पर्यावरण लेखा परीक्षा नियम, 2025 (Environment Audit Rules, 2025) | Current Affairs | Vision IAS
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पर्यावरण लेखा परीक्षा नियम, 2025 (Environment Audit Rules, 2025)

04 Oct 2025
1 min

In Summary

पर्यावरण लेखा परीक्षा नियम, 2025, भारत में तीसरे पक्ष के पर्यावरण लेखा परीक्षा के लिए एक ढांचा स्थापित करते हैं, जो अनुपालन, डेटा सटीकता, प्रारंभिक जोखिम का पता लगाने और जलवायु और संरक्षण लक्ष्यों का समर्थन करने को बढ़ावा देते हैं।

In Summary

सुर्खियों में क्यों?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने पर्यावरण लेखा परीक्षा नियम, 2025 को अधिसूचित किया है।

पर्यावरण लेखा परीक्षा क्या है?

  • यह किसी भी परियोजना, गतिविधि या प्रक्रिया का एक पद्धतिगत लेखा परीक्षण, सत्यापन, निरीक्षण या विश्लेषण है, जिसका पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है।
    • EA प्रक्रिया परियोजना के संचालन के दौरान या बाद में संचालित की जाती है, जबकि EIA परियोजना की स्थापना से पूर्व किया जाता है।
    • इसका उद्देश्य यह निर्धारित करना होता है कि परियोजनाएं और कार्यक्रम अनुमोदित पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP) के अनुरूप हैं या नहीं।
  • भारत में, पर्यावरण लेखा परीक्षा की अवधारणा 1992 में पर्यावरण (संरक्षण) नियम,1986 के नियम 14 के माध्यम से लागू की गई थी।
    • यह नियम उन इकाइयों पर लागू होता है जो ऐसे उद्योगों, संचालन या प्रक्रियाओं में संलग्न हैं जिन्हें जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974, वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत सहमति या खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन एवं प्रहस्तन) नियमावली,1989 के तहत अनुज्ञा की आवश्यकता होती है। 
  • इन इकाइयों को प्रत्येक वर्ष राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) को वार्षिक पर्यावरण विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य है।

पर्यावरण लेखा परीक्षा नियम, 2025 के बारे में:

  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य देश भर में पर्यावरण लेखा परीक्षा के लिए एक औपचारिक ढांचा तैयार करना है, ताकि पर्यावरणीय अनुपालन निगरानी को सुदृढ़ किया जा सके और व्यावसायिक सुगमता सुनिश्चित की जा सके।
  • महत्व: ये नियम तृतीय-पक्ष लेखा परीक्षा के माध्यम से अनुपालन को सुदृढ़ करते हैं, वैश्विक ढांचों (जैसे इको-मार्क, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR), पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG), ग्रीन बॉन्ड) के अनुरूप हैं, विश्वसनीय पर्यावरणीय डेटा उत्पन्न करते हैं और समय रहते जोखिमों की पहचान व सुधारात्मक कार्रवाई को सक्षम बनाते हैं।
  • ये नियम पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (1986) के तहत विकसित किए गए हैं।
    • ये विभिन्न कानूनी प्रावधानों के तहत कानूनी सुरक्षा उपायों का पालन करते हैं, जिनमें वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 आदि शामिल हैं।
  • प्रमाणीकरण और पंजीकरण: पर्यावरण लेखा परीक्षकों (EAs) का प्रमाणन और पंजीकरण, पर्यावरण लेखा परीक्षा नामित एजेंसी (EADA) द्वारा किया जाएगा। EADA को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा अधिसूचित किया गया है।
    • EADA लेखा परीक्षकों के प्रदर्शन की निगरानी, अनुशासनात्मक कार्रवाई, क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने और एक ऑनलाइन रजिस्टर का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी निभाएगी।
    • प्रमाणीकरण के तरीके:
      • पूर्व शिक्षण की मान्यता (RPL) या राष्ट्रीय प्रमाणन परीक्षा (NCE)।
    • जिम्मेदारियां:
      • अनुपालन मूल्यांकन और उससे संबंधित गतिविधियां, जैसे सैंपलिंग, विश्लेषण, मुआवजा गणना, हरित ऋण (क्रेडिट) नियमों के तहत सत्यापन, तथा अन्य पर्यावरण और वन संबंधित कानूनों के अंतर्गत कार्य करना।
      • पंजीकृत पर्यावरण लेखा परीक्षक (Registered Environment Auditor) परियोजना प्रस्तावकों (Project Proponents) द्वारा दिए गए ऑडिट कार्यों को भी कर सकते हैं, जिसमें स्व-अनुपालन रिपोर्ट का सत्यापन शामिल है
      • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA), 2006, तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ), 2011 आदि के अंतर्गत पर्यावरण लेखा परीक्षा करना।

निष्कर्ष

पर्यावरण लेखा परीक्षा के परिणाम प्रभावी संरक्षण और पुनर्जीवन प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण इनपुट प्रदान करेंगे। साथ ही, "पर्यावरण के लिए जीवनशैली (LiFE)" सिद्धांतों को अपनाकर भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को भी समर्थन देंगे।

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