वन (संरक्षण एवं संवर्धन) संशोधन नियम, 2025 {Van (Sanrakshan Evam Samvardhan) Amendment Rules, 2025} | Current Affairs | Vision IAS
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वन (संरक्षण एवं संवर्धन) संशोधन नियम, 2025 {Van (Sanrakshan Evam Samvardhan) Amendment Rules, 2025}

04 Oct 2025
1 min

In Summary

2025 के नियम वन संरक्षण कानूनों को अद्यतन करते हैं, लचीले वनीकरण को सक्षम बनाते हैं, परियोजना अनुमोदन को सुव्यवस्थित करते हैं, तथा पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ संरेखित रणनीतिक खनिज और बुनियादी ढांचे के विकास का समर्थन करते हैं।

In Summary

सुर्खियों में क्यों?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने वन (संरक्षण एवं संवर्धन) संशोधन नियम, 2025 को अधिसूचित किया है, जो वन (संरक्षण एवं संवर्धन) नियम, 2023 में महत्वपूर्ण परिवर्तनों को सूचित करते हैं।

अन्य संबंधित तथ्य:

  • ये नियम केंद्र सरकार द्वारा वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 की धारा 4 के तहत बनाए गए हैं।

वन (संरक्षण एवं संवर्धन) संशोधन नियम, 2025 की मुख्य विशेषताएं

  • प्रतिपूरक वनीकरण: नए नियमों के तहत संरक्षित वन क्षेत्र की अधिसूचना वैकल्पिक हो गई है, जिससे प्रतिपूरक वनीकरण के लिए भूमि या तो वन विभाग को हस्तांतरित की जा सकेगी या इसे भारतीय वन अधिनियम, 1927 या अन्य कानूनों के तहत संरक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जा सकेगा।
    • प्रतिपूरक वनीकरण का अर्थ है: वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत वन भूमि के गैर-वन उपयोग के लिए आवंटित भूमि के बदले किया गया वनीकरण
  • महत्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों के लिए प्रावधान: महत्वपूर्ण/रणनीतिक खनिजों (MMDR अधिनियम, 1957 के तहत) की खनन परियोजनाओं को क्षतिग्रस्त वन भूमि पर प्रतिपूरक वनीकरण करना अनिवार्य है, जिसकी मात्रा कम से कम वन भूमि के दुगुने क्षेत्रफल के बराबर होनी चाहिए
  • कार्य अनुमति: नियमों के अनुसार, राज्य सरकारों को कुछ रैखिक परियोजनाओं के लिए प्रारंभिक 'कार्य अनुमति', जैसे सड़क निर्माण कार्य (ब्लैकटॉपिंग और कंक्रीटीकरण के अलावा), रेलवे ट्रैक बिछाना और ट्रांसमिशन लाइनें स्थापित करना, प्रदान करने की शक्ति प्राप्त है
    • इससे पहले, राज्य सरकारें परियोजना के लिए सैद्धांतिक अनुमोदन या चरण-I अनुमोदन प्राप्त होने के बाद ही संसाधन जुटा सकती थीं।

