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गिग वर्कर्स (GIG WORKERS)

04 Sep 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, कर्नाटक विधान सभा ने श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कर्नाटक प्लेटफ़ॉर्म-आधारित गिग वर्कर्स (सामाजिक सुरक्षा और कल्याण) विधेयक, 2025 पारित किया।

विधेयक के बारे में अन्य संबंधित तथ्य

  • कल्याण बोर्ड की स्थापना: यह वर्कर्स और एग्रीगेटर्स का पंजीकरण करेगा, सामाजिक सुरक्षा योजनाएं बनाएगा, योजनाओं की निगरानी करेगा, आदि।
  • सामाजिक सुरक्षा और कल्याण निधि की स्थापना: इसमें कल्याण शुल्क (श्रमिक और एग्रीगेटर के बीच लेनदेन पर या कंपनी के कुल कारोबार पर) तथा केंद्र और राज्य सरकारों के योगदान शामिल होंगे।
  • अन्य: एग्रीगेटर गिग वर्कर्स को पंजीकृत करेंगे, कार्य की शर्तों को साझा करेंगे, और यह बताएंगे कि ऑटोमेटेड सिस्टम्स उनकी स्थितियों को कैसे प्रभावित करते हैं।
  • राजस्थान और बिहार ने इस संबंध में क्रमशः 2023 और 2025 में कानून पारित किए थे।

गिग वर्कर्स के बारे में

  • परिभाषा: सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के अनुसार, एक गिग वर्कर वह व्यक्ति होता है जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध के दायरे से बाहर कार्य करता है।
  • प्रकार: प्लेटफॉर्म-आधारित और गैर-प्लेटफॉर्म-आधारित वर्कर।
    • प्लेटफ़ॉर्म-आधारित वर्कर: जिनका कार्य ऑनलाइन ऐप्स या डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर आधारित होता है। उदाहरण के लिए- ओला, उबर, जोमैटो, स्विगी, अर्बन कंपनी आदि।
    • गैर-प्लेटफॉर्म गिग वर्कर्स: आमतौर पर पारंपरिक क्षेत्रों में कैजुअल पारिश्रमिक-भोगी और स्वरोजगार करने वाले वर्कर्स होते हैं, जो अंशकालिक या पूर्णकालिक कार्य करते हैं।

गिग इकोनॉमी के विकास के कारण: जनसांख्यिकीय लाभांश (65% भारतीय 15-64 वर्ष की आयु वर्ग में हैं), तेजी से शहरीकरण, कोविड-19 के दौरान रिमोट वर्क को बढ़ावा मिलना, स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्टिविटी का प्रसार (भारत में, 85.5% घरों में कम-से-कम एक स्मार्टफोन है), आदि।

गिग अर्थव्यवस्था का महत्त्व

  • सरकार के लिए
    • जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग करना: रोजगार प्राप्ति क्षमता सुनिश्चित करना, गिग अर्थव्यवस्था से जुड़े व्यवसाय भारत में सृजित सभी नए रोजगारों में से 56% का योगदान करते हैं।
    • आर्थिक संवृद्धि: नीति आयोग के अनुसार, 2030 तक भारत की गिग अर्थव्यवस्था में 250 बिलियन डॉलर का लेनदेन हो सकता है। यह देश की GDP का 1.25% होगा।
  • समाज के लिए
    • कमजोर वर्गों का सशक्तिकरणILO के अनुसार, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर रोजगार की उदार व्यवस्था महिलाओं, युवाओं और दिव्यांग लोगों को लाभ पहुंचाती है।
    • सूक्ष्म-उद्यमिता: एयरबीएनबी और अर्बन कंपनी जैसे प्लेटफॉर्म लोगों को अपने कौशल, एसेट्स और समय का उपयोग करके आय सृजित करने का अवसर देते हैं। साथ ही, स्टार्टअप के लिए शुरुआती उच्च लागत जैसी बाधाओं को भी कम करते हैं।
  • श्रमिकों के लिए
    • लचीली कार्य-दशाएं: रिमोट वर्क, ऑन-डिमांड और कार्य-आधारित व्यवस्था, लचीले कार्य-घंटे, आदि।
    • कौशल विकास: गिग अर्थव्यवस्था डिजिटल साक्षरता, स्व-प्रबंधन, संचार, समस्या-समाधान आदि जैसे कई कौशल प्रदान करती है।
  • उपभोक्ताओं के लिए
    • वैश्विक बाजार तक पहुंच: उदाहरण के लिए, एयरबीएनबी और अमेज़ॅन।
    • अधिक सुविधा: व्यक्तिगत और सस्ते उत्पादों के माध्यम से।

गिग श्रमिकों के लिए चुनौतियां

  • सामाजिक सुरक्षा कवरेज का अभाव: नीति आयोग के अनुसार, 82.5% से अधिक गिग वर्कर अनौपचारिक क्षेत्र के वर्कर्स हैं जहां सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ उपलब्ध नहीं है।
  • स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी चिंताएं: कार्य की प्रकृति के कारण, जैसे समय पर वस्तु पहुंचाने का सख्त नियम सड़क दुर्घटनाओं का कारण बन रहा है।
  • कार्य के अधिक घंटे: टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के अनुसार, 60% प्लेटफॉर्म वर्कर सप्ताह में 7 दिन कार्य करते हैं, जबकि 47% वर्कर प्रतिदिन 12 घंटे से अधिक कार्य करते हैं।
  • आय की अनिश्चितता: फेयरवर्क इंडिया के अनुसार, लगभग आधे गिग वर्कर्स को वैधानिक न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलती है।
  • एल्गोरिथम विषमता: प्लेटफॉर्म कार्य को प्रबंधित करने के लिए एल्गोरिदम का उपयोग करते हैं। हालांकि, इस पर निर्भरता के कारण कई असंतुलन पैदा होते हैं, जैसे:
    • सूचना तक पहुंच: प्लेटफॉर्म एग्रीगेटर्स की पहुँच वर्कर्स की व्यक्तिगत जानकारी तक होती है, जिससे निजता के अधिकार के उल्लंघन का खतरा बढ़ जाता है।
    • पारदर्शिता: रेटिंग प्रणाली, कार्य वितरण और डेटा-आधारित पारिश्रमिक आदि अक्सर एल्गोरिदम द्वारा निर्देशित होते हैं जिनमे पारदर्शिता नहीं होती हैं। इससे अनुचित गणना की आशंका बढ़ जाती है।

निष्कर्ष

गिग और प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स के लिए एक व्यापक नियम बनाया जा सकता है, जो उन्हें न्यायसंगत पारिश्रमिक, सामाजिक सुरक्षा कवरेज, सुरक्षित कार्यस्थल, लैंगिक समावेशन और भेदभाव से सुरक्षा प्रदान करे। इसमें पारदर्शिता, एल्गोरिथ्मिक जवाबदेही और यूनियन बनाने के अधिकार को अनिवार्य किया जाना चाहिए, साथ ही प्रशिक्षण, शिकायत निवारण और वित्तीय स्रोतों तक पहुंच को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

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