सुर्ख़ियों में क्यों?
प्रधान मंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में, अवैध अप्रवासन की चुनौती से निपटने के उद्देश्य से एक उच्चस्तरीय जनसांख्यिकी मिशन के शुभारंभ की घोषणा की।
अन्य संबंधित तथ्य
- अवैध अप्रवासी वे हैं जो वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना चोरी-छिपे और गुप्त तरीके से देश में प्रवेश करते हैं।
- वर्तमान में भारत में रह रहे अवैध अप्रवासियों की संख्या का कोई आधिकारिक डेटा नहीं है।
- 2016 में, सरकार ने सूचित किया था कि भारत में लगभग 20 मिलियन अवैध बांग्लादेशी अप्रवासी रह रहे हैं।

अवैध अप्रवासन और घुसपैठ से जुड़ी प्रमुख चिंताएं
राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे
- आतंकवादी संबंध और कट्टरता: रोहिंग्या जैसे अवैध अप्रवासियों को चरमपंथी समूह अपने समूह में शामिल कर सकते हैं।
- भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को हथियार एवं मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी और अन्य सीमा-पार आपराधिक गतिविधियों से भी खतरा है।
- जनसांख्यिकीय बदलाव और सामाजिक सामंजस्य: बांग्लादेश से अवैध अप्रवासियों के आने के कारण असम जैसे सीमावर्ती राज्यों में महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय बदलाव हुए हैं।
- अप्रवासियों की बड़ी संख्या में आवक से नृजातीय/ धार्मिक टकराव हो सकता है। उदाहरण के लिए- बांग्लादेश से अवैध प्रवासन के कारण असमिया पहचान को खतरा।
सामाजिक-आर्थिक बोझ
- सार्वजनिक सेवाओं पर दबाव/ कल्याणकारी योजनाओं पर बोझ: उदाहरण के लिए- स्वास्थ्य सेवा, आवास आदि।
- श्रम बाजार में गड़बड़ी: अवैध प्रवासी कम मजदूरी पर काम करते हैं, जिससे स्थानीय श्रमिकों की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है और मजदूरी संरचना पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- अन्य: अवैध प्रवासी रहने के लिए कृषि और वन भूमि पर अतिक्रमण कर लेते हैं, आदि।
भारत में अवैध अप्रवासन/ घुसपैठ को रोकने के लिए उठाए गए कदम
विधायी और नीतिगत उपाय
- अप्रवासन और विदेशी अधिनियम, 2025: इसके तहत अधिकारियों को अवैध अप्रवासियों का पता लगाने, हिरासत में लेने और निर्वासित (उनको उनके मूल देश में भेजना) करने का अधिकार दिया गया है।
- राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC): इसे सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम में अपडेट किया गया है।
- अन्य: नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA), 2019, आदि।
सीमा प्रबंधन पहल
- सीमा पर बाड़ लगाना और फ्लडलाइटिंग: यह भारत-बांग्लादेश और भारत-पाकिस्तान सीमाओं पर किया गया है।
- व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (CIBMS): इसमें स्मार्ट प्रौद्योगिकियों (रडार, सेंसर्स, ड्रोन्स) का उपयोग किया गया है।
संस्थागत और प्रशासनिक उपाय
- विदेशी ट्रिब्यूनल (FTs): ये अर्ध-न्यायिक निकाय हैं, जिनकी स्थापना 1946 के विदेशी अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत 1964 के विदेशी (ट्रिब्यूनल) आदेश के माध्यम से अवैध अप्रवासन और राष्ट्रीयता के मामलों का निर्णय करने के लिए की गई थी।
आगे की राह: अवैध घुसपैठ/अप्रवासन को रोकने के उपाय
- सुरक्षा और खुफिया जानकारी को मजबूत करना: उदाहरण के लिए एकीकृत खुफिया ग्रिड बनाना, IB, BSF, राज्य पुलिस और स्थानीय खुफिया इकाइयों के बीच निर्बाध समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए।
- सीमा प्रबंधन को मजबूत करना: उदाहरण के लिए- विशेष फ्लोटिंग बॉर्डर आउटपोस्ट और नदी के हिस्सों में UAV से निगरानी करने की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय शरणार्थी कानून लागू करना: भारत को असली शरणार्थियों और अवैध अप्रवासियों के बीच कानूनी रूप से अंतर करने के लिए एक राष्ट्रीय शरणार्थी कानून की आवश्यकता है।
- भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कन्वेंशन या उसके 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।
- औपचारिक द्विपक्षीय प्रत्यावर्तन समझौते: अवैध रूप से रह रहे नागरिकों की उनके देश में वापसी सुनिश्चित करना। प्रत्यावर्तन का अर्थ है किसी व्यक्ति को उसके मूल देश में वापस भेजना।
- अन्य:
- अवैध अप्रवासन के प्रबंधन में सहायता के लिए संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees: UNHCR) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को शामिल किया जाना चाहिए।
- राष्ट्रीय पहचान पत्र (NIDs) शीघ्र जारी करना चाहिए।
- अवैध अप्रवासियों/ शरणार्थियों के बायोमेट्रिक रिकॉर्ड को बनाए रखने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
उच्चस्तरीय जनसांख्यिकी मिशन अवैध घुसपैठ की लंबे समय से चली आ रही चुनौती से निपटने के लिए एक समयानुकूल कदम है। इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सीमा पर बाड़बंदी और निगरानी कितनी मजबूत होती है, विदेशी ट्रिब्यूनल कितनी तेजी से फैसले करते हैं, द्विपक्षीय प्रत्यावर्तन समझौते कितनी कुशलता से लागू होते हैं, और राष्ट्रीय पहचान प्रणाली कितनी सुदृढ़ होती है।