भारत में वन संरक्षण अधिनियम का विकास 

  • भारतीय वन अधिनियम, 1865: इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य राज्य के वन क्षेत्रों पर अपना अधिकार स्थापित करना था, बशर्ते कि पूर्व में स्थापित किसी भी अधिकार को कम नहीं किया जाए।
  • भारतीय वन अधिनियम 1878: इस अधिनियम के तहत वनों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया था – आरक्षित वन, संरक्षित वन और ग्राम वन
    • इस नीति के तहत वन निवासियों द्वारा वनों से उत्पादों के संग्रह को विनियमित करने का प्रयास किया गया था और कुछ गतिविधियों को अपराध घोषित किया गया था। इस नीति के तहत राज्य का वन पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए कारावास और जुर्माने का प्रावधान किया गया था।
  • भारतीय वन अधिनियम, 1927: यह पूर्ववर्ती वन कानूनों का संहिताकरण था, जिसका उद्देश्य वनों पर राज्य का नियंत्रण स्थापित करना और वनोपज की आवाजाही एवं उस पर लगने वाले शुल्क को विनियमित करना था।
  • 1980 से पूर्व का दौर: 42वें संविधान संशोधन (1976) से पहले, वन राज्य सूची का विषय था। किंतु इस संशोधन के बाद इसे समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
  • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980: इस अधिनियम के माध्यम से वन भूमि को अन्य उपयोग हेतु परिवर्तित करने की प्रक्रिया को केंद्रीकृत करके वनोन्मूलन को रोकने का प्रयास किया गया था।
    • मुख्य प्रतिबंध: कोई भी राज्य सरकार या प्राधिकरण, केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना:
      • किसी आरक्षित वन को अनारक्षित घोषित नहीं कर सकता।
      • किसी वन भूमि का उपयोग गैर-वन उद्देश्य के लिए नहीं कर सकता।
  • वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 1988: इस संशोधन में वन भूमि को निजी संस्थाओं को पट्टे पर देने पर प्रतिबंध लगाया गया। साथ ही, "गैर-वन उद्देश्य" की परिभाषा को भी विस्तारित किया गया।
  • वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023:
    • वन की परिभाषा:
      • ऐसी भूमि जिसे किसी भी कानून (जैसे भारतीय वन अधिनियम, 1927) के तहत वन घोषित या अधिसूचित किया गया हो। 
      • ऐसी भूमि जो 25 अक्टूबर 1980 या उसके बाद सरकारी अभिलेखों (राजस्व या वन विभाग) में वन के रूप में दर्ज की गई हो।
      • इसमें वह भूमि शामिल नहीं होगी जिसका उपयोग 1996 से पहले ही आधिकारिक रूप से गैर-वन उद्देश्य के लिए परिवर्तित कर दिया गया हो।
    • हालांकि उच्चतम न्यायालय ने 2024 के एक आदेश में सरकार को निर्देश दिया था कि वह "वन" की उस परिभाषा का पालन करे जो 1996 के गोदावर्मन थिरुमलपाद बनाम भारत संघ के निर्णय में दी गई थी।
    • अधिनियम के प्रावधानों से रियायत प्राप्त भूमि की श्रेणियां: भारत की सीमा से 100 किलोमीटर के भीतर स्थित भूमि, यदि उसका उपयोग राष्ट्रीय सुरक्षा, जनसुविधा हेतु सड़क निर्माण या ग्रामों से जुड़ने वाले मार्गों के लिए हो, तो उसे इस अधिनियम के प्रावधानों से रियायत प्राप्त होगी।

टी. एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ मामला (1996)

  • यह 1995 का उच्चतम न्यायालय का एक महत्वपूर्ण निर्णय है जिसने "वन" की व्यापक और समग्र परिभाषा स्थापित की।
  • "वन" की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें निम्नलिखित को भी शामिल किया गया है:
    • सभी ऐसे क्षेत्र जो किसी भी सरकारी (केंद्र और राज्य) अभिलेख में "वन" के रूप में दर्ज हों, चाहे उनका स्वामित्व, मान्यता या वर्गीकरण कुछ भी हो।
    • सभी ऐसे क्षेत्र जो "वन" के शब्दकोशीय अर्थ के अनुरूप हों।
    • वे क्षेत्र जिन्हें 1996 के आदेश के बाद राज्य सरकारों द्वारा गठित विशेषज्ञ समितियों ने "वन" के रूप में चिन्हित किया हो।

 

निष्कर्ष

वन (संरक्षण एवं संवर्धन) संशोधन नियम, 2025 वन शासन को आधुनिक बनाते हैं, अनुमोदनों को स्पष्ट करते हैं, वनीकरण को बढ़ावा देते हैं, रणनीतिक परियोजनाओं का समर्थन करते हैं और इस अधिनियम को राष्ट्रीय जलवायु, जैव विविधता और कार्बन सिंक लक्ष्यों के अनुरूप बनाते हैं।

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