक्ताओं (खरीददारों/ अंतिम उपयोगकर्ताओं) को कुछ प्रकार के EV खरीदने के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।
  • भारत में इलेक्ट्रिक यात्री कारों के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना: इस योजना का उद्देश्य वैश्विक EV विनिर्माताओं से निवेश आकर्षित करना और भारत को पैसेंजर कारों के विनिर्माण का केंद्र बनाना है।
  • पीएम ई-बस सेवा - पेमेंट सिक्योरिटी मैकेनिज्म (PSM) योजना: इसका लक्ष्य 38,000 से अधिक ई-बसों की तैनाती करना है और सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरणों द्वारा भुगतान में चूक होने पर ऑपरेटरों के लिए भुगतान सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
  • ऑटोमोबाइल और ऑटो घटकों के लिए PLI योजना: इसका उद्देश्य एडवांसड ऑटोमोटिव प्रौद्योगिकी उत्पादों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना, 50% मूल्य वर्धन सुनिश्चित करना और ऑटो क्षेत्रक में निवेश आकर्षित करना है।
  • PLI - एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल: यह योजना 50 GWh घरेलू बैटरी विनिर्माण को समर्थन देती है, जिससे आयात कम होगा।
  • लागत में कमी: इलेक्ट्रिक वाहनों पर GST को 12% से घटाकर 5% कर दिया गया।
  • इवोल्यूशन (EVolutionS) कार्यक्रम: यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा EV स्टार्टअप्स के लिए शुरू किया गया कार्यक्रम है।

आगे की राह: रिपोर्ट में की गयी सिफारिशें

  • प्रोत्साहन से अनिवार्यता की ओर: शून्य उत्सर्जन वाहनों (ZEVs) के उत्पादन के लिए लक्ष्य निर्धारित करना; आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाले वाहनों पर उच्च पंजीकरण शुल्क/कर लगाना चाहिए।
  • सैचुरेशन दृष्टिकोण: 5 साल के भीतर 5 चुने हुए भारतीय शहरों में 100% इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को अपनाना। इसके लिए संबंधित अवसंरचना का विकास करना, परिवहन व्यवस्था को पूरी तरह से इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलने के लिए अनिवार्य नियम बनाना और लक्षित वित्त-पोषण  जैसे कदम  उठाने  चाहिए।
  • ई-बसों और ई-ट्रकों के लिए वित्त-पोषण: इन वाहनों की खरीद के लिए कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने हेतु सार्वजनिक और बहुपक्षीय स्रोतों से एक समेकित निधि का गठन करना चाहिए।
  • बैटरी संबंधी अनुसंधान: इसमें उपयोग होने वाले पदार्थों को और बेहतर बनाने के लिए अकादमिक-उद्योग-सरकार साझेदारी का निर्माण करना चाहिए।
  • रणनीतिक चार्जिंग अवसंरचना: इसमें 20 प्रमुख गलियारे विकसित करना, नोडल एजेंसियां स्थापित करना, हब स्थलों का मानचित्रण करना तथा कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए समय के अनुसार कीमत निर्धारण का उपयोग करना जैसे उपाय शामिल हैं।
  • एकीकृत राष्ट्रीय EV ऐप: यह चार्जिंग स्टेशनों का पता लगाने, स्लॉट बुक करने, भुगतान करने और समर्पित EV पावर लाइनों का पता लगाने के लिए सेवाएं प्रदान करेगा।
  • अग्रिम लागत को कम करना: इसमें बसों और ट्रकों के लिए लीजिंग मॉडल को बढ़ावा देना शामिल है, ताकि छोटे ऑपरेटर आसानी से इलेक्ट्रिक वाहन को अपना सकें। साथ ही बैटरी-एज-ए-सर्विस (BaaS) की सुविधा शुरू करनी चाहिए, जिससे बैटरी खरीदने का भारी खर्च कम हो जाए। बैटरी के कंडीशन को ट्रैक करने के लिए बैटरी पासपोर्ट सिस्टम लागू करना चाहिए।
    • इलेक्ट्रिक वाहन की कुल कीमत का करीब 40% हिस्सा सिर्फ बैटरी की लागत होती है।
  • जागरूकता और सूचना: इसके लिए एक राष्ट्रीय EV जागरूकता कार्यक्रम शुरू करना चाहिए, हितधारकों की डेटा संबंधी आवश्यकताओं का आकलन करना, और निर्णय लेने में मार्गदर्शन के लिए एक व्यापक सूचना प्रणाली विकसित करनी चाहिए।

इलेक्ट्रिक वाहन (EV) को अपनाने से संबंधित सर्वोत्तम उदाहरण 

  • चीन: "10 सिटीज, 1000 व्हीकलकार्यक्रम चीन द्वारा शुरू की गयी एक प्रमुख पहल है। इसके तहत 10 चुनिंदा शहरों को कहा गया कि वे सरकारी वाहनों में कम-से-कम 1000 न्यू एनर्जी व्हीकल (NEVs) को उपयोग में लाएं।
  • सिंगापुर: सिंगापुर की लैंड ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी की पूर्ण स्वामित्व वाली एक सहायक कंपनी ईवी इलेक्ट्रिक चार्जिंग प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य सभी संबंधित एजेंसियों के साथ मिलकर चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना की सुगम बनाना था।
  • यूरोप: चार्जमैप (ChargeMap) ऐप रियल टाइम में चार्जिंग स्टेशन डेटा, यूजर्स रिव्यू प्रदान करता है साथ ही यह नेविगेशन सिस्टम के साथ एकीकृत भी है।
  • यूनाइटेड किंगडम: एडवांसड प्रपल्शन  सेंटर (APC) ऐसे प्रोजेक्ट्स को फंड करता है जो प्रोटोटाइप से व्यावसायिक उत्पादन तक का रास्ता आसान बनाते हैं। फैराडे बैटरी चैलेंज ने यू.के. बैटरी इन्डट्रलाइजेशन सेंटर (UKBIC) की स्थापना की है, जहाँ कंपनियाँ अपने लैब प्रोटोटाइप को बड़े स्तर पर उत्पादन तक ले जा सकती हैं।
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  • EV
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  • India Electric Mobility Index
